हँसिये कि आप "कानपुर" में है

औधौगिक नगरी का दर्जा प्राप्त यह शहर जो चमड़ा कारोबार का एक गढ़ माना जाता है| गंगा के किनारे बसा यह शहर अपनी तहजीब के लिए भी बहुत ही अच्छी तरह से जाना जाता है,लेकिन पिछले कुछ समय से यह अपनी यह अपनी पहचान को खोता जा रहा है|उत्तर प्रदेश का बड़ा और चर्चित शहर एक बार फिर से चर्चाओं में है लेकिन इस बार जिस कारण यह सुर्खियों में आया है वो बेहद चिंताजनक विषय है|


स्वच्छता का सन्देश:

दरअसल कानपुर नगर निगम पिछले कुछ समय से शहरवासियों को स्वच्छता का पाठ सिखा रहा है और इस मुहिम को खुद देश के प्रधानमंत्री से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री तक लोगो तक यह संदेश पंहुचा रहे है तो वहीं दूसरी तरफ नगर निगम के ही अधिकारी और कर्मचारी मिल कर ही उनके इस सपने को चौपट करने में कोई कसर नही छोड़ रहे है| जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण यह है कि शहर में जगह-जगह लोग कूड़े के ढेर लगा देते है,जिससे शहर में अनेको बीमारियां फैल रही है| कई दिनों तक यह कूड़े का ढेर जस का तस ही पड़ा रहता है लेकिन नगर निगम या उनके अधिकारी या कर्मचारियों को इससे कोई फर्क नही पड़ता है क्योकि नगर निगम ने कड़े निर्देश दिए है कि खुले में कोई भी कूड़ा नही जलाएगा और यदि कोई ऐसा करता है तो उस पर कड़ी कार्यवाही की जाएगी,बावजूद इसके नगर निगम कर्मचारी जगह-जगह पर कूड़े के ढेरों में आग लगा देते है,जिससे फैलने वाले धुँए से स्थानीय लोगो के साथ ही साथ राहगीरों का भी साँस लेना मुश्किल हो जाता है|




ये भेदभाव क्यों:

एक तरफ तो हम लोग स्वच्छता एवं परिवर्तन की बात करते है और दूसरी तरफ खुद ही इसके हिस्सेदार भी बनते है|जब हम किसी शॉपिंग मॉल या काम्प्लेक्स में या किसी अच्छी जगह पर जाते है तो वहाँ पर गन्दगी करने से खुद को और अपने बच्चो को रोकते है ठीक इसके विपरीत जब हम सड़क पर या किसी गली-मोहल्ले में या अपने घर की बालकनी से ही नीचे कूड़ा फेक देते है|हम ये भी नहीं सोचते है अगर किसी कारण से सफाई कर्मचारी नहीं आया तो क्या होगा|यही हाल हम पब्लिक प्लेस,बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन आदि स्थानों पर भी कर ही देते है|




अब "जनमानस भड़ास" अपने व्यूवर्स से यह सवाल पूछता है कि क्या सारी गलती नगर निगम के अधिकारी और कर्मचारियों की है या हम लोग भी इसमें कहीं न कहीं जिम्मेदार और इसके हिस्सेदार है.......


भड़ास अभी बाकी है.....