ये आर्थिक मंदी बीमार हीं ना कर दें...

आज देश की अर्थव्यवस्था में सुस्ती को लेकर हर तरफ चिंता है। पिछले कुछ महीनों में अर्थव्यवस्था से जुड़े कई ऐसे आंकड़े आए हैं, जिससे लोगों के माथों पर चिंता की लकीरें साफ झलकने लगी है। इनमें जीडीपी ग्रोथ में कमी, ऑटो और एफएमसीजी सेक्टर सहित कई उद्योगों की बिक्री में गिरावट, शेयर बाजार में कमजोरी इतना ही नहीं अनेकों कंपनियों में कई दिनों तक काम बंद करने का ऐलान और कंपनियों में कर्मचारियों की छंटनी शामिल हैं। ऐसे में बुरे दौर से गुजर रही अर्थव्यवस्था के चलते भारतीय कंपनियों का सीनियर प्रबंधन मानसिक तनाव से जूझ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, मनोचिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों के पास इन दिनों पहले की अपेक्षा कई गुना लोग पहुंच रहे हैं। इनके ऊपर नौकरी बचाने का दबाव, नए और अवास्तविक टारगेट और इनके साथ नौकरी खोने के डर भी हावी है। पिछले 6 महीनों में लोगों में डिप्रेशन और चिंता संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं। सर्वे के मुताबिक, कंपनियों के वरिष्ठ कर्मचारियों में तीन गुना तेजी से मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट दर्ज की गई है। ऐसा माना जा रहा है कि कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य में लगातार गिरावट का मुख्य कारण देश में बढ़ रही आर्थिक मंदी है। कर्मचारियों की तरफ से मानसिक तनाव को लेकर मिलने वाली शिकायतें 2018 के मुकाबले दोगुनी होकर 2019 में 16 फीसदी हो गई हैं। इस रिपोर्ट पर काम को लेकर तनाव या पैसों को लेकर परेशानी से होने वाली चिंता संबंधी बीमारियों से न सिर्फ संस्थाओं में काम करने वाले लोग जूझ रहे हैं, बल्कि खुद व्यापार करने वाले लोग भी परेशान हैं।

 

 

आज लोगों को नौकरी जाने का डर, आर्थिक नुकसान और उससे पैदा होने वाले तनाव इतना अधिक है कि वह अब अपनी आने वाली पीढ़ी की चिंता छोड़ पहले अपने वर्तमान को ही व्यवस्थित कर लें उनके लिए इतना ही पर्याप्त हो गया है।


भड़ास अभी बाकी है...