इस दिलेरी की आख़िर वजह क्या है??

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 371 एक विशेष प्रावधान है, जिसे बरक़रार रखा जाएगा। अमित शाह यह बातें असम के गुवाहाटी में आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद पूर्वोत्तर के लोगों को यह डर सता रहा है कि कहीं केंद्र सरकार अनुच्छेद 371 को न हटा दे। अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने का प्रस्ताव संसद में पेश करने वाले अमित शाह आख़िर अनुच्छेद 371 को क्यों बचाना चाहते हैं? दिए बयान के बाद यह प्रश्न जनता के मन में कौंध रहा है कि आखिर ऐसा क्यों है कि अमित शाह अनुच्छेद 371 पर चुप्पी साधे हुए है। इस सवाल का जवाब जानने से पहले यह समझना ज़रूरी है कि आख़िर अनुच्छेद 371 है क्या और यह अनुच्छेद 370 से अलग कैसे है?

 

अनुच्छेद 370 क्या है?

अमित शाह ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि "अनुच्छेद 370 अस्थायी प्रावधानों के संदर्भ में था जबकि अनुच्छेद 371 विशेष प्रावधानों के संदर्भ में है, दोनों के बीच काफ़ी अंतर है।"

 

 

भारतीय संविधान के भाग-21 में अनुच्छेद 369 से लेकर अनुच्छेद 392 तक को परिभाषित किया गया है।इस भाग को 'टेम्पररी, ट्रांजिशनल एंड स्पेशल प्रोविजन्स' का नाम दिया गया है। इसमें जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 और पूर्वोत्तर के कई राज्यों के लिए विशेष प्रावधान करने वाले अनुच्छेद 371 का भी ज़िक्र है।राज्यों के लिए विशेष प्रावधान इसलिए बनाए गए थे क्योंकि वे अन्य राज्यों के मुक़ाबले काफ़ी पिछड़े थे और उनका विकास समय के साथ सही तरीक़े से नहीं हो पाया था। साथ ही यह अनुच्छेद उनकी जनजातीय संस्कृति को संरक्षण प्रदान करता है। जब संविधान तैयार किया गया था, उस वक़्त इन विशेष प्रावधानों का ज़िक्र उसमें नहीं किया गया था। इसे संशोधन के ज़रिए जोड़ा गया था।


क्यों बनाये रखना चाहते है अमित शाह अनुच्छेद 371

 

अमित शाह ने अनुच्छेद 371 को बनाये रखने का बयान देकर पूर्वोत्तर के उन राज्यों को भरोसा दिया है जहां और अधिक स्वायत्ता की मांग लंबे समय से हो रही है। आपको बता दें कि अनुच्छेद 371 में ज़मीन और प्राकृति संसाधनों पर स्थानीय लोगों के विशेषाधिकार की बात कही गई है। मिज़ोरम,सिक्किम, नागालैंड और मणिपुर में अनुच्छेद 371 लागू है और बाहरी लोगों को यहां ज़मीन ख़रीदने की अनुमति नहीं है। शिक्षाविद् के अनुसार,”दोनों अनुच्छेद में अंतर यह है कि अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा हुआ करता था, जबकि अनुच्छेद 371 के तहत पूर्वोत्तर के राज्यों को अलग झंडा नहीं होता है। सिर्फ़ झंडा ही नहीं, जम्मू-कश्मीर का संविधान भी अलग होता था। वहीं अनुच्छेद 371 के तहत आने वाले राज्यों का अलग संविधान नहीं होता है। जब जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म करने का मोदी सरकार ने फ़ैसला लिया तो ये कहा गया कि अनुच्छेद 370 की वजह से ही राज्य में पिछड़ापन है। लेकिन पूर्वोत्तर के राज्यों में यह तर्क नहीं चलेगा। आलोचकों का कहना है कि बीजेपी सुविधा की राजनीति के तहत ऐसा कर रही है।

 

 

 

पूर्वोत्तर के राज्यों में अधिक स्वायत्ता की मांग लंबे वक़्त से हो रही है। अनुच्छेद 371 को बरक़रार रखने के पीछे भाजपा की यह सोच हो सकती है कि जो पहले से इन राज्यों को दिया गया है, स्थानीय लोग उसे बचाए रखें। फिलहाल अमित शाह ने अपनी पार्टी और सरकार के इरादे तो बीता ही दिए हैं। ज़ाहिर है पूर्वोत्तर में अभी नेशनल सिटिज़न रजिस्टर यानी एनआरसी का मुद्दा चल ही रहा है, ऐसे में सरकार वहां कोई और मोर्चा खोलकर रिस्क नहीं लेना चाहेगी।


भड़ास अभी बाकी है....