क्या नागरिकता के नाम पर देश के विभाजन पर उतारू है भाजपा सरकार??

बीते दिनों अमित शाह द्वारा पश्चिम बंगाल में एनआरसी के सम्बंध में दिए गए बयान को विभाजनकारी मन जा रहा है। गौरतलब है कि अमित शाह ने कहा कि सरकार एनआरसी से पहले संसद में ऐसा विधेयक लाएगी जिसमें एनआरसी में नाम न होने पर भी किसी हिंदू, ईसाई या बौद्ध को नागरिकता देने का प्रावधान होगा। अमित शाह का यह बयान उनकी मुस्लिम विरोधी जेहनियत का नतीजा है। वहीं यह भी माना जा रहा है कि पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों को धार्मिक शोषण से बचाने के नाम पर देश के अल्पसंख्यक मुसलमानों को प्रताड़ित करने और उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाने का यह संघी षड्यंत्र है। यह खुला रहस्य है जिसे संघ और भाजपा नेताओं के प्रतिदिन आने वाले मुस्लिम विरोधी बयानों में भी देखा जा सकता है। असम में एनआरसी में वंचित रह जाने वालों में संघ भाजपा की आशाओं के विपरीत हिंदुओं की संख्या अधिक होने के कारण उसकी साम्प्रदायिक राजनीति को झटका लगा है। बांग्लादेशी नागरिकों की असम में घुसपैठ के मुद्दे को लेकर लम्बे हिंसक आंदोलन के बाद एनआरसी करने का निर्णय लिया गया था, लेकिन असमिया समूहों के विरोध के बावजूद सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक लाने पर जिद बांधे हुए है।

 

 

वहीं नागरिकता संशोधन विधेयक कुछ और नहीं बल्कि साम्प्रदायिक और संकीर्ण राजीनीति को खाद पानी देने की कवायद का हिस्सा है। उत्तर प्रदेश के डीजीपी ने जनपदों के एसएसपी⁄एसपी को राज्य में रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों और सड़़कों के किनारे अवैध रूप से रह रहे विदेशी⁄बंगलादेशी नागरिकों को चिन्हित कर उनका सत्यापन कराकर विधि सम्मत कार्यवाही करने के निर्देश भी दिए हैं। अब सवाल यह है कि क्या पुलिस इस तरह का अभिायान चलाने में सक्षम है? जबकि वाहन चेकिंग के नाम पर प्रदेश की पुलिस द्वारा अवैध वसूली और वाहन स्वामियों के साथ मारपीट करने की घटनाएं आशंका उत्पन्न करती हैं कि गरीब बांग्लाभाषी असमिया मज़दूरों को इस नाम पर पुलिसिया उत्पीड़न का शिकार बनाया जा सकता है।

 

अधिकतर मज़दूर वर्ग अपने साथ अपनी नागरिकता का प्रमाण लेकर दूसरे राज्यों में मेहनत-मज़दूरी करने नहीं जाते है। जिस तरह से दिशा निर्देश द्वारा एनआरसी बताने का कार्य चल रहा है वह केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार की अपनी विफलताओं को छुपाने का साम्प्रदायीकरण हैं।वहीं उत्तर प्रदेश के आला अधिकारियों का यह बयान तथ्यों से परे है जिसमें उन्होंने कहा है कि राज्य में योगी शासनकाल में कोई दंगा नहीं हुआ। इसी तरह का बयान पहले भी दिया जा चुका हैं।

 

 

 

फरवरी 2018 में गृहमंत्रालय द्वारा संसद में साम्प्रदायिक दंगों के जो आंकड़े पेश किए गए थे उनके मुताबिक 2017 में देश में कुल 822 दंगे हुए थे, जिसमें उत्तर प्रदेश 195 साम्प्रदायिक दंगों के साथ सूची में सबसे ऊपर था। इन दंगों में 44 लोगों की मौत हुई थी और करीब 542 लोग घायल हुए थे।


  भड़ास अभी बाकी है...