होश में रहना... जानते नही हम कौन हैं !

औपनिवेशिक मानसिकता और सदियों की दासता अभी भी व्यापक समाज पर अपना असर बनाए हुए है। राज्य का प्रतीक हमें डराता है उसी तरह जैसे मुगलों और अंग्रेजों के शासन में एक अदना-सा सिपाही डराता था। लिहाज़ा आपने अक्सर निजी वाहनों के पीछे के नंबर प्लेट के नीचे या ऊपर ‘भारत सरकार’ या ‘उत्तरप्रदेश सरकार’ लिखा देखा। यह सब उन वाहनों पर भी होता है, जिन्हें किसी भी सरकार ने कभी भी नहीं खरीदा है। उत्तर प्रदेश के शिक्षा जैसे विभाग में नियुक्त चपरासी अगर अपनी मोटरसाइकिल के नंबर प्लेट पर ‘उत्तर प्रदेश सरकार’ लिखवाता है तो यह क्या है? लार्ड मैकॉले 160 साल पहले भी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) बनाते वक्त ऐसा कोई प्रावधान नहीं दिया था, जिसमें उत्तर प्रदेश पुलिस के बुजुर्ग मां-बाप और बच्चों को मॉल में जाते वक्त ट्रैफिक नियम तोड़ने की सुविधा हो, लेकिन समझ में नहीं आता कि सरकार की गाड़ियों में तो छोड़िए, निजी वाहनों में राज्य के प्रतीक लिखवाने का क्या कारण है। मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करें तो समझ में आएगा कि भारतीय समाज आज भी पहचान के संकट से ग्रस्त है।

 

 

लिहाज़ा दिल का कोई प्रतिष्ठित डॉक्टर, प्रोफेसर या वैज्ञानिक अपने वाहन पर अपना व्यवसाय नहीं लिखवाता। दरअसल, पुलिस के प्रतीक का मतलब है कि दारू पीकर उल्टी दिशा से गाड़ी चलाकर एक पुलिस वाले का गुंडा रिश्तेदार प्रोफेसर की गाड़ी में टक्कर मारकर उसी प्रोफेसर या वैज्ञानिक को मारना शुरू कर सकता है। प्रोफेसर या वैज्ञानिक भी यह जानता है कि ‘कानून बताकर’ कुछ नहीं किया जा सकता। ठीक इसी प्रकार एक केंद्र/राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर की पत्नी जब ज्वेलरी शॉप में जाती है या उनका बच्चा स्कूल तो साथ में सिपाही होता है ताकि दाम बताने के पहले दूकानदार और पढ़ाने में शिक्षक सतर्क रहें -भविष्य के खतरे से। देश में एक कानून यह बनना चाहिए कि सरकारी गाड़ी पर भी दूर-दूर तक कोई ऐसा संकेत न हो, हालाकि ऐसे नियम है लेकिन इन्हें ताक पर रख कर धड़ल्ले से अपनी भोकाली का परिचय दिया जा रहा है। एक सरकारी वाहन अगर किसी ‘साहेब’ को लेकर जा रही है और रास्ते में एक्सीडेंट कर देती है तो जुर्माना और सजा में कानून के हिसाब से कोई छूट नहीं है। फिर क्यों उन पर भारत सरकार लिखा जाए या राज्य सरकार लिखा जाए। 

 

 

निजी गाड़ियों पर ऐसा राज्य-सत्ता का प्रतीक लिखवाना तो आपराधिक कृत्य माना जाना चाहिए। इसे आईपीसी की धारा 416 में ‘प्रतिरूपण द्वारा छल’ का अपराध माना जाना चाहिए।


भड़ास अभी बाकी है...