ये तो सिर्फ ट्रेलर है, पिक्चर अभी बाकी है...

आर्थिक मंदी को लेकर तरह-तरह के दावे सरकार कर रही है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी तथा नेशनल काउंसिल आफ एप्लाइड इकोनॉमी का जो सर्वे सामने आया है। उसके अनुसार हमारे देश में आर्थिक मंदी की ये तो अभी शुरुआत है। अगले 1 साल में इसके और भयानक परिणाम देखने को मिलेंगे। उसकी तरफ सरकार का ध्यान ही नहीं है। मोटरकार जिस तरह नियंत्रण से बाहर हो जाती है, तब चालक आंख बंद करके घबराकर ऐक्सीलेटर और जोर से दबा देता है, और वाहन को भगवान भरोसे छोड़ देता है। लगभग वही हालात हमारी अर्थव्यवस्था में आज देखने को मिल रहे  है। लगता है, सरकार का नियंत्रण पूरी तरह खत्म हो गया है। तरह-तरह के टोने टोटके से, भगवान भरोसे यह आशा की जा रही है कि आर्थिक मंदी का असर भारत में नहीं होगा। जीडीपी को लेकर 1 साल के अंदर लगातार अनुमान घटते ही जा रहे हैं। यह और कितने नीचे जाएगी इसको लेकर अभी भी आर्थिक विशेषज्ञ अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं। पिछले दो तिमाही में बैंकों का प्रदर्शन भी बड़ा निराशाजनक रहा है। दूसरी तिमाही में बैंकों से 6 फ़ीसदी कम कर्ज उठाया गया है। ऑटो एवं रियल एस्टेट सेक्टर के कर्ज में भी भारी कमी आयी है। सरकारी बैंक अपना पैसा सुरक्षित रखने के लिए सरकारी सिक्योरिटी में पैसा जमा कर रहे हैं। राष्ट्रीय कृत बैंक भी इस समय कोई जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं हैं। रिजर्व बैंक ने पिछले कई महीनों में ब्याज की बेसिक दर 135 पॉइंट तक घटा दी है। इसके बाद भी कारोबारी बैंकों से लोन लेने नहीं पहुंच पा रहे हैं ना ही आम आदमी बैंकों से कर्ज ले पा रहा है। इसके पीछे एक सबसे बड़ा कारण यह भी बताया जा रहा है कि कर्ज सस्ता होने के बाद भी ज्यादातर कारोबारी और लोन लेकर खर्च करने वाले लोग एनपीए हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में बैंक और वित्तीय संस्थाएं उन्हें कर्ज नहीं दे रही हैं। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी में उद्योगों और आम आदमी की क्रेडिट रेटिंग खराब होने से, उन्हें बहुत महंगी ब्याज दर पर कर्ज़ उठाना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में लोगों ने अपना खर्च और कारोबार दोनों ही बहुत कम कर दिया है। जिसके कारण मंदी बड़ी तेजी के साथ पैर पसार रही है।

 

 

ब्याज दर घटने के बाद भी मंदी बढ़ती ही जा रही है। वहीं जिन लोगों ने बैंकों में फिक्स डिपाजिट करके अरबों खरबों रुपए की राशि बैंकों में जमा करके रखी थी। बैंक के ब्याज रेट कम हो जाने से, अब रिटायर्ड एवं बुजुर्ग भी अपना मासिक खर्च पूरा नहीं कर पा रहे हैं। जिसके कारण लोगों की क्रय शक्ति लगातार घट रही है। नेशनल काउंसिल आफ अप्लाइड इकोनॉमिक्स सर्वे रिपोर्ट से स्पष्ट है, कि पिछले 8 साल में सबसे ज्यादा उत्पादन इस दो तिमाही में गिरा है। वहीं हार्ड कोर सेक्टर के उद्योगों में भी तेजी के साथ गिरावट बनी हुई है। अक्टूबर माह में बिजली की मांग में 13 फीसदी की रिकॉर्ड गिरावट दर्ज हुई है। उद्योग बंद हो रहे हैं। बिजली की मांग लगातार घटती जा रही है। केंद्र एवं राज्य सरकारों के राजस्व में भी भारी गिरावट देखने को मिल रही है। पिछले दो तिमाही में केंद्र एवं राज्य सरकारों का राजकोषीय घाटा बड़ी तेजी के साथ बढ़ रहा है। इसके साथ ही केंद्र एवं राज्य सरकारें बड़े पैमाने पर कर्ज उठाकर वेतन एवं अन्य खर्च कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में आर्थिक स्थिति और खराब होती जा रही है। इस सब के बाद भी सरकार ने एक टोटका शेयर बाजार को शीर्ष स्तर पर पहुंचाने के लिए बड़े पैमाने पर शेयर बाजार में निवेश कराया था। जिसका दुष्परिणाम सामने आ रहा है, कि निवेशकों ने मुनाफावसूली करके भारतीय वित्तीय संस्थानों एवं राष्ट्रीय कृत बैंकों की रकम को हड़पने का काम, पिछले वर्षों में जबरदस्त रूप में किया है। शेयर बाजार की तेजी को लेकर हर कोई आश्चर्यचकित है। जब उद्योग धंधे बंद हो रहे हैं, मांग में भारी कमी है। तब शेयर बाजार की कंपनियां क्यों फल-फूल रही हैं। इनमें कौन लोग निवेश कर रहे हैं। निश्चित रूप से भारतीय शेयर बाजार को दुनिया का सबसे बड़ा सट्टा बाजार बनाकर, भारतीय मुद्रा को विदेशों में ले जाने का यह एक अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र भी है। अगस्त से अक्टूबर माह के बीच, उद्योगपति कारोबारियों और किसानों में सबसे ज्यादा निराशा देखने को मिल रही है। वहीं सर्वे रिपोर्ट के अनुसार पिछले 6 सालों में इतना निराशाजनक वातावरण कभी देखने को नहीं मिला, भारत के इतिहास में जब हर्षद मेहता शेयर बाजार का घोटाला हुआ था। तब भी ऐसी स्थिति नहीं थी।

 

 

अब तो हालत इतनी खराब हो गई है कि हार्ड कोर इंडस्ट्री जो हमारे देश की अर्थव्यवस्था की रीड की हड्डी मानी जाती है। वह भी बुरी तरह लड़खड़ा रही हैं। विभिन्न टेलीकॉम सेक्टर की कंपनी तो अपना कारोबार बंद कर अपने देश से कारोबार बंद करके जाने की बात कर रही हैं। इसके बाद भी केंद्र सरकार आर्थिक मंदी की इस आंधी से बेखबर होकर बंसी बजाने में लगी हुई है। समय रहते यदि भारत सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाएं तो जिस तरह की परेशानी जनमानस को इन दिनों उठाना पड़ रही है। करोड़ों लोग बेरोजगार घूम रहे हैं। पिछले 1 साल में लाखों लोगों की नौकरी छूट गई है। उद्योग धंधे तेजी के साथ बंद हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में युवा बेरोजगार, किसान और मध्यमवर्गीय परिवार के बीच इस तरह की बगावत देखने को मिल रही है। यह भारत के लिए एक नई स्थिति हो सकती है। सरकार को समय रहते गंभीरता के साथ विचार करना होगा। बैंकों का पूंजीकरण पिछले माहों में बहुत निराशाजनक रहा। रियल एस्टेट सेक्टर को जिस तरह की सहायता दी गई। कुछ उद्योगों को बचाने के लिए कॉर्पोरेट जगत को केंद्र सरकार ने जो कर में रियायत दी। यह सब कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए था जो कि  आर्थिक मंदी से निपटने का ठोस उपाय नही था। यह कहने में भी अब संकोच नहीं हो रहा है कि शायद वर्तमान सरकार के पास या तो अर्थशास्त्र का अनुचित ज्ञान नहीं है। यदि है, तो वह अपने कदमों से पीछे नहीं हटना चाहती है। इस अहंकार के चलते भारत में जो आर्थिक मंदी अभी शुरू हुई है वह विकराल रुप धारण करती जा रही है। इतना ही नहीं आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार यह मात्र मंदी की फिल्म का ट्रेलर है। आर्थिक मंदी की असली फिल्म आना, तो अभी बाकी है...जो शायद 2020 तक जनमानस को देखने के लिये मिल जायें !  


भड़ास अभी बाकी है...