इस पर भी तो गौर फरमाइये...जनाब !

संशोधित मोटर वाहन अधिनियम लागू होने के बाद से देश में दहशत का माहौल बना हुआ है। देश में ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने पर लगने वाले जुर्माने को लेकर बहस भी हो रही है। जुर्माने की राशि में दस फीसदी से दस गुना तक की बढ़ोतरी को लेकर लोगों में आक्रोश है उनका कहना है कि एक झटके में इतना जुर्माना बढ़ाना उचित नहीं है लेकिन सरकार का यह मानना है कि बेकाबू होती सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के लिए जरूरी है कि ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों पर लगाम कसी जाए। इसी वजह से जुर्माने की राशि बढ़ाई गई है ताकि वाहन चलाते हुए लोग नियम न तोड़ें और भारी जुर्माने की वजह से उनमें डर भी हो। सड़क दुर्घटनाओं के मामले में देश की स्थिति सचमुच गंभीर है। सालाना करीब डेढ़ लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवाते हैं। साल 2017 के आंकड़ों के मुताबिक उस साल 4 लाख 64 हजार 910 ऐक्सिडेंट हुए जिनमें 1 लाख 47 हजार 913 लोगों की जान गई और 4 लाख 70 हजार से अधिक लोग घायल हो गए। इसका अर्थ है कि देश में प्रति घंटे 53 ऐक्सिडेंट होते हैं और इनमें 17 लोगों की जान चली जाती है। आंकड़े बताते हैं कि 2017 में 48 हजार 746 ऐसे व्यक्तियों की मौत हुई जो दोपहिया वाहन पर थे। इनमें से 73 फीसदी से अधिक ने हेलमेट नहीं लगाया था। 76 फीसदी ऐसे ऐक्सिडेंट थे, जिनका कारण तेज रफ़्तार या गलत दिशा में चले आना रहा। इन आंकड़ों के जरिए ही सरकार तर्क दे रही है कि ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों के साथ सख्ती करके ही सड़क दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है।

 

 

लेकिन सरकार ने जिन आंकड़ों को आधार बनाया है, क्या वे पूरी तरह से दुरुस्त हैं? इन आंकड़ों पर सवाल इसलिए उठता है क्योंकि अब तक देश के अधिकांश राज्यों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि ऐक्सिडेंट के कारणों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाए। सब कुछ उस पुलिसकर्मी पर निर्भर करता है, जो घटनास्थल पर पहुंचता है। अधिकांश मामलों में सब इंस्पेक्टर या उससे नीचे के अधिकारी ही दुर्घटनास्थल पर जाते हैं। कोई हाई प्रोफाइल मामला न हो तो आला अफसर ऐसे मामलों की रिपोर्ट तक नहीं लेते। सरकार को चाहिए कि वह जुर्माना बढ़ाने के साथ ही इस बात पर भी फोकस करे कि हर ऐक्सिडेंट का सटीक विश्लेषण हो। इसके लिए जिला स्तर पर एक्सपर्ट्स की टीम बनाने की जरूरत है ताकि ऐक्सिडेंट होते ही यह टीम हर पहलू का विश्लेषण करे।

 

 

वाहन की मकैनिकल जांच से लेकर सड़क की बनावट, ड्राइवर की स्थिति, सड़क पर रोशनी और अन्य परिस्थितियों पर भी गौर किया जाए। पश्चिमी देशों में न केवल लाइसेंस बनाने की प्रक्रिया को गंभीरता से लिया जाता है, बल्कि हर ऐक्सिडेंट की भी पूरी बारीकी से जांच होती है। लेकिन हमारे देश में तो अब तक ऐसा कोई सिस्टम बना ही नहीं है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह सबसे पहले इस तरह की एक्सपर्ट टीमें बनाने की कवायद करे जो हर पहलू की जांच कर ऐक्सिडेंट की सही वजह पता कर और उसके सही कारण सामने आने पर ही उसका निवारण किया जायें। सिर्फ अनुमान के आधार पर उपाय करना कितना फायदेमंद होगा, कहा नहीं जा सकता। वहीं रिपोर्ट के आधार पर एक्सीडेंट होने की एक बड़ी वजह यह भी सामने आयी है कि हमारे देश में ड्राइविंग की ट्रेनिंग देने की व्यवस्था बेहद लचर है। व्यापारिक वाहन के लिए तो कुछ ट्रेनिंग सेंटर खुले भी हैं लेकिन घरेलू वाहन चलाने के लिए अक्सर लोग अपने आस-पास के मोहल्लों में खुले ट्रेनिंग सेंटरों की मदद लेते हैं। ये ट्रेनिंग सेंटर कितने कारगर हैं, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुछ साल पहले जब ऐसे ट्रेनिंग सेंटरों के टीचरों का एग्जाम लिया गया तो वह स्वयं ही निपुणता से बहुत दूर पाए गए। आज भी हमरे देश में प्रशिक्षित ड्राइवरों की अत्यधिक कमी है। इनकी मौजूदा संख्या जरूरत से 20 लाख कम बताई जाती है। इस कमी का भी कारण ट्रेनिंग का अभाव ही है। सरकार वाकई सड़क दुर्घटनाओं को रोकना चाहती है तो उसे इन पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिए।

भड़ास अभी बाकी है...