डूबती अर्थव्यवस्था का जादुई चिराग...बैंकों का आपसी विलय

बीते दिनों केंद्र सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए कई बैंकों के आपस में विलय की घोषणा की है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का पंजाब नेशनल बैंक में विलय किया जाएगा। विलय के बाद पंजाब नेशनल बैंक भारत का दूसरा सबसे बड़ा सार्वजनिक बैंक बन जाएगा और उसका कारोबार 17.95 लाख करोड़ रुपये का हो जाएगा। सिंडिकेट बैंक का विलय केनरा बैंक में होगा। विलय के बाद केनरा बैंक देश का चौथा सबसे बड़ा बैंक हो जाएगा। आंध्रा बैंक और कॉरपोरेशन बैंक का विलय बैंक ऑफ इंडिया में होगा और यह देश का पांचवां सबसे बड़ा बैंक बन जाएगा, जिसका कुल कारोबार 14.59 लाख करोड़ रुपये होगा। इलाहाबाद बैंक का विलय इंडियन बैंक में होगा और यह विलय के बाद देश का सातवां सबसे बड़ा बैंक बन जाएगा। इन दस बैंकों के विलय से चार बड़े बैंक बन जाएंगे। इस ताजा घोषणा के बाद देश में कुल 12 सार्वजनिक बैंक रह जाएंगे। सरकार का कहना है कि इस फैसले के कारण देश के सार्वजनिक बैंक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हो जाएंगे। बैंकों के एकीकरण से भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में गति आएगी। सरकार का मानना है कि इस कदम से बैंकों की बैलेंसशीट मजबूत होगी और वे ज्यादा कर्ज देने की स्थिति में होंगे। वित्त मंत्री ने आश्वस्त किया है कि बैंकों के प्रस्तावित विलय से किसी भी कर्मचारी की नौकरी नहीं जाएगी। उन्होंने बैंक यूनियनों की चिंताओं को तथ्यहीन भी बताया और दोहराया कि नई बैंकिंग व्यवस्था देश की कर्ज की जरुरतों को पूरा करने में सक्षम होगी और भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य में मददगार साबित होगी। बैंकों के विलय को लेकर सरकारी वक्तव्यों से जाहिर है कि बैंकों के विलय को एक ऐसे जादुई चिराग के रूप में पेश किया गया है कि इससे अर्थव्यवस्था का संकुचन छू-मंतर हो जाएगा और सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर छलांग मारने लगेगी। लेकिन देश के बैंकों के विलय के पिछले अनुभवों को देखें, तो ये सरकारी दावे भ्रामक प्रतीत होते हैं।

 

 

अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी यूनियन के महासचिव वेंकटचलम के इस आरोप को खारिज नहीं किया जा सकता है कि यह बैंकों के विलय का उचित समय नहीं है, क्योंकि बैंकों का एनपीए (नॉन परफार्मिंग एसेट) घटना शुरू हो गया था। मगर अब उनका ध्यान इस विलय से हट जाएगा। विलय की प्रक्रिया में एक साल या इससे ज्यादा समय लग सकता है। वेंकटचलम का मानना है कि प्रस्तावित विलय बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों के लाभ के वास्ते किया जा रहा है। ऐसे में बैंकों के खराब बड़े कर्ज (बैड लोन) बढ़ सकते हैं। विलय के चलते एनपीए की रिकवरी धीमी पड़ जाएगी, क्योंकि पूरा ध्यान एकीकरण से जुड़े मामलों को सुलझाने में ही लगा रहेगा। बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद कम से कम 39 बैंकों के विलय या अधिग्रहण हो चुके हैं। हर बार यह दलील दी जाती है कि विलय से बैंकों का आर्थिक आधार मजबूत होगा। उनकी कर्ज देने की क्षमता बढ़ेगी, लागत में कमी आएगी और अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, लेकिन यह मान्यताएं सिर्फ मान्यताएं ही रह जाती हैं। अनुभव के आधार पर पंजाब नेशनल बैंक को ही ले लें। 1993 में पीएनबी में न्यू बैंक ऑफ इंडिया का विलय किया गया था। यह देश में राष्ट्रीयकृत बैंकों का पहला विलय था। दोनों बैकों के मुख्यालय दिल्ली में थे। न्यू बैंक ऑफ इंडिया की आर्थिक हालत बहुत खराब थी। उसके पास अपने जमाकर्ताओं का पैसा लौटाने के लिए नकदी नहीं थी। इस विलय से पंजाब नेशनल बैंक की लाभप्रदता पर भारी असर पड़ा और विलय के नकारात्मक प्रभावों से उबरने में पंजाब नेशनल बैंक को कई साल लग गए। बरसों से मुनाफे में चल रहे इस बैंक को 1996 में 96 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा। इस विलय के कारण न्यू इंडिया के कर्मी दहशत में थे और उनमें से कई कर्मियों ने अपनी नौकरी की सुरक्षा की खातिर प्रबंधन पर मुकदमे ठोक दिए थे। पंजाब नेशनल बैंक का प्रबंधन कितना चुस्त-दुरस्त है, यह पिछले सालों में नीरव मोदी और मेहुल चौकसी धोखाधड़ी मामले से सबके सामने है। भारतीय स्टेट बैंक में उसकी सहायक बैंकों के विलय का सिलसिला अरसे से चल रहा है। 2017 तक उसकी सातों सहायक बैंकों का विलय स्टेट बैंक में हो गया और अब यह विश्व के सबसे बड़ी पचास बैंकों में शुमार है। 

 

 

लेकिन ग्राहक सेवा की दृष्टि से भारतीय स्टेट बैंक आज भी प्राइवेट बैंकों से पिछड़ा हुआ है। किसी भी स्टेट बैंक की शाखा में आप चले जाइए, सबसे ज्यादा हैरान-परेशान ग्राहक आपको वहीं नजर आएंगे। बहुत लोगों को यह याद होगा कि बैंकों में कंप्यूटर के इस्तेमाल फिर एटीएम के बाद यह कहा गया था कि इससे बैंकों की श्रम लागत में भारी कमी आएगी और बैंक ज्यादा तेज गति से सुविधाएं दे पाएंगे। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सुविधाएं अब घर बैठे मिल जाती हैं। एटीएम के इस्तेमाल पर पहले कोई शुल्क नहीं लगता था, लेकिन अब हर बैंक एटीएम शुल्क वसूल करता है। ग्राहकों से शुल्क वसूलने में भारतीय स्टेट बैंक सबसे आगे है। बैंक में न्यूनतम बैलेंस न रखने पर 2018 में स्टेट बैंक ने ग्राहकों से क्रूरतापूर्वक तकरीबन 5000 करोड़ रुपये वसूल किए थे। इसलिए बड़े बैंक होने से लागत में कमी का फायदा ग्राहकों को मिलेगा या ग्राहक सेवाओं में सुधार होगा, इसका आपस में कोई सह-संबंध नहीं है। एक रिपोर्ट के अनुसार विलय के पश्चात भारतीय स्टेट बैंक ने पांच हजार शाखाएं बंद की हैं। जिससे उन क्षेत्रों में जहां बैंक नहीं हैं, वहां बैंक खोलने का ध्येय धरा का धरा रह गया है। बैंकों के मौजूदा विलय पर विश्व विख्यात संस्था क्रेडिट सूइस का कहना है कि दस सार्वजनिक बैंकों के विलय से चार बैंक बनाने से कर्ज कारोबार में तेजी आने या लागत में अर्थपूर्ण कमी आने की उम्मीद कम है। बैंकों के इस महाविलय की घोषणा में छह छोटे-छोटे बैंकों को छोड़ दिया गया है, जिसमें राजनीति का अक्स साफ नजर आता है। यह भी तय है कि जब तक बैंकों में राजनीतिक दखल रहेगा, बैंकों का विलय कोई अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाएगा। इसीलिए देश की डूबती अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए मोदी सरकार को पहले बैंकों की कार्य संस्कृति सुधारने की जरूरत है।

 

 

भड़ास अभी बाकी है...