अब टेक्सटाइल सेक्टर पर मंदी की मार...

हाल ही में ऑटो सेक्टर में ज़ोरदार मंदी और बिक्री के 30-35 प्रतिशत तक कम होने की ख़बरें आती रही थीं। देश की सबसे बड़ी कार कंपनी मारुति सुज़ुकी समेत ह्यूंडई, महिंद्रा, हॉन्डा और टोयोटा जैसी प्रमुख वाहन कंपनियों की बिक्री में जुलाई माह में भारी गिरावट दर्ज की गई थी और यह भी बताया गया था कि देशभर में सैकड़ों डीलरशिप बंद हो गई हैं। लेकिन अब रियल एस्टेट और एफएमसीजी सेक्टर के बाद देश के टेक्सटाइल उद्योग में भी मंदी की मार दिखने लगी है, देखते ही देखते इस उद्योग में काम करने वाले 10 करोड़ लोगों पर नौकरी का संकट खड़ा हो गया है। टेक्सटाइल मिलों के संगठन के अनुसार, वस्त्र उद्योग खेती के बाद रोजगार देने वाला सबसे बड़ा सेक्टर है। लेकिन अब जीएसटी एवं अन्य करों की वजह से यह उद्योग अब तक के अपने सबसे बड़े संकट से गुजर रहा है। देश की करीब एक-तहाई कताई मिलें बंद हो चुकी हैं। थोड़ी बहुत जो चल भी रही हैं वो भारी घाटे का सामना कर रही हैं। 


निर्यात में आयी 34 फीसदी कमी



जहां पहले भारतीय मिलें तैयार कपड़े के यार्न को विदेश में बड़े पैमाने पर निर्यात करती थीं, वहीं इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में 34.6 फीसदी की कमी देखने को मिली थी। जून के महीने में यह आंकड़ा बढ़कर 50 फीसदी हो गया है। जीएसटी और अन्य करों के अलावा इस सेक्टर को बैंकों से ऊंचे ब्याज दर पर कर्ज लेना पड़ता है। वहीं दूसरी तरफ कच्चे माल की लागत भी ज्यादा है। अब कताई मिलें इस हालात में नहीं हैं कि भारतीय कपास खरीद सकें। अगर यही हालत रही है तो अगले सीजन में बाजार में आने वाले करीब 82,000 करोड़ रुपये के 4.8 करोड़ गांठ कपास का कोई खरीदार नहीं मिलेगा। वहीं भारतीय मिलों को ऊंचे कच्चे माल की वजह से प्रति किलो 22 से 25 रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है।

 

थम गयी रफ़्तार

 

गौर करने वाली बात ये है कि सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश होने के बावजूद भी चीन ने 2014-18 के बीच 1.5 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से वृद्धि की है। जिसका लाभ उठाकर वियतनाम तेज़ी से इस सेक्टर में अपनी जगह बना रहा है। वियतनाम का निर्यात 13 प्रतिशत सालाना दर से बढ़ रहा है। 1990 में भारत जितना निर्यात करता था तब वियतनाम उसका मात्र 13 प्रतिशत ही निर्यात कर पाता था। आज भारत के निर्यात के 75 फीसदी के बराबर वियतनाम निर्यात करता है। वियतनाम भारत के मुकाबले एक छोटा देश है। अगर आकड़ों की मानें तो वियतनाम निर्यात के मामले में भारत को ओवरटेक कर लेगा। जब चीन ने टैक्सटाइल सेक्टर को छोड़ अधिक मूल्य वाले उत्पादों के सेगमेंट में जगह बनाने की नीति अपनाई तब इस ख़ाली जगह को भरने के लिए बांग्लादेश और वियतनाम तेज़ी से आए। अगर आप बिजनेस की ख़बरें पढ़ते होंगे तब ध्यान होगा कि कई साल पहले मोदी सरकार ने टेक्सटाइल सेक्टर के लिए 6000 करोड़ के पैकेज का एलान किया था।

 

 

आज तक भारत का टेक्सटाइल सेक्टर उबर नहीं सका है। टेक्सटाइल रोज़गार देने वाले सेक्टरों में से एक रहा है। जून 2016 में मोदी कैबिनेट ने पैकेज की घोषणा करते वक्त कहा था कि अगले तीन साल में यानी 2019 तक टेक्सटाइल सेक्टर में 1 करोड़ रोज़गार पैदा किए जाएंगे और 75,000 करोड़ का निवेश होगा। एक रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल से जून की पहली तिमाही में मांग ठंडी हो गई है और मुनाफ़ा भी शून्य हो गया। यही नहीं 2,179 कंपनियों के मुनाफ़े में 11.97 प्रतिशत की गिरावट आई है, क्योंकि बिक्री में मात्र 5.87 प्रतिशत की ही वृद्धि हुई है जो बहुत मामूली है। 

भड़ास अभी बाकी है...