नयी पीढ़ी को गवारा नहीं ये सांप्रदायिक ध्रुवीकरण...

मई, 2019 में जब लोकसभा चुनावों नतीजे आए तो ऐसा लगा था कि बस अब सब खत्म। क्योंकि तब यह स्पष्ट लग रहा था कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का हिंदू राष्ट्र का सपना साकार होकर ही रहेगा। बीजेपी को लोकसभा में प्रचंड बहुमत हासिल हो चुका था। राज्यसभा में कुछ वोट सीधे करने के लिए चाणक्य नीति में विश्वास रखने वाला अमित शाह जैसा गृहमंत्री इसी कार्य के लिए बैठा दिया गया था। अतः कुछ ऐसा ही हुआ, मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले ही संसद सत्र में तीन तलाक समाप्त करने का बिल पारित हो गया। फिर रातोंरात जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए को समाप्त कर राज्य का विभाजन कर दिया गया। इसके बाद देश बहुत तेजी से हिंदू राष्ट्र का स्वरूप लेने लगा। साल समाप्त होते-होते जो बची खुची कसर थी वह भी पूरी हो गई। संसद के दूसरे सत्र में नागरिकता संशोधन बिल पास हो गया। पहली बार नागरिकता का आधार केवल धर्म ही नहीं हो गया बल्कि स्वयं संविधान में भी धर्म को स्थान मिल गया। नागरिकता के इस कानून से स्पष्ट कर दिया गया कि अब संवैधानिक तौर पर नागरिकता के मामले में इस देश के मुसलमान दूसरे दर्जे के शहरी होंगे, अब हिंदू राष्ट्र की नींव रख दी गई है, क्योंकि जब मुसलमान की नागरिकता का आधार धर्म होगा तो फिर उसके लिए फिर इस देश में बचा ही क्या?कहने को नागरिकता कानून में जो संशोधन था, वह पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने को था। लेकिन इसमें धर्म जोड़कर और मुसलमान को हटाकर संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना (स्पिरिट) मिटा दी गई और मुसलमानों को दूसरी श्रेणी का बना दिया गया। यहां सदियों से रह रहे मुसलमानों की नागरिकता पर राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की तलवार लटका दी गई जो कि भारतीय मुसलमानों के अधिकारों पर आखिरी कील ठोकने जैसा ही है।

 

 

भारतवर्ष बीजेपी का बनाया देश नहीं कि बीजेपी प्रचंड बहुमत मिलने के पश्चात देश को जैसा स्वरूप देना चाहे वैसा दे दे। यह पाकिस्तान न था और न हो सकता है। पाकिस्तान को अकेले एक पार्टी मुस्लिम लीग और उसके संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने बनाया था। भारत तो सदियों पुरानी सभ्यता का देश है। साझी विरासत इसकी मिट्टी में रची-बसी है और यही हमारी संस्कृति है। इसकी राजनीतिक नींव भी इसी विरासत पर टिकी हुई है। जिसमे गांधी, नेहरू और मौलाना आजाद जैसे नेताओं ने जिन्ना की धर्म आधारित राजनीति ठुकरायी थी और साझी विरासत के मूल्यों पर एक आधुनिक धर्मनिरपेक्ष भारत का निर्माण किया था। आजादी से अब तक लगभग चार-पांच पीढ़ियां इसी विचार और मूल्यों पर जी और मर चुकी हैं। धर्मनिरपेक्षता का मूल्य हर भारतीय के रगों में खून बनकर दौड़ने लगा है। ऐसे में बीजेपी ने भारतीय सभ्यता और उसकी आधुनिकता तथा धर्मनिरपेक्षता पर नागरिकता कानून के कवच से गहरा प्रहार कर दिया। फिर क्या था। बस देखते-देखते एक लावा फूट पड़ा। जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में जो चिंगारी फूटी वह एक लावा बन गई। हजारों की तादाद में हिंदू- मुसलमान लड़के-लड़कियां संविधान के संरक्षण में उतर पड़े। इस जन आंदोलन में पूरे देश की गली-गली, शहर-शहर बह निकला। लेकिन यह हुआ कैसे? हिंदू राष्ट्र की ओर तेजी से अग्रसर भारत यकायक मोदी से खफा क्यों हो गया? आखिर कौन सी बात ऐसी चुभ गई कि कल का मोदी भक्त नौजवान, मोदी विरोधी बन गया। दरअसल बीजेपी से एक गलती हो गई। मोदी-शाह ने नागरिकता संशोधन कानून से भारत की आत्मा पर वार कर दिया। आखिर बुद्ध, कबीर, नानक, चिश्ती, निजामुद्दीन और गांधी जैसे धर्मनिरपेक्ष सदगुरुओं के भारत में हिंदू पाकिस्तान का क्या काम! तब ही तो इस आंदोलन की शुरूआत भले ही मुस्लिम नौजवानों ने पुलिस दमन के खिलाफ जामिया से की हो लेकिन रातोंरात इस आंदोलन की कमान सारे देश में हर धर्म के युवा छात्रों ने अपने हाथों में ले ली।

 

 

इस नई पीढ़ी का नारा क्या है- ‘नागरिकता कानून हटाओ, संविधान बचाओ’। नागरिकता के नए कानून से खतरा तो केवल मुस्लिम नागरिक को है, तो फिर हजारों हिंदू नौजवान भी सड़कों पर क्यों निकल पड़ा। ये तो भारत की आधुनिकता का प्रश्न है। जैसे इस्लामी पाकिस्तान में आधुनिकता का गला घुट गया, वैसे ही हिंदू राष्ट्र भारत में भी आधुनिकता की मृत्यु हो रही है और यही भारतीय युवा पीढ़ी का पिछले छह वर्षों का अनुभव भी है। देश में रोजगार समाप्त और कारखानों पर ताले लटक गए। किसानों की कमर टूट गई। युवाओं का भविष्य अंधकार में डूब गया। और क्यों न डूबता क्योंकि मोदी और शाह संघ की छत्रछाया में केवल हिंदू राष्ट्र निर्माण में ही लगे पड़े है। ऐसा लगता है कि  पाकिस्तान के समान भारत भी आधुनिकता से भटककर धर्म एवं घृणा की राजनीति की भेंट चढ़ गया। आखिर 21वीं सदी का हिंदू नौजवान ऐसा क्यों सहेगा, जिसे आईटी क्रांति से जुड़कर पश्चिमी देशों की युवा पीढ़ी से कांधा मिलाकर चलना है। आज युवा यूरोप, अमेरिका में ‘एप्पल’ जैसी कंपनियों का सीईओ बन रहा है। महिलायें अमेरिका के चुनाव में राष्ट्रपति बनने की रेस में हिस्सा ले रही है इतना ही नहीं नासा की शीर्ष श्रेणियों पर आसीन है। ऐसी आधुनिक युवा पीढ़ी को मोदी और मोहन भागवत के हिंदू राष्ट्र में क्या हासिल हो सकता है। मुस्लिम युवा पीढ़ी का कर्तव्य है कि वह बस इस आंदोलन को किसी धार्मिक रंग न दें। इस आंदोलन में मुल्ला-मदरसों का काम नहीं। बस संविधान की छत्रछाया में हर धर्म की युवा पीढ़ी मिलकर इस देश की आधुनिकता और साझी विरासत के लिए लड़ती रहे तो संघ क्या कोई भी नीति उन्हें सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए बाध्य नही कर सकता है।

 

भड़ास अभी बाकी है...