जिहादी तन्जीमों का फलसफ़ा है आतंकवाद...

9/11 के जिहादी हमले में न्यूयार्क और वॉशिंगटन में जो मारे गए थे, उनकी याद में बीते हफ्ते दुनिया की आँखें फिर एक बार नम हो गयी। इतना भयावह था इस हमले का मंज़र जिसका अठारह साल बाद भी ख्याल आ जाने से दिल सहम जाता है, यह सबसे बड़ा जिहादी हमला था। जिसकी स्मृति सभा में हमेशा शामिल होते हैं राष्ट्रपति और अन्य बड़ी हस्तियां। अमेरिकी मीडिया हर साल दिखाती है न्यूयार्क में उन आसमान को छूती इमारतों का ध्वस्त होना और लोगों का ऊंची मंजिलों से गिरना। इस हमले के बाद दुनिया बदल गई थी। इसको याद क्यों न किया जाए हर साल। शिकायत सिर्फ यह है कि जिस जिहादी सोच के कारण यह हमला हुआ था, उसको याद क्यों नहीं कर रही है दुनिया? क्यों नहीं डोनाल्ड ट्रंप को याद आया, जब पिछले दिनों इमरान खान से मिले थे कि यह उसी देश के प्रधानमंत्री हैं, जिहादी सोच का केंद्र है। अगर उन्हें इस बात की याद आई होती तो शायद इतने प्यार से न कहते इमरान खान को कि कश्मीर समस्या का हल ढूंढ़ने में वे मदद करने को तैयार हैं।

 


 

शायद विदेशी राजनीतिक समस्याओं की समझ कम है ट्रंप साहब को, वरना इमरान खान से मिलने से पहले जान जाते कि भारत और पाकिस्तान के बीच सबसे बड़ी समस्या जिहादी आतंकवाद है, कश्मीर नहीं। कश्मीर पर बातचीत का सिलसिला हमारे दोनों देशों के बीच चलता रहा है दशकों से, लेकिन 26/11 वाले हमले के बाद बिल्कुल रुक गया। इसलिए कि पाकिस्तान के शासकों ने अभी तक स्वीकार नहीं किया है कि इस हमले की पूरी तैयारी उनकी सर-जमीन से हुई थी। सबूत पर सबूत पेश किए जाने के बाद अभी तक नहीं स्वीकार करने को तैयार हैं कि जिन हत्यारों को मुंबई भेजा गया था, कदम-कदम पर हुक्म दे रहा उनका आका, पाकिस्तान में कोई ऐसा व्यक्ति, जो खुद शायद पाकिस्तानी सेना का था। उनमें जो बातचीत हो रही थी, उसकी रिकॉर्डिंग सबूत के तौर पर पाकिस्तान को भेजी गयी। डेविड हेडली ने भी अमेरिका की  जेल से बयान दिया कि पाकिस्तान का हाथ था इस हमले में। जब तक पाकिस्तान के शासक स्वीकार करने को तैयार नहीं होते हैं कि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसी जिहादी तन्जीमों को स्थापित किया है उसकी सेना ने, तब तक बातचीत का कोई फायदा नहीं है। लेकिन इमरान खान जब से बने हैं प्रधानमंत्री, उन्होंने दुनिया के सामने अपनी छवि एक अमनपरस्त व्यक्ति की बनाने भरसक कोशिशें की है। जहां जाते हैं वहां दुनिया के बड़े राजनेताओं से कहते हैं कि उन्होंने कई बार दोस्ती का हाथ बढ़ाया, लेकिन भारत ने हमेशा उसे ठुकरा दिया। इतना ही नहीं जब से अनुछेद 370 को हटाया गया है, उन्होंने अमन-शांति की बातें छोड़ कर नरेंद्र मोदी और भारत को बदनाम करना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अपने हर दूसरे भाषण में कहते हैं कि हमारे देशों के बीच अमन-शांति इसलिए नहीं आ सकती है, क्योंकि नरेंद्र मोदी हिटलर हैं और उनकी सोच आरएसएस की सोच से प्रभावित है, जो प्रेरणा लेती है नाजी सोच से। हिंदुत्व की तुलना करते हैं नाजी सोच के साथ, लेकिन कभी उन्होंने यह नहीं देखा कि नाजी सोच की तुलना जिहादी सोच से करते तो उनकी बातों में ज्यादा वजन होता। जिहादी इस्लाम का आधार है कि जो लोग इस्लाम को नहीं मानते, उनको मारना अल्लाह का हुक्म है। जिहादी सोच के मुताबिक बुतपरस्तों को मारना पाप नहीं, पुण्य है। इस सोच के मुताबिक जन्नत के दरवाजे खुल जाते हैं, फौरन उन फिदाइनों के लिए, जो अपनी जान देकर काफिरों को मारते हैं।

 


 

यही सोच थी, जिससे प्रेरणा लेकर उन उन्नीस सउदी युवकों ने अठारह साल पहले चार विमानों को अगवा करके न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और वॉशिंगटन में पेंटागन के अंदर उड़ाए थे। जब अमेरिकी सरकार को जानकारी मिली कि इस पूरी साजिश को अफगानिस्तान से ओसामा बिन लादेन ने रचा था, तो अफगानिस्तान में जंग शुरू हुई, जिसमें पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ से मदद जबर्दस्ती ली गई। लेकिन मुशर्रफ ने ओसामा बिन लादेन और उसके साथियों को चुपके से पाकिस्तान में पनाह दी, जिसके बारे में अमेरिका को एक पूरे दशक तक खबर नहीं थी। लेकिन जब उसे खबर मिली तो बिना पाकिस्तान की इजाजत लिए उसने लादेन को ढूंढ़ निकाला और उसे मार कर उसकी लाश को समंदर में फेंक दिया था, लेकिन ऐसा करने के बाद भी जिहादी सोच का खात्मा नहीं हुआ। उस सोच को अपना दीन बना कर 2014 में आइएसआइएस ने इराक में अपनी खिलाफत बनाई। खिलाफत ऐसी थी कि औरतों को बेनकाब घर से निकलने की कोशिश भर करने से उन्हें गोली मार दिया जाता था। इतना ही नहीं यजीदी औरतों और बच्चियों को गुलाम बना कर बाजारों में बेचा गया, क्योंकि जिहादी सोच है कि काफिर औरतों के साथ कुछ भी किया जा सकता है। माना कि अभी तक पाकिस्तान में इस तरह की चीजें नहीं शुरू हुई हैं, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए हमें कि आसिया बीबी को एक दशक जेल में सड़ना पड़ा, सिर्फ इसलिए कि गांव की कुछ औरतों ने शिकायत की थी कि इस इसाई औरत ने इस्लाम के रसूल के खिलाफ गुस्ताखी की थी। इमरान खान ऐसी जिहादी सोच को आज के दौर की नाजी सोच मानें या न मानें, पूरी दुनिया मानती है। जब तक पाकिस्तान के शासक इस सोच से प्रभावित हैं, तब तक अमन-शांति की बात कैसे हो सकती हैं? हमारे बीच समस्या कश्मीर नहीं है, बल्कि जिहादी आतंकवाद है। जिसकी लकीर पकिस्तान से गुजरती है।

 

 

भड़ास अभी बाकी है...