अम्बानी के समधी चलायेंगे यूपी के प्राइमरी स्कूल ?

(दीप्ति यादव)

उत्तर प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाने की ज़िम्मेदारी निजी हाथों में सौपने की योजना पर अमल होने की शुरूआत प्रयागराज से हुई है। यहां बेसिक शिक्षा परिषद के अंतर्गत आने वाले प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाने का जिम्मा एनजीओ को दे दिया गया है। 16सितम्बर को जारी आदेश में कहा गया कि एनजीओ प्रथम शिक्षण संस्थान कक्षा 4एवं 5के साथ भाषा और गणित की कक्षाएं चलाएगा। इन विद्यालयों से कोई और काम नही लिया जाएगा और इन स्कूलों के प्रधानाचार्यो को आदेश दिया गया है कि वह इस एनजीओ को पूरा सहयोग प्रदान करें। इसे यूपी सरकार द्वारा शिक्षा का निजीकरण करने की दिशा में पहला कदम माना जा सकता है। आपके लिये यह जानना जरूरी है कि जिस एनजीओ को प्राइमरी स्कूलों के बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी गयी है वह कौन है। एनजीओ प्रथम के फाउंडर अजय पीरामल है जो पिरामल ग्रुप के मालिक है जिसकी सम्पति तकरीबन 2बिलियन डॉलर है। पिरामल भारत के शीर्ष 50अरबपतियों में शामिल है लेकिन उनकी सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह मुकेश अम्बानी के समधी हैं। भारत के सबसे रईस मुकेश अंबानी की बेटी ईशा अंबानी की शादी आनंद पीरामल के साथ हुई है। आनंद पीरामल पीरामल ग्रुप और श्रीराम ग्रुप के चेयरमैन अजय पीरामल और स्वाती पीरामल के बेटे हैं। अजय पिरामल का कारोबार दुनियाभर के 100 देशों में फैला हुआ है। फॉर्मास्युटिकल, पैकेजिंग, फाइनेंशियल सर्विसेज के साथ ही रियल इस्टेट में भी उनकी कंपनी दमदारी से खड़ी है। अजय पीरामल का एनजीओ 'प्रथम' एजुकेशन सेक्टर का सबसे बड़ा एनजीओ है जो 'रीड इंडिया' कैम्पेन के जरिए 33 मिलियन बच्चों तक पहुंच चुका है।

 

 

यहां गौर करने लायक बात यह है कि शिक्षा का अधिकार कानून के अंतर्गत परिषदीय स्कूलों में पढ़ाने के लिये शिक्षक प्रशिक्षण एवं शिक्षक पात्रता परीक्षा TET पास करना अनिवार्य है, लेकिन RTE अर्थात शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों को ताक पर रख दिया गया है। यह सब सही से समझने के लिए आपको यह जानना जरूरी है कि Right to Education यानी शिक्षा का अधिकार अधिनिमय क्या है।

--1993में माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय में कहा गया कि सरकार का उत्तरदायित्व है कि वह 14वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रबंध करे। इस निर्णय को दृष्टिगत लगभग 9वर्षों बाद 2002में 86वां संविधान संशोधन करके मूल अधिकारों में अनुच्छेद 21 A शामिल किया गया, जिसके तहत ऐसी आशा की गई कि सरकार 6-14वर्ष तक के सभी बच्चों हेतु निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रयास करेगी।


--अंततः 1अप्रैल 2010से RTE (शिक्षा का अधिकार अधिनियम) लागू हो गया।।।।


RTE के नियमानुसार--

सरकारी एवं निजी विद्यालयों में पढ़ाने हेतु शिक्षक प्रशिक्षण एवं शिक्षक पात्रता परीक्षा TET अनिवार्य है।।


  • प्रत्येक विद्यालय  हेतु  छात्र शिक्षक अनुपात के हिसाब से शिक्षक होंगे।


  • प्राथमिक विद्यालय में 150छात्र संख्या पर एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 100छात्र संख्या होने पर   अनिवार्य रूप से पूर्णकालिक प्रधानाध्यापक होगा (अर्थात 150एवं 100छात्र संख्या पर अनिवार्यतः प्रधानाध्यापक होगा इससे कम संख्या पर सरकार चाहे तो रखे या न रखे।)


  • NCTE के अनुसार मार्च 2019के बाद से कोई भी शिक्षक, शिक्षामित्र,अनुदेशक या कोई अन्य प्रकार के पैराटीचर्स यदि अप्रशिक्षित हैं तो वे अध्यापन हेतु अर्ह नहीं हैं।

 

 

यहां ध्यान देने वाली बात है कि 2002 से लेकर 2009 तक नियुक्त किये गए एक लाख 78 हजार शिक्षामित्रो को स्थायी नियुक्ति से इसीलिए वंचित कर दिया गया क्योंकि उनके पास RTE अधिनियम के तहत जरूरी अर्हताएं नही थी। ये अलग बात है कि शिक्षकों की कमी का रोना रोने वाली सरकार एक दशक से ज्यादा समय से इन्ही शिक्षामित्रो से प्राइमरी स्कूलों के बच्चों को पढ़वाती रही। इनकी तनख्वाह साल 2002 में 1850 रुपये थी जो आज की तारीख में 10,000 रुपये है। इनको तनख्वाह देने में समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धांत की अनदेखी की गई। अब सरकार यूपी के परिषदीय स्कूलों को अजय पिरामल के स्वामित्व वाले एनजीओ के हवाले करने जा रही है तो सवाल पूछना तो बनता है कि इस एनजीओ के पास RTE अधिनियम के तहत शिक्षण कार्य के लिये पर्याप्त योग्यता है कि नही। इस एनजीओ के पक्ष में तर्क दिया जा रहा है कि इसने लम्बे समय से शिक्षा के क्षेत्र में काम किया है और प्राइमरी स्कूलों के शिक्षक कामचोर है लेकिन यह मानने के पर्याप्त कारण है कि यह सब आम जनता को भ्रमित करने के तरीके है। यह सब जानते है कि आज की तारीख में प्राइमरी स्कूल के शिक्षकों को पढ़ाने के काम से ज्यादा दूसरे काम में लगा दिया जाता है जिनमे मिड डे मील तैयार करवाने, पोलियो ड्राप पिलाने, जनगणना करने, वोटर लिस्ट बनवाने से लेकर चुनाव करवाने तक के काम शामिल है। इन सबके बीच उसे पढ़ाना भी है और गलती से किसी बच्चे ने दो दुन्नी पाँच पढ़ दिया तो शिक्षण कार्य में स्तरहीनता का आरोप लगा कर उसको गाली देने के लिये सब तैयार खड़े है। लेकिन जनता को फुसलाने का कोई न कोई बहाना तो चाहिये इसके लिए प्राइमरी स्कूलों के गिरते हुए शैक्षिक स्तर का ठीकरा इन शिक्षकों पर फोड़ कर सरकारी स्कूलों को निजी क्षेत्र के हाथों में सौपने की तैयारी कर ली गयी है। अजय पिरामल की एकमेव योग्यता मुकेश अम्बानी का समधी होना है और यूपी के परिषदीय स्कूलों में पढ़ाने के लिये इतनी योग्यता काफी है।

(लेखिका सीनियर जर्नलिस्ट और न्यूज़ एंकर है, ये लेखिका के अपने विचार है।)

 

 

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