कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती...

चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर जो चाँद की सतह पर उतरने से मात्र 2.1 किलोमीटर पर अज्ञात कारणों से अपने पथ से भटक गया और जिसका ग्राउंड स्टेशन से संपर्क टूट गया था, उसे इसरो के वैज्ञानिकों ने अपने भरसक प्रयासों से खोज लिया।  इसरो को चांद की सतह पर लैंडर की तस्वीर मिली है। ऐसा चांद का चक्कर लगा रहे ऑर्बिटर के द्वारा संभव हुआ। ऑर्बिटर ने विक्रम लैंडर की थर्मल इमेज ली है। इसरो प्रमुख ने कहा है कि चंद्रयान-2 में लगे कैमरों ने लैंडर के भीतर प्रज्ञान रोवर के होने की पुष्टि की है। इन सभी बातों के बाद अब यह उम्मीद लगाई जा रही है कि भारत का सपना, जो शुक्रवार की रात अधूरा रह गया था वो पूरा हो पाएगा। उन्होंने ये भी कहा कि अगर दोबारा संपर्क होता है तो यह एक अद्भुत बात होगी। वह आशा में है कि लैंडर इस स्थिति में हो कि वो 50 वॉट पावर जेनरेट कर सके और उसमे लगे सोलर पैनल को सूरज की रोशनी मिल रही हो। इसरो इसमें कितना कामयाब होगा, ये तो आने वाले दिनों में पता चल पाएगा।

क्या होती है थर्मल इमेज

 

इसरो प्रमुख के सिवन ने लैंडर की थर्मल इमेज लेने की पुष्टि की है। ऐसा ऑर्बिटर में लगे ऑप्टिकल हाई रिजोल्यूशन कैमरे (OHRC)द्वारा संभव हुआ है।यह कैमरा चांद की सतह पर 0.3 मीटर यानी 1.08 फीट तक की ऊंचाई वाली किसी भी चीज की स्पष्ट तस्वीर ले सकता है।हर चीज, जो शून्य डिग्री तापमान में नहीं होती हैं, उससे रेडिएशन होता रहता है। ये रेडिएशन तब तक आंख से नहीं दिखाई देते हैं, जब तक वो चीज़ इतनी गर्म न हो जाए, जिससे आँखों से दिखाई देने वाली रोशनी न निकलने लगे। जैसे- लोहा गर्म करते हैं तो एक सीमा के बाद इससे रोशनी निकलने लगती है, लेकिन इससे साधारण तापमान में रेडिएशन होता रहता है। इस थर्मल रेडिएशन को ऑर्बिटर में लगे हुए कैमरे कैद करते हैं और एक तस्वीर बनाते हैं और इसी तस्वीर को थर्मल इमेज कहते हैं। ये तस्वीर थोड़ी धुंधली होती हैं, जिनकी व्याख्या करनी पड़ती है। ये वैसी तस्वीर नहीं होती हैं, जैसी हम आम कैमरे से लेते हैं।

 

 

स्पीड कंट्रोल

 

सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर की स्पीड को 21 हज़ार किलोमीटर से 7 किलोमीटर प्रति घंटा करना था। यह कहा जा रहा है कि इसरो से स्पीड कंट्रोलिंग में ही चूक हुई और उसकी सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो पाई। लैंडर में चारों तरफ़ चार रॉकेट या फिर कहे तो इंजन लगे थे, जिन्हें स्पीड कम करने के लिए फायर किया जाना था। जब ये ऊपर से नीचे आ रहा होता है, तब ये रॉकेट नीचे से ऊपर की तरफ फायर किए जाते हैं ताकि स्पीड कंट्रोल किया जा सके। पांचवा रॉकेट लैंडर के बीच में लगा था, जिसका काम 400 मीटर ऊपर तक लैंडर को जीरो स्पीड में लाना था, ताकि वो आराम से लैंड कर सके, पर ऐसा नहीं हो सका।


कैसे करता है काम ऑर्बिटर

 

इसरो प्रमुख के सिवन ने कहा कि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर सात सालों तक काम कर सकेगा, हालांकि लक्ष्य एक साल का ही है। आख़िर यह कैसे होगा, इस सवाल के जवाब में बताया कि ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर के काम करने के लिए दो तरह की ऊर्जा की ज़रूरत होती है। एक तरह की ऊर्जा का इस्तेमाल उपकरणों को चलाने में किया जाता है। ये ऊर्जा, इलेक्ट्रिकल ऊर्जा होती है। इसके लिए उपकरणों पर सोलर पैनल लगाए जाते हैं ताकि सूरज की किरणों से यह ऊर्जा मिल सके। दूसरी तरह की ऊर्जा का इस्तेमाल ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर की दिशा बदलने के लिए किया जाता है। यह ज़रूरत बिना ईंधन से पूरी नहीं की जा सकती है। हमारे ऑर्बिटर में ईंधन अभी बचा हुआ है और यह सात सालों तक काम कर सकेगा।

 

 

“आज पूरे देश की जनता की तमन्ना यहीं है कि कितने जल्द से जल्द इसरो प्रमुख खुशखबरी देंगे कि लैंडर विक्रम से हमारा संपर्क जुड़ गया है, क्योकि चंद्रयान-2 आज इसरो का ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण देश का मिशन बन गया है।”