रिजर्व में लगी केंद्र सरकार की गाड़ी को राहत दिलाएगा रिजर्व बैंक...

भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी जमा पूंजी से सरकार को चालू वित्त वर्ष के लिए 1,76,000 करोड़ रुपए देने का फैसला कर ही लिया। रिजर्व बैंक के 84 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब केंद्रीय बैंक सरकार को अपनी सुरक्षित जमा पूंजी से इतनी मोटी रकम देने जा रहा है। केंद्रीय बैंक ने यह ऐतिहासिक फैसला जालान समिति की सिफारिश पर किया है। सरकार इस भारी-भरकम रकम को हासिल करने के लिए लंबे समय लगी हुई थी लेकिन इस मुद्दे पर केंद्रीय बैंक और उसके बीच समय-समय पर टकराव सामने आते रहे। पूर्व गवर्नर, डिप्टी गवर्नर इस पक्ष में नहीं थे कि सरकार को आरक्षित कोष से पैसा दिया जाए, क्योंकि इस तरह का कोष संकट काल के लिए रखा जाता है। ऐसे में सरकार को सामान्यतौर पर इस तरह लाखों-करोड़ों रुपए देने की परंपरा नहीं है। लेकिन अब जालान समिति की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए रिजर्व बैंक ने सरकार को पैसे देने का फैसला कर लिया है। इस रकम में 1,23,417 करोड़ रुपए अपने सरप्लस से और 52,637 करोड़ रुपए संशोधित इकोनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क के तहत अतिरिक्त प्रावधान के हैं। इसके अलावा 90,000 करोड़ रुपए सरकार को केंद्रीय बैंक से लाभांश के रूप में मिलने हैं सो अलग। सरकार को 28,000 करोड़ रुपए पहले ही दिए जा चुके हैं।


क्या करेगी सरकार इन पैसों का

अब सवाल है कि सरकार रिजर्व बैंक से मिलने वाले का क्या और कैसे इस्तेमाल करती है। यह बात इसलिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि केंद्रीय बैंक पूर्व में इस तरह पैसे दिए जाने के पक्ष में नहीं रहा है। जाहिर है, आरबीआई को कहीं न कहीं इसे लेकर कुछ संदेह रहे होंगे। मसला यह नहीं है कि पैसे मांगे जा रहे हैं, बल्कि इन पैसों को किन-किन मदों में और कैसे खर्च किया जाना है, इसमें सरकार और शीर्ष बैंक के बीच पारदर्शिता होनी चाहिए। हालांकि केंद्रीय बैंक सरकार को हर साल सरप्लस का पैसा देता रहा है, जो एक तरह से लाभांश ही होता है।

 

 

तात्कालिक तौर पर तो यही कहा जा रहा है कि इस पैसे का इस्तेमाल देश को मौजूदा आर्थिक संकट से निकालने में होगा। इस पैसे का इस्तेमाल ढांचागत क्षेत्र, आवास क्षेत्र, रेलवे और सड़क परियोजनाओं में किया जाएगा। इसके अलावा बैंकिंग क्षेत्र में जान डालने के लिए भी यह पैसा काम आ सकता है। अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर से रही है, निजी निवेश, निर्यात और खपत सब ठंडे पड़े हैं। ऐसे में अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाना सरकार की पहली प्राथमिकता है।

विरोध में थे पूर्व गवर्नर

 

रिजर्व बैंक और सरकार के बीच पैसे को लेकर विवाद इसलिए गहराया था कि दो पूर्व गवर्नरों रघुराम राजन और उर्जित पटेल का मानना था कि इस तरह के कदमों से आरबीआई की रेटिंग पर बुरा असर पड़ता है और उधारी की लागत भी बढ़ती है।

 

 

पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने भी अर्जेंटीना का उदाहरण देते हुए सरकार को आरक्षित कोष से बड़ी रकम देने का विरोध किया था। अर्जेंटीना में भारी दबाव के बीच वहां के केंद्रीय बैंक ने साढ़े छह अरब डॉलर से ज्यादा की रकम सरकार को दे दी थी और कुछ महीने बाद ही उस देश की अर्थव्यवस्था का भट्टा बैठ गया था। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नरों सहित कई अर्थशास्त्रियों को यही चिंता थी। लेकिन मौजूदा गवर्नर का कहना है कि आरबीआई के पास पर्याप्त आरक्षित कोष है और यह काफी बड़ा है। इतनी बड़ी रकम से अर्थव्यवस्था के संकट को दूर किया  जा सकता हैं। ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा कि देश की अर्थव्यवस्था के संकट किस हद तक दूर होंगे!


भड़ास अभी बाकी है...