क्योंकि सूरज को नहीं दीपक दिखाने की जरूरत...

मिशन चंद्रयान-2 को लेकर देश और राजनीतिक महकमों में जो कुछ चल रहा है वह आश्वस्त करने वाला अथवा चिंतित बना देने वाला है। सोशल मीडिया पर मिशन चंद्रयान-2 की आंशिक असफलता को लेकर चलने वाला विमर्श भी धीरे-धीरे अपशब्दों से भरी उन अमर्यादित बहसों का रूप ले रहा है, जो तथाकथित राष्ट्रवादियों और तथाकथित देशद्रोहियों के मध्य आजकल अक्सर देखने को मिलती  हैं। पूरे देश में अपनी राष्ट्रभक्ति सिद्ध करने की एक होड़ सी मची हुई है। आंशिक भ्रष्टाचार में डूबे भारतीय समाज का हर तबका इसरो के वैज्ञानिकों को हौसला देकर मानो उन पापों का प्रायश्चित कर रहा है जो उसने जीवन में किये हैं। सबका एक ही राग है- हम इसरो के वैज्ञानिकों के साथ हैं। आप हताश न हों। आप हौसला न खोएं। 

 

इस प्रकार से एक वैज्ञानिक प्रयोग के दौरान आई तकनीकी बाधा को एक राष्ट्रीय विपत्ति में तब्दीलकर दिया गया है। वैज्ञानिक अविष्कारों और अन्वेषणों की सामान्य सी जानकारी रखने वाला व्यक्ति भी यह जानता है कि निरंतर प्रयोग, संकुचित असफलता और निरंतर सुधार ही निर्दिष्ट लक्ष्य तक पहुंचाते हैं। वैज्ञानिक की कार्यप्रणाली में न तो भावनाओं के लिए स्थान होता है और न ही प्रदर्शनप्रियता के लिए। स्वयं को निर्लिप्त, अचर्चित और पारिवारिक-सामाजिक-राजनीतिक व्यस्तताओं से दूर रखना हर वैज्ञानिक की पहली पसंद होती है।

 

वैसे एकांत साधना वैज्ञानिक की विवशता नहीं होती। एकांत तो वैज्ञानिक का खुद से चुना हुआ आनंद लोक होता है। जिन वैज्ञानिकों पर सांत्वना भरे शब्दों की बौछार की जा रही है, यदि उन्हें एकल एवं स्वतंत्र छोड़ दिया जाए तो शायद उनका सर्वश्रेष्ठ सामने आ सकेगा। इसरो के वैज्ञानिक देश और विश्व की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं हैं। हर तकनीकी समस्या का समाधान निकालने में वे सक्षम हैं किंतु जन अपेक्षाओं के इस अप्रत्याशित दबाव का सामना करने का मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण शायद उनके पास नहीं है, क्योंकि वे कोई राजनेता या सामाजिक कार्यकर्ता तो हैं नहीं जो हल्ला बोल करे।

 

 

जिस तरह से मिशन चंद्रयान-2एक पब्लिक इवेंट में बदला गया, वह चिंतित करने वाला है। प्रारम्भ से ही भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का इतिहास गौरवशाली रहा है। हमारे वैज्ञानिकों ने उस समय भी दुनिया को चौंकाने वाली सफलताएं हासिल की थीं जब न तो इतना प्रो एक्टिव राजनीतिक नेतृत्व था न इतना सनसनी पसंद संचार माध्यम। देश के किसान वैज्ञानिकों के लिए अन्न उपजा रहे हैं। देश के मजदूर उनके लिए आवश्यक सुख-सुविधाओं के निर्माण में लगे हैं। देश के शिक्षक इन वैज्ञानिकों को योग्य बनाने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। देश की संसद, समूचा प्रशासन तंत्र, पुलिस और न्याय व्यवस्था सभी मिलकर इन वैज्ञानिकों और उनके परिवार के लिए अमन चैन का वातावरण सृजित कर रहे हैं। आम भारतवासी तो अब तक ईमानदारी से कर्त्तव्य निर्वहन को ही राष्ट्रभक्ति समझता आया है। उसका अपने वैज्ञानिकों पर इतना प्रबल विश्वास है कि वह उन पर अपनी अनगढ़ अपेक्षाओं का दबाव डालना नहीं चाहता। वह अपना कर्तव्य का निर्वहन कर चैन की नींद सोने में विश्वास रखता है। दूसरी ओर वैज्ञानिक भी एकाग्रचित्त होकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सांसारिक सुख-सुविधाओं और सार्वजनिक जीवन का परित्याग कर जी-जान से जुटे हुए हैं। उन्हें अपने लक्ष्य का ज्ञान भी है और लक्ष्य के मार्ग में आने वाली बाधाओं का बोध भी। वैज्ञानिक शब्दावली में असफलता जैसे शब्द के लिए कोई स्थान नहीं है। असफलता वैज्ञानिक के लिए प्रयोग के दौरान आने वाला एक तकनीकी अवरोध है, जिसे दूर कर लक्ष्य की ओर अग्रसर होना पड़ता है। समस्या तब उत्पन्न होती है जब चंद्रयान-2 की लैंडिंग को इस तरह सार्वजनिक कर दिया जाता है जैसे यह विश्व कप क्रिकेट का फाइनल मैच हो। इतना ही नहीं सोशल मीडिया पर भी इसरो के वैज्ञानिकों के लिए शुभकामना संदेशों की बाढ़ आ जाती है क्योंकि शुभकामना न दे पाने वालों की राष्ट्रभक्ति पर संदेह भी किया जा सकता है, इसलिए कोई भी यह अवसर खोना नहीं चाहता।

 

चंद्रयान-2 की लांचिंग 15 जुलाई के प्रथम प्रयास के दौरान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी श्री हरिकोटा में मौजूद थे। किंतु तकनीकी खराबी के कारण लॉन्चिंग को  टाल दिया गया था। 7 सितंबर को चंद्रयान-2 की लैंडिंग के दौरान प्रधानमंत्री जी इसरो मुख्यालय में उपस्थित थे। हो सकता है कि प्रधानमंत्री जी अपने उत्साह और उत्सुकता को नियंत्रित करने में स्वयं को असमर्थ पा रहे हों इसीलिए उन्होंने इसरो मुख्यालय जाने का निर्णय ले लिया हो। निश्चित ही उनके मन में यह विचार भी रहा होगा कि उनकी उपस्थिति इसरो के वैज्ञानिकों को प्रेरणा देने के साथ उनका मनोबल भी बढ़ाएगी जिससे वे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगे। यद्यपि मिशन चंद्रयान- 2 जैसे अभियान इतने जटिल होते हैं कि इनकी एक-एक एक्टिविटी और प्रोसेसिंग पर वर्षों से शोध और अन्वेषण कर इनकी ऐसी रूपरेखा तय की जाती है, जो लगभग अपरिवर्तनीय होती है। इसलिए इस प्रक्रिया में मोटीवेट होकर पर्सनल दिखाने की गुंजाइश नहीं होती जैसा युद्ध और खेल के मैदान में होता है, लेकिन  दुर्भाग्यवश यह वैज्ञानिक प्रयोग 90-95 प्रतिशत सफलता ही प्राप्त कर सका और लैंडर विक्रम अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार चांद की सतह पर उतर न पाया। विक्रम लैंडर से संपर्क टूटने के बाद प्रधानमंत्री जी कुछ हताश से लगते हुए मध्यरात्रि इसरो मुख्यालय से निकल गए। बाद में शायद उन्हें यह बोध हुआ हो कि इस तरह उनके अचानक चले जाने की व्याख्या अनेक प्रकार से हो सकती है। शायद उन्हें यह भी लगा हो कि इस लैंडिंग को मेगा इवेंट में बदलने की यह कोशिश अब नकारात्मक संदेश दे सकती है इसलिए उन्होंने सुबह 8 बजे इसरो के वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कहा कि देश आपके साथ है। 

 

 

ध्यान देने वाली बात ये है कि किसी भी देश का अंतरिक्ष कार्यक्रम एक संवेदनशील मसला होता है और इसका संचालन उस देश की सामरिक, आर्थिक, व्यापारिक और संचारगत आवश्यकताओं के आधार पर होता है। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को आम जनता और सार्वजनिक दबावों से दूर रखा जाता है। यह गोपनीयता के लिए भी आवश्यक होता है और उनके कार्य की प्रकृति के अनुकूल भी होता है, क्योंकि गहन अनुसंधान एकांत और एकाग्रता की मांग करते हैं।