Say नो To प्लास्टिक…

यह किसी से छिपा नहीं है कि रोजमर्रा के जीवन में प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग ने आज किस तरह की मुसीबतें पैदा कर दी हैं। पर्यावरण को होने वाले नुकसान के अलावा कचरे के ढेर और नालों के जाम होने की वजह से खड़ी होने वाली परेशानियों का सामना लोगों को आमतौर पर करना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि इस समस्या की विकरालता और इसके घातक असर के बारे में लोगों को जानकारी नहीं है। वे अपने स्तर पर इससे उपजी मुश्किलों को झेलते ही हैं, कई स्तरों पर चलने वाले जागरूकता अभियानों के रास्ते भी लोगों के पास इस तरह की जानकारियां पहुंचती हैं कि प्लास्टिक के अंधाधुंध उपयोग का नतीजा पर्यावरण से लेकर आम जनजीवन तक के लिए कितना घातक है। खासतौर पर एक बार उपयोग में आने वाले प्लास्टिक के सामान कचरे की शक्ल में प्रदूषण का पहाड़ खड़ा कर रहे हैं। इसके बावजूद लोगों के बीच प्लास्टिक के इस्तेमाल के मामले में घोर लापरवाही देखी जाती है। लोग यह सोचना या समझना जरूरी नहीं समझते कि प्लास्टिक के सामानों के जरिए होने वाली मामूली सुविधा की कीमत उनके साथ-साथ समूचे पर्यावरण को कैसी चुकानी पड़ रही है।

 


 

इसी के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह आह्वान किया है कि वक्त आ गया है जब एक बार इस्तेमाल में आने वाले प्लास्टिक को अलविदा कह दिया जाए। संयुक्त राष्ट्र की ओर से आयोजित ‘कॉप- 14’ सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने विश्व समुदाय से यह आग्रह किया कि अगर दुनिया के सामने खड़ी होने वाली गंभीर चुनौतियों को कम करना है तो उसके लिए एक बार उपयोग में आने वाले प्लास्टिक से छुटकारा हासिल करना होगा। इससे पहले फ्रांस के समुद्र तटीय शहर बिआरित्ज में जी-7 शिखर सम्मेलन में भी उन्होंने सिंगल यूज़ प्लास्टिक के इस्तेमाल को रोकने का मुद्दा उठाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्लास्टिक से पैदा मुश्किलों के ध्यान में रखते हुए पर्यावरण की सुरक्षा के लिए लंबे समय से चेतावनी देते रहे हैं।


सरकार की ओर से भी अक्सर ऐसी घोषणाएं सामने आती रहती हैं कि प्लास्टिक और उससे बने सामान के उपयोग को सीमित और उससे आगे प्रतिबंधित किया जाए। अब तो  सरकार के साथ-साथ देश की कई अदालतों ने भी प्लास्टिक पर पाबंदी लगाने के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी किए। इसके बाद कुछ राज्यों ने इसके उपयोग को प्रतिबंधित करने की घोषणाएं भी कीं। लेकिन इन घोषणाओं के बाद आज भी पॉलिथीन और प्लास्टिक से बने दूसरे तमाम सामानों का आम उपयोग देखने को मिल ही जाता है। परिणामवश, न केवल आम जनजीवन के सामने कई तरह की मुश्किलें खड़ी हो रही हैं, बल्कि समूचा पर्यावरण इससे बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। नहरों-नालों के बाधित होने के अलावा जमीन की उर्वरा शक्ति क्षीण हो रही है। आम लोगों के बीच जागरूकता और जिम्मेदारी का इस कदर अभाव है कि बहुत साधारण सुविधा के लिए इससे होने वाले नुकसानों की परवाह नहीं की जाती। यानी सरकार और समाज के स्तर पर इस मामले में अब तक जिस तरह की अनदेखी कायम रही है, उसमें तय है कि प्लास्टिक से पैदा मुश्किलों में इजाफा होगा। जाहिर है, प्लास्टिक के उत्पादन को नियंत्रित या फिर प्रतिबंधित करने से लेकर जनजागरूकता के इस मोर्चे पर एक व्यापक अभियान चलाने की जरूरत है, ताकि लोग खुद इससे दूर हो सकें।


 

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर प्लास्टिक के बेलगाम इस्तेमाल को पूरी तरह रोका नहीं गया तो आने वाले वक्त में किस तरह की चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं। लेकिन चिंता जताने और अदालती सख्ती के बाद कुछ घोषणा करने से ज्यादा सरकार को कोई कारगर कदम उठाना जरूरी नहीं लगता। सवाल है कि जब तक पॉलिथीन सहित प्लास्टिक से बने दूसरे तमाम सामान बाजार में उपलब्ध हैं, तब तक उनके उपयोग को किस हद तक सीमित किया जा सकेगा!

 

भड़ास अभी बाकी है...