बहुत याराना लगता है...

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में ऐसा मायाजाल फैला रखा है कि लोग सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने घूम रहे हैं। देश में रोजी-रोटी का बड़ा संकट पैदा हो गया है। अर्थव्यवस्था पूरी तरह से तबाह हो गई है। बेरोजगारी के मामले में मोदी सरकार ने पिछली सभी सरकारों को पीछे छोड़ दिया है। स्थिति ये है कि सरकार ने रिजर्व बैंक का रिजर्व पैसा 1.76 लाख करोड़ रुपये भी निकाल लिया है। निजीकरण के नाम पर देश के संसाधनों को लुटवाने की सरकार ने पूरी तैयारी कर ली है। रेलवे यहां तक कि रक्षा विभाग भी संकट में है। आर्डिनेंस फैक्टरी में 82 हजार कर्मचारियों ने आंदोलन छेड़ रखा है। निजी कंपनियों में बड़े स्तर पर छंटनी का दौर चल रहा है।

 

प्रधानमंत्री ने लोगों को भावनात्मक मुद्दों में उलझा रखा है। गिने-चुने विरोधियों पर शिकंजा कसकर भ्रष्टाचार को मिटाने की बात की जा रही है। जबकि न केवल सरकार में शामिल बल्कि दूसरी पार्टियों से आकर मोदी और शाह के सामने आत्मसमर्पण करने वाले नेताओं को संरक्षण दिया जा रहा है। जनता को देशभक्ति का उपदेश दिया जा रहा है और सरकारी संसाधनों को लूट के लिए अपने करीबियों के हवाले कर दिया गया है। वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी अपने हर करीबी को संरक्षण दे रहे हैं पर अडानी ग्रुप पर तो कुछ ज्यादा ही मेहरबान हैं। 

 


 

अडानी ग्रुप से मोदी का बहुत पुराना याराना है,यह बात अब किसी से छुपी नहीं है। प्रश्न यह उठता है कि जब अडानी ग्रुप 100 फीसदी मुनाफा कमा रहा है और उनके मित्र के प्रधानमंत्री पद पर रहते देश आर्थिक संकट में है, तो फिर बैंकों से लिया हुआ कर्ज अडानी वापस क्यों नहीं करते? या फिर दूसरे उद्योगपतियों पर जो 5 लाख करोड़ का कर्ज है वह क्यों नहीं लिया जा रहा है और तो जो 2 लाख करोड़ का कर्ज एनपीए में डाल दिया गया है उसको लेने के प्रयास क्यों नहीं हो रहे हैं।

 

कर चोरी के मामले में अडानी ग्रुप के खिलाफ चल रही कार्रवाई पर यह रोक राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने लगाई है। डीआरआई के अतिरिक्त महानिदेशक केवीएस सिंह ने इससे संबंधित एक आदेश जारी कर अडानी ग्रुप के खिलाफ चल रही जांच को रोकने का बाकायदा निर्देश जारी किया। दरअसल अडानी के फर्मों पर कथित रूप से आयात किए गए वस्तुओं के मूल्य में हेराफेरी करने और कम टैक्स अदा कर सरकारी खजाने को राजस्व का नुकसान पहुंचाने का आरोप है। एक ओर मोदी सरकार आर्थिक संकट का रोना रो रही है वहीं दूसरी ओर अडानी से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों पर पर्दा डालकर सरकारी राजस्व को पलीता लगाया जा रहा है। अडानी ग्रुप पर राजस्व चोरी का गंभीर आरोप है। इस ग्रुप पर बिजली और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए आयात किए गए सामानों का कुल मूल्य बढ़ाकर 3975 करोड़ रुपये घोषित करने और उस पर शून्य या 5 फीसद से कम टैक्स देने के आरोप हैं।

 

 

इतना ही नहीं अडानी समूह की कंपनी अडानी ऑस्ट्रेलिया ने खुद बताया है कि उसे ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड स्थित कारमिकेल खदान पर काम शुरू करने के लिए पर्यावरण संबंधी अंतिम मंजूरी मिल गई है।अब अडानी की कंपनी वहां पर कोयला खदान पर काम करेगी। एक ओर तोहमारे  प्रधानमंत्री प्रकृति बचाने के लिए तरह-तरह की बाते करते देखे जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर प्रकृति पर ध्यान न देकर पहाड़ों पर अपने मित्र अडानी को खनन का कारोबार करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि अडानी के इस कारोबार का आस्ट्रेलिया में विरोध नहीं हुआ। वहां पर भी उनके प्रोजेक्ट को लेकर ऑस्ट्रेलिया के पर्यावरण संरक्षक लगातार विरोध कर रहे थे पर हमारे प्रधानमंत्री जी के प्रभाव में आखिरकार अडानी ग्रुप ने वह बाजी मार ही ली।

भड़ास अभी बाकी है...