सोचियेगा ज़रूर...

आज भी हमारे देश में लगभग 20 करोड़ की आबादी रोजाना भूखे पेट सोने को मजबूर है, लेकिन दूसरी ओर होटल, रेस्तरां और शादी-ब्याह आदि में खूब खाना बर्बाद होता है। ढेरों प्रयास के बाद भी खाने की बर्बादी पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है, खाने की दिन-प्रतिदिन बर्बादी को रोकने के लिए एफएसएसएआई ने एक ऐसा मसौदा तैयार किया है, जिस पर सरकार से मंजूरी मिलने के बाद खाना बर्बाद करने वालों पर 5 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा। एफएसएसएआई मसौदे की मंजूरी के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को भेजने वाली है।

 

खाने की बर्बादी हमारे देश की ऐसी उन प्रमुख समस्याओं में से एक है। जिसके बारे में लोग गंभीरता से नहीं सोचते और जागरुकता की कमी के कारण उसके संरक्षण के प्रति उदासीन रहते हैं। जिससे देश को कई मायनों में खासा नुकसान उठाना पड़ता है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) बचे हुए खाने के इस्तेमाल को लेकर एक नियमन लेकर आने वाला है, जिसमें खाने के नुकसान पर भारी जुर्माना लगाए जाने का प्रबंध भी किया जा रहा है


सालाना बर्बाद होता है 1.30 लाख करोड़ किलो खाना

 

अमेरिकी लोगों की तरह हम भारतीय भी खाना बर्बाद करने के मामले में बेहद बदनाम हो गए है। माना जाता है कि इंग्लैंड में जितना खाना खाया जाता है, उतना खाना तो अकेले हम भारतीय कूड़ेदान में डाल देते हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) का कहना है कि पूरी दुनिया में सालाना करीब 1.30 लाख करोड़ किलो (1.3 बिलियन टन) खाद्य सामग्री बर्बाद हो जाती है।

 

विकसित देश करते हैं ज्यादा बर्बाद

 

खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार 46 हजार करोड़ रुपये यानी 685 बिलियन डॉलर की खाद्य सामग्री तो अकेले विकसित देशों में बर्बाद हो जाती है। जबकि विकासशील देशों में 21 हजार करोड़ रुपये यानी 354 बिलियन डॉलर खाद्य सामग्री कूड़े की भेंट चढ़ गए। विकासशील देशों की तुलना में विकसित देश कहीं ज्यादा खाद्य सामग्री का इस्तेमाल करते हैं और बर्बादी में भी वो आगे हैं। विकसित देश जहां 670 मिलियन टन अनाज और खाद्य सामग्री का उपभोग करते हैं। तो विकासशील देश 630 मिलियन टन ही अनाज का उपभोग कर पाते हैं। आकड़ों के अनुसार हर साल अमीर देशों के उपभोक्ता (222 मिलियन टन) खाना बर्बाद करते हैं।

 

 

क्या है इसका कारण

 

जान-बूझ कर खाने की बर्बादी का तो प्रश्न ही नहीं उठता है। यदि हम इसकी  मुख्य वजह को समझने की कोशिश करे तो तो हम इसे समझ सकते है। एक उदाहरण जो शायद हर किसी के घर में देखने को मिल जाएगा। जब कभी हम घर में किसी को खाने पर बुलाते हैं, तो हम उसके लिए तरह-तरह के व्यंजन बनाते हैं। लेकिन कई बार हमें इस बात का अंदाजा नहीं होता है कि कितने लोग आएंगे और कितने लोगों के लिए कितना खाना बनना है और इसकी वजह से बहुत सारा खाना बच जाता है,प्रयाप्त साधन व्यवस्था कि इसे कहाँ बंटवाना चाहिए? इसका अभाव होने से, खाना स्टोर करना मुश्किल हो जाता है और अंततः सारा खाना कूड़े में फेंक दिया जाता है।


प्रबंधन एवं जागरूकता की है जरूरत

 

भारत जैसे देश में, जहां लाखों लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं, वहीं हम अगर इस तरह खाने को बर्बाद कर रहे हैं, तो क्या हम एक सजग और ज़िम्मेदार नागरिक हैं? क्या हमें इस बारे में नहीं सोचना चाहिए कि हमारे ही देश में लाखों लोगों को दो जून की रोटी भी मुश्किल से मिलती है? हमें गहराई से इस बारे में सोचना होगा कि हम अपने स्तर पर खाने की बर्बादी को कैसे रोक सकते हैं?आकड़ों कि मानें तो हर साल औसतन 6,700 करोड़ किलो खाद्य सामग्री कूड़ेदान की भेंट चढ़ जाता है। जिसकी कीमत 9,649करोड़ रुपये यानी 14 बिलियन डॉलर के करीब है।गौर करने वाली बात ये हैं कि जितनी खाद्य सामग्री हम लोग बर्बाद करते है अगर उसका सही तरीके से उपयोग किया जाए तो हम गरीबी रेखा (BPL) के नीचे रह रहे  26 करोड़ लोगों का पेट 6 महीने तक भरसकते है।

 

 

जनमानस भड़ास अपने व्यूवर्स से अपील कर रहा है कि खाने को बर्बाद करने से बेहतर है कि उसे किसी जरूरतमंद तक पंहुचा दिया जाए, हमारा एक छोटा-सा कदम किसी लाचार-बेसहारा को खाली पेट न सोने में मदद कर सकता है।

 

 

 

अब फैसला आपका है...


भड़ास अभी बाकी हैं...