कहीं ये लापरवाही का खामियाज़ा तो नहीं !

चीन में कोरोना वायरस के कारण होने वाली मौतों का आंकड़ा आठ सौ से ऊपर पहुंचने का मतलब है कि वह इस व्याधि को लेकर गंभीर संकट से घिर गया है। इसके पहले वर्ष 2003 में जब सार्स वायरस की चपेट में आया था, तब वहां करीब सात सौ से अधिक लोग मारे गए थे। हालांकि कोरोना की तरह सार्स वायरस भी कई देशों में फैला था, लेकिन उस पर काबू पा लिया गया था। यह चिंताजनक है कि कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या चीन के साथ-साथ अन्य अनेक देशों में भी बढ़ती जा रही है। इससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि अभी कोरोना वायरस के संक्रमण का कोई कारगर उपचार नहीं खोजा जा सका है। यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस संक्रमण को दुनिया की सेहत के लिए आपातकाल करार दिया है। यह ठीक है कि चीन समेत दुनिया के कई देश कोरोना वायरस के संक्रमण से उपजी चुनौती से निपटने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि यह संकट मूलत: चीन की लापरवाही से उपजा, जो विकराल होता जा रहा है। यदि चीन ने कोरोना वायरस को लेकर प्रारंभ में ही सतर्कता बरती होती तो शायद आज स्थिति इतनी गंभीर नहीं होती। उसने केवल जरूरी सावधानी बरतने से ही इनकार नहीं किया, बल्कि अपने स्वास्थ्य तंत्र को समय पर आगाह भी नहीं किया। चूंकि आम लोग इससे अनजान ही रहे कि एक खतरनाक किस्म के वायरस ने सिर उठा लिया है, इसलिए वे अंधेरे में बने रहे और उन पक्षियों के मांस का सेवन भी करते रहे, जिन्हें कोरोना वायरस के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है।

 

 

कोरोना वायरस का संक्रमण केवल मानव स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी संकट बनता जा रहा है। इस संकट से बचा जा सकता था या उसके असर को कम किया जा सकता था, यदि चीन ने जिम्मेदार देश की तरह व्यवहार किया होता। दुर्भाग्य से उसने वही किया, जो तानाशाही व्यवस्था वाले देश करते हैं। चीनी प्रशासन ने जरूरी सूचनाओं को दबाने के साथ ही उन चिकित्सकों को प्रताड़ित किया, जिन्होंने कोरोना वायरस की गंभीरता को लेकर आवाज उठाई। उसने एक और गैरजिम्मेदाराना काम यह किया कि कोरोना वायरस के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन को तो सूचना दे दी, लेकिन अपने लोगों को कुछ नहीं बताया। इसके दुष्परिणाम सामने आने ही थे। संकट से घिरे चीन के प्रति हमदर्दी समय की मांग है और भारतीय प्रधानमंत्री ने चीनी राष्ट्रपति को मदद की पेशकश करके यही किया है, लेकिन विश्व समुदाय को चीन के समक्ष यह भी रेखांकित करना चाहिए कि उसकी लापरवाही ने एक बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है। एक रिपोर्ट के आधार पर दुनिया के बड़े तेल उत्पाद इस वजह से अपने उत्पादन में कटौती कर सकते हैं।

 

 

कच्चे तेल की साल भर की क़ीमतों के लिहाज से देखें तो इस समय कच्चे तेल की क़ीमतें अपने निम्नतम स्तर पर हैं। लगातार जनवरी से इसकी क़ीमत में 20 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की जा रही है। कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से चीन के बड़े हिस्से में नए साल की छुट्टियां बढ़ा दी गई हैं और साथ ही यात्रा प्रतिबंध भी लागू हैं। इसी वजह से फ़ैक्ट्रियां,ऑफिसऔर दुकानेबंद हैं। इसका एक मतलब ये भी है कि दुनिया में कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीददार अब कम तेल खरीद रहा है। चीन औसतन प्रतिदिन एक करोड़ बैरल तेल खपत करता है, लेकिन अभी ऐसा होना पाना मुश्किल हो चुका है। इतना ही नहीं चीन में यात्रा प्रतिबंध लागू हैं और सड़कों पर यातायात बुरी तरह प्रभावित हुआ है। कोरोना संकट की वजह से हवाई जहाजों के काम आने वाले जेट फ़्यूल भी कम खपत हो रही है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय विमान सेवाओं में भी कटौती की जा रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ चीन में कच्चे तेल की खपत में 20 फ़ीसदी की गिरावट आई है। चीन की घरेलू खपत में ये गिरावट उतनी ही है जितनी इटली और ब्रिटेन को मिलाकर तेल की ज़रूरत पड़ती है। चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इस लिहाज से दुनिया की अर्थव्यवस्था में जो तरक्की हो रही है, चीन की उसमें एक अहम भूमिका है, लेकिन ऐसा लगता है कि चीन की कोरोना वायरस के प्रति हुई लापरवाही का खामियाज़ा पूरी दुनिया को उठाना पड़ेगा।

 

भड़ास अभी बाकी है...