अब किस ओर रूख लेगी भाजपा ...

अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण एक लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी का एक मुख्य मुद्दा रहा है। आज यह पार्टी जो कुछ भी है, इसी मुद्दे की वजह से ही है। जहां एक तरफ सुप्रीम कोर्ट का फैसला भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों को कुछ समय तक प्रसन्नता देगा, वहीं पार्टी के सामने अब चुनौती होगी अपनी आगे की यात्रा के लिए नया एजेंडा तय करने की। यह मुद्दा लंबे समय तक लंबित रहा था, जिसने पार्टी को अपना आधार बनाने और समर्थकों को संगठित रखने में पार्टी की खासी मदद की। यह भी सच है कि 2014 में भाजपा विकास के वादे के साथ सत्ता में आयी थी। हमें यह नहीं पता कि 2024 के अगले आम चुनाव तक इसका कामकाज कैसा रहेगा। लेकिन अब पार्टी की जरूरत है कि वह किसी ऐसे बड़े मुद्दे को पहचाने और अपनाए, जो उसे सीधे जनता से जोड़ता हो। ये जरूरी नहीं है कि पार्टी का नया एजेंडा किसी आस्था या किसी तरह धर्म से जुड़ा हुआ ही हो। मुद्दा, दरअसल ऐसा होना चाहिए जो लोगों को यह संदेश देने में कामयाब रहे कि पार्टी अपने मतदाताओं और समर्थकों का वास्तव में पूरा ख्याल रखती है। यह मुद्दा विकास से जुड़ा हुआ भी हो सकता है। फिलहाल यह घोषणा कठिन है कि लोग 2024 तक किन मुद्दों को पसंद करेंगे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कुछ लोग अपना अति-उत्साह प्रदर्शित करने के लिए बढ़-चढ़कर आगे आ सकते हैं। ये ऐसे लोग हो सकते हैं, जो यह चाहेंगे कि भावनाएं भड़कें। अगर ऐसा हुआ, तो इस समय सरकार पर रोजगार के नए अवसर तैयार करने का जो दबाव बन रहा है, वह कुछ समय के लिए हल्का पड़ सकता है। सर्वोच्च अदालत का जो फैसला आया है, उसमें केंद्र सरकार की अपनी कोई भूमिका नहीं है, लेकिन इस फैसले ने केंद्र सरकार को कुछ राहत तो दी ही है। खासकर आर्थिक मसलों पर सरकार के ऊपर जो दबाव बना था, वह इससे कुछ कम तो हुआ ही है, लेकिन यह एक अलग मसला है। हमें जो फैसला मिला है, वह सर्वोच्च न्यायालय का फैसला है, जिसने दशकों पुरानी एक समस्या को समाधान तक पहुंचाने की कोशिश की है। मोदी सरकार ने दूसरे कार्यकाल की छह महीने की छोटी अवधि में दशकों पुराने तीन मुद्दों (अनुच्छेद 370, राम मंदिर और समान नागरिक संहिता) में से दो मुद्दों का हल निकाल लिया।

 

 

अनुच्छेद 370 निरस्त करने के बाद अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की राह प्रशस्त हुई है। इससे पहले मोदी सरकार ने तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाया। हालांकि भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति की झोली में अब सिर्फ समान नागरिक संहिता का मुद्दा नहीं बचा है। इससे पहले सरकार धर्मांतरण विरोधी कानून, नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय जनसंख्या नीति को अमलीजामा पहनाने की तैयारी में है। दरअसल वर्तमान स्थिति भाजपा के हिंदुत्व की राजनीति के अनुकूल है। लोकसभा में जहां पार्टी और राजग को प्रचंड बहुमत हासिल है, वहीं राज्यसभा में भी राजग धीरे-धीरे बहुमत की ओर बढ़ रहा है। बीती सदी के नब्बे के दशक में हिंदुत्व की राजनीति का मुखर विरोध करने वाले कई विपक्षी दल नरम हिंदुत्व की राह पर हैं। इसी के परिणामस्वरूप उच्च सदन में बहुमत न होने के बावजूद सरकार अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और इससे पहले तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाने वाले बिल को पारित करा पाई। राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होने के बाद हिंदुत्व की राजनीति की गाड़ी की रफ्तार धीमी नहीं होगी। मोदी सरकार के पास इस राजनीति की गाड़ी को रफ्तार देने के लिए पर्याप्त मुद्दे मौजूद हैं। मसलन सरकार की रणनीति तीसरे हफ्ते से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में धर्मांतरण विरोधी बिल के साथ नागरिकता संशोधन बिल पारित कराने की तैयारी में है। इसके बाद सरकार के एजेंडे में नई जनसंख्या नीति तैयार करना है। अंत में सरकार देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की ओर भी कदम बढ़ाएगी। खासतौर पर समान नागरिक संहिता लागू करने में केंद्र सरकार के समक्ष कोई अड़चन नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में जज रहते अपने एक फैसले में जस्टिस विक्रमजीत सिंह सहित एक अन्य जज ने समान नागरिक संहिता की वकालत की थी। हिंदूवादी संगठनों के एजेंडे में अयोध्या में राम मंदिर के साथ मथुर और काशी में भी मंदिर निर्माण की बात थी। हालांकि 1991 में संसद ने एक बिल को मंजूरी दी थी जिसमें 1947 के बाद धार्मिक स्थलों की यथास्थिति बरकरार रखने की बात कही गई है। इसमें तब अयोध्या को शामिल नहीं किया गया था। फिर सरकार ने ट्रस्ट गठन को लेकर भी एजेंडा साफ कर दिया है। सरकार इस मामले में जल्दबाजी के मूड में नहीं है। सरकार पहले कमेटी बनाएगी और कानूनी पहलुओं पर विचार करेगी। मतलब साफ है मंदिर बनने से पहले इस मुद्दे को पूरी तरह भुना लेना।

 

 

वैसे सरकार के इस फैसले को कुछ लोग प्रशासनिक नजरिए से भी देख रहे हैं। शनिवार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही विहिप ने ट्रस्ट में भागीदारी का दावा ठोक दिया है। उधर, अखिल भारतीय संत समिति ने कहा है कि राम जन्मभूमि न्यास के पास करोड़ों हिंदुओं की तरफ से इकट्ठा हुई शिला एवं धन है। लिहाजा ट्रस्ट पहले इन संसाधनों का इस्तेमाल कर उसकी गरिमा को बरकरार रखे।इसके साथ ही निर्मोही अखाड़ा भी दावा पेश करने की तैयारी है। उससे सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में निर्मोही अखाड़ा से कहा है कि वह ट्रस्ट का हिस्सा बनने के लिए केंद्र सरकार के पास जा सकता है। इस ट्रस्ट के लिए मोदी सरकार को कई कानूनी और प्रशासनिक पहलुओं पर फैसला करना होगा। साथ ही इसके कई पहलू भी हैं, जिन्हें नजरंदाज नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ 2.77 एकड़ जमीन के मसले पर फैसला दिया है। बाकी बचे 64.23 एकड़ जमीन का क्या होगा इसका फैसला भी ट्रस्ट अपने हाथों में ले सकता है। शेष जमीन को केंद्र सरकार ने 1993 में अधिगृहीत कर लिया था। इसमें 43 एकड़ जमीन विहिप के पास थी, जिसका उसने मुआवजा नहीं लिया है। इस आधार पर विहिप ट्रस्ट में शामिल होने का दावा कर सकता है। इसके अलावा करीब 20 एकड़ जमीन श्री अरविंद आश्रम समेत कई संगठनों की थी। इन्होंने केंद्र से इसका मुआवजा ले लिया था। यह मसला भी ट्रस्ट की जिम्मेदारी बनेगा। उम्मीद है कि मुआवजा लेने के बावजूद यह संगठन जमीन मंदिर के नाम दान कर देंगे। वहीं सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय के बाद अब राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया है। लेकिन भव्य राम मंदिर के निर्माण में अभी 5 साल का समय और लगेगा। इस फैसले का लंबे समय से इंतजार कर रहे विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर का डिजाइन पहले से ही तैयार किया हुआ है। राम मंदिर निर्माण की कार्यशाला से जुड़े एक पर्यवेक्षक के मुताबिक, भव्य राम मंदिर के निर्माण में अभी कम से कम 5 साल का समय और लगेगा और इस निर्माण कार्य के लिए 250 विशेषज्ञ शिल्पकारों की जरूरत होगी, जो बिना रुके और बिना थके मंदिर का निर्माण कर सकें। जो भी हो अभी तो भाजपा फायदे में है और मंदिर फैसले का पूरा श्रेय उसी को जाता है। लिहाजा भाजपा का हिंदुत्व मुद्दा अभी खत्म नहीं हुआ है, बल्कि यह तो अभी शुरुआत है।

 

भड़ास अभी बाकी है...