दांव पर देश की सुरक्षा...

राष्ट्र रक्षातंत्र की रीढ़ कही जाने वाली 41 आयुध निर्माणी के 82000 कर्मचारी एक महीने की हड़ताल पर है। सरकार युद्ध उपकर निर्माणी, स्मॉल आर्म, आयुध निर्माणी आदि का निजीकरण करने जा रही है। हड़ताली कर्मचारियों का कहना है कि उद्योग घरानों की नज़र सेना के लिये सामान बनाने वाली फैक्ट्रियों की ज़मीन पर है। भारतीय वायुसेना के लिये सुखोई, तेजस जैसे विमानों का निर्माण करने वाली हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड की हालत भी खस्ता है। हालात यह है कि एच ए एल के पास अपने कर्मचारियों को तनख्वाह देने के लिये भी पैसे नही है। राफेल डील में इस कम्पनी को बाहर रखने के फैसले ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। उधर भारतीय वायुसेना के पास लड़ाकू विमानों की जबरदस्त कमी है। भारतीय वायुसेना को कम से कम 42 स्क्वाड्रन चाहिए,लेकिन अभी इसके पास केवल 31 स्क्वाड्रन है। दुनिया की चौथी सबसे बड़ी एयरफोर्स की हालत यह है कि आज भी यह 44 साल पुराने मिग-21 से काम चला रही है। वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ का कहना है कि दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश हो जहाँ इतना पुराना लड़ाकू विमान उड़ाया जा रहा हो, जबकि इतनी पुरानी कार तक कोई नही चलाता। वैसे अभी तक 500 मिग-21 हादसे का शिकार हो चुके है, जिनमे से 170 तो पिछले 10 सालों में दुर्घटनाग्रस्त हुए है। इन दुर्घटनाओं में 200 से ज्यादा जाबांज पायलटों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इतने लड़ाकू पायलट तो शायद 1965 और 1971 की लड़ाइयों में भी नही मारे गये। इसके बावजूद भारतीय जांबाज इन्ही मिग-21 को हर रोज उड़ाते है। जाहिर है कि इतनी सारी दुर्घटनाओं के बावजूद जो सरकारे आंख मूंद कर बैठी रही वे इन मौतों की सबसे बड़ी गुनहगार है।

 

राफेल लड़ाकू विमान

 

5 साल पहले मेक इन इंडिया के नारे का बड़ा शोर सुनाई पड़ता था लेकिन स्थिति यह है कि भारतीय सेना आज भी अपने साजो सामान बाहर से आयात करती है।इनमे लड़ाकू विमान भी शामिल है। हमारा पड़ोसी चीन इस मामले में हमसे कोसों आगे है। वह सैन्य प्रोद्योगिकी में लगभग आत्मनिर्भर हो चुका है, जबकि खबर यह है कि भारत की वायुसेना नें 114 लड़ाकू विमानों के लिये फिर से टेंडर निकाला है। वैसे रूस से पाँचवी पीढ़ी का लड़ाकू विमान बनाने के लिये समझौते की बात चल रही थी, लेकिन उसका क्या हुआ इसकी कोई खबर नही है। खस्ताहाल लड़ाकू विमानों, बंद होने के डर से काम ठप्प कर बैठी आयुध निर्माणियों , बर्बादी की कगार पर पहुँच चुकी एच ए एल जैसी रक्षा कम्पनियों और लगभग हर महीने दुर्घटनाग्रस्त होते जा रहे पुराने लड़ाकू विमानों के सहारे देश की सुरक्षा कैसे हो सकेगी। वैसे जिन राफेल विमानों के दम पर पाकिस्तान से निपटने की बात की जा रही है, पाकिस्तानी सेना उनके पुर्जे-पुर्जे से वाकिफ है। फ्रांस के दसाल्ट एविएशन ने खाड़ी के देश कतर को भी राफेल बेचे है और खबर है कि कतर को भारत से कहीं ज्यादा सस्ते में राफेल दिये गये है। इन राफेल को चलाने का जिम्मा पाकिस्तानी वायुसेना के पायलटों को दिया गया। एविएशन सेक्टर की खबरों से जुड़ी एक रिपोर्ट में इस साल की शुरुआत में छपी एक खबर के मुताबिक पाकिस्तानी पायलटों के एक बैच को नवम्बर 2017 में फ्रांस में राफेल उड़ाने की ट्रेनिंग दी गयी। कतर ने मई 2015 में 24 राफेल खरीदने के लिए दसॉल्ट एविएशन से समझौता किया था। इसके बाद दिसंबर 2017 में उसने 12 और राफेल फाइटर प्लेन खरीदने का ऑर्डर दिया था। इसमें पहले 24 विमानों का सौदा 6.3 बिलियन यूरो का हुआ था। खाड़ी के कई मुस्लिम देशों से पाकिस्तान के अच्छे रक्षा सम्बन्ध है और पाकिस्तान की एयरफोर्स के अधिकारी इन देशों के पायलटों को ट्रेनिंग देते रहे हैं। भारत को पहला राफेल इस साल सितंबर में मिलेगा, लेकिन इन्ही खूबियों से लैस राफेल कतर को पहले ही मिल चुका है, जिसे पाकिस्तानी एयरफोर्स उड़ा रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि इन पायलटो को यह भी पता चल चुका होगा कि राफेल से खुद का बचाव कैसे किया जाये।

 

घुसपैठियों से सुरक्षा करते सैनिक

 

भारत का लाइट कॉम्बैट एयर फाइटर तेजस वैसे तो बन कर तैयार है लेकिन इसमें लगा इंजन अमेरिकी है। आश्चर्य की बात है कि जो देश अपने उपग्रहों को मंगल ग्रह तक भेजने के लिये स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन तैयार कर सकता है वह अपने महत्वाकांक्षी स्वदेशी लड़ाकू विमान के लिये एक स्वदेशी इंजन नही तैयार कर पाया, यह बात आसानी से हजम नही होती। वैसे विदेशी कम्पनियो से होने वाले रक्षा सौदों पर लगते रहे दलाली के आरोपो पर नज़र डालें तो स्वदेशी विमान के लिये देसी इंजन न बना पाने की इस अक्षमता के कारण को समझा जा सकता है।  यदि तेजस को खरीदा जाता है तो इससे ना केवल हमारे देश में लड़ाकू विमानों के उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि फंड की कमी से जूझ रही देश की एकमात्र फाइटर जेट बनाने वाली कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को भी राहत मिलेगी। लेकिन रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने का लक्ष्य सरकार के एजेंडे में नही है। ऐसे में सेना के लिये गोला बारूद से लेकर हथियार, टैंक तक बनाने वाली आर्डिनेंस फैक्ट्रियां भी बंद हो गयी तो सेना की क्या हालत होगी।

(दीप्ति यादव)

 

भड़ास अभी बाकी है...