शांत होगा कीड़ा: मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र...

वर्तमान समय में मोबाइल फोन लोगों की सबसे बड़ी जरूरत बन चुका है। हम लोग हर काम को आसान बनाने और हर सवाल का जवाब ढूंढने के लिए मोबाइल फोन की मदद लेते हैं। यही वजह है कि हम लोग खुद को इससे एक पल भी दूर नहीं रख पाते हैं। लेकिन अब इसकी आदत हम लोगों के लिए खतरनाक साबित हो रही है। यह  हम लोगों के लिए मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से बीमार कर रहा है। अगर आप भी मोबाइल की लत से पीड़ित है तो एक अच्छी खबर है। आपको मोबाइल की लत से मुक्ति दिलाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने योजना तैयार की है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नियंत्रण कार्यक्रम के तहत जिला अस्पताल के ‘मन कक्ष’ में मनोवैज्ञानिकों द्वारा काउंसलिंग कराई जाएगी। जिसके लिए कोई शुल्क भी नहीं देना पड़ेगा।आज हर वर्ग मोबाइल का आदी हो गया है। जिससे लोग नींद भी पूरी नहीं ले पा रहे हैं। साथ ही अन्य कार्यों पर भी कम रुचि रख रहे हैं। जिससे वो विभिन्न बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग ने इसे गंभीरता से लेते हुए मोबाइल की बढ़ती लत को मनोविकार की श्रेणी में रखा है। साथ ही स्वास्थ्य एवं चिकित्सा निदेशालय ने वृहद योजना भी तैयार की है। योजना के तहत शासन ने जनपद स्तरीय अस्पतालों में मन कक्ष बनवाए थे। जिन अस्पतालों में मन कक्ष बनकर तैयार हो गए हैं। वहां पर युवाओं को मोबाइल के नशे से मुक्ति दिलाने के लिए काउंसलिंग कराने के निर्देश जारी कर दिए हैं।

 

आत्महत्या की रोकथाम को होंगी कोशिशें

 

यह सेवा युवाओं में मोबाइल की लत को कम करने के लिए ही नहीं बल्कि आत्महत्या की रोकथाम के लिए भी कोशिशें शुरू की जाएंगी। इसके लिए भी मन कक्ष में काउंसलरों के माध्यम से काउंसलिंग करके औषधियां भी दी जाएंगी। साथ ही उनकी समस्या का समाधान भी किया जाएगा।

 

आंखें रहीं सूख, सभी हो रहे आक्रामक

 

आजकल सभी मोबाइल का प्रयोग बहुतायत रूप में कर रहे हैं। मोबाइल से निकलने वाली किरणों से उनमें एक नवीन रोग का जन्म हो रहा है। मोबाइल का प्रयोग सभी लोग इस हद तक कर रहे हैं कि उनकी आंखें शुष्क होती जा रहीं हैं। यदि बच्चों से मोबाइल जबरन छीन लिया जाए तो वह आक्रामक से हो रहे हैं, यहां तक की वह आत्महत्या करने की भी धमकी देने से बाज नहीं आते हैं।


क्योंकि मोबाइल बना रहा है बीमार

 

मोबाइल और इंटरनेट हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। मोबाइल के बिना अब जीवन अधूरा सा लगता है। लेकिन विज्ञान की ये तकनीक लोगों को नुकसान भी पहुंचा रही है। बच्चों से लेकर किशोर और युवा जहां मोबाइल के लती हो रहे हैं, वहीं खतरनाक गेम्स के जरिए अवसाद में जाकर आत्महत्या तक कर रहे हैं। इसके साथ ही कई वयस्क और महिलायें भी अकेलेपन का शिकार होकर मोबाइल के लती हो रही हैं। जो लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है। बच्चों के मोबाइल के लती होने में ज्यादातर माता-पिता ही जिम्मेदार होते हैं। दरअसल घर में अकेली महिलायें कई बार बच्चों के हाथों में मोबाइल पकड़ाकर घर के कामों में लग जाती है। जिससे बच्चे काफी देर तक मोबाइल में बिजी रहते हैं और वे उसके आदी हो जाते हैं। 

 

 

अभिभावक भी अपनी गलती स्वीकार करते हैं, लेकिन इसके पीछे अपनी मजबूरियां भी बताते हैं। अभिभावकों का ये भी तर्क है कि मोबाइल से बच्चों को कई जानकारियां भी मिलती है।जैसे उन्हें कवितायें और गीत मोबाइल देखकर दी याद हो जाते हैं। वहीं शिक्षक बच्चों में मोबाइल को लेकर बदलते व्यवहार को लेकर चितिंत नजर आ रहे हैं और अभिभावकों को भी सजग रहने की सलाह दे रहे हैं। मोबाइल की बढ़ती इस लत की समस्या से निजात दिलाने के लिए प्रयागराज के मोतीलाल नेहरु मंडलीय अस्पताल में प्रदेश के पहले मोबाइल नशा मुक्ति केन्द्र की शुरुआत हो गयी है।

 

भड़ास अभी बाकी है...