क्या ये नफरत करने का सही वक़्त है !

सोशल मीडिया पर वायरल हो रही ऐसी पोस्टों को आप नजरंदाज नहीं कर सकते क्योंकि कोरोना फैलाने में उन लगभग चार हजार मुसलमानों को बड़ा हाथ साबित हो चुका है, जो तबलीगी जमात के जलसों में शामिल हुये थे,लेकिन क्या यह पूरे मुसलमानों से नफरत की बहुत बड़ी तो दूर की बात है बहुत छोटी वजह भी होना चाहिए। इस सवाल का सटीक जबाब खोजा जाना जरूरी हो चला है। अगर सोचें तो इस एक मामले ने कोरोना की लड़ाई में देश को काफी पीछे धकेल दिया है। जिसमे आंकड़ें भी हैं और तर्क भी, जिन्हें साधारण तौर पर तो खारिज नहीं किया जा सकता लेकिन भारतीय समाज के उस पहलू से बचने की कोशिश की जा रही है जो कोरोना से परे यह बताता है कि देश में हिन्दू और मुसलमान दोनों तबके एक दूसरे से बला की नफरत करते हैं । क्यों करते हैं यह भी नाकाबिले जिक्र बात है, लेकिन यह कहना कुछ हिंदुओं को बड़ा नागवार गुजरता है कि नरेंद्र मोदी सरकार के वजूद में आने के बाद यह नफरत उत्तरोतर बढ़ी है। निश्चित रूप से इस बात का जिक्र ही हमें कोरोना नाम की भीषण आपदा की तरफ से विमुख और लापरवाह कर देता है। नरेंद्र मोदी में कुछ करोड़ लोगों की विकट की आस्था है जो ज्यादा हर्ज की बात नहीं क्योंकि हर दौर में ऐसा होता है कि अपने चहेते नेता के बारे में लोग अपनी एक धारणा बना लेते हैं और इसे साकार होने देख कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू और इन्दिरा गांधी के दौर में भी अंधभक्तों की कमी नहीं थी। लेकिन मोदी में आस्था की माने क्या सिर्फ तबलीगी जमात में शामिल जामतियों के अलावा सभी मुसलमानों से नफरत होनी चाहिए इस सवाल का जबाब देने के लिए  कोई तैयार नहीं क्योंकि मसला तकनीकी तौर पर काफी उलझा हुआ है। अंदरूनी हालात तो विभाजन के वक्त जैसे होते जा रहे हैं। कुछ बातें जो अपनी बन्दिशों में रहने की मजबूरी के चलते सिर्फ इशारों में कही जाती  है वे सोशल मीडिया पर इफ़रात से प्रवाहित हो रहीं हैं। ऊपर बताई दो पोस्टें इसकी बानगी भर हैं जिन्हें बात को समझने बताया गया है। इस वक्त में किसी के लिए यह कहना बहुत कठिन और चुनौती भरा ही नहीं बल्कि जोखिम भरा काम भी है कि वह सख्ती से यह कहे कि नहीं मुसलमानो से नफरत करने और उसे प्रदर्शित करने का कोरोना जंग से कोई ताल्लुक नहीं है।

 

 

इस सच से, नफरत करने बाले हिन्दू भी ईमानदारी से सोचें तो इंकार नहीं कर सकते की तबलीगी जमात मामले ने नफरत प्रदर्शित करने का मौका उन्हें दे दिया है वरना तो नफरत पहले से ही उनके दिलों में कूट कूट कर भरी है और मुसलमान भी हिंदुओं से किसी तरह की मोहब्बत नहीं करते हैं, लेकिन अच्छी बात यह है कि जमातियों की गलती और बेवकूफी उन्हें अब समझ आने लगी है पर वे भी कुछ अगर, मगर, लेकिन, किन्तु, परंतु लगाकर उसे ढकने की एक गलत कोशिश कर रहे हैं फिर चाहे वे न्यूज़ चेनल्स की बहसों में हिस्सा लेने वाले विद्वान नुमाइंदे हों या सोशल मीडिया पर पोस्ट इधर उधर करने बाला आम मुसलमान हो। कुछ राज्य सरकारें अगर यह कह रहीं हैं कि जमाती अपने आप को छिपाए नहीं, नहीं तो उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाएगी तो वे गलत नहीं कर रहीं हैं लेकिन यही बात हिन्दू सोशल मीडिया पर अपने ढंग से कहे तो उसे सही नहीं ठहराया जा सकता। छिपे हुये जमातियों का एक बड़ा डर इस तरह की धौंस डपट भी हो सकता है। ये धौंसे भी कट्टरवाद के दायरे में आती हैं जिन्हें इन दिनो चौतरफा शह मिली हुई है। जरूरत इस बात की है कि सभी वक्त की नजाकत समझते धर्म और जात पात का जहर अपनी दिलो दिमाग से निकालें नहीं तो कोरोना से तो एक दफा जंग जीत जाएँगे लेकिन यह नफरत, नफरत करने बालों को ही परास्त करने बाली साबित होगी। देश में जगह जगह कोरोना के मरीजों का इलाज कर रहे डाक्टरों का सामाजिक बहिष्कार और तिरस्कार भी इसी मानसिकता की देन है और इनमें से अधिकांश हिन्दू ही हैं यानि फसाद की जड़ यहाँ भी नफरत ही है।

 

 

आप बतौर एहतियात इलाज कर रहे डाक्टरों से दूर रहें यह बात कतई हर्ज की नहीं, हर्ज की बात उनसे अछूतो जैसा बर्ताव करना और उन्हें प्रताड़ित करना है जिसका उद्गम धर्मग्रंथ नहीं तो और क्या हैं जिनहोने हमे सिखाया कि फलाना मेहतर, चमार, भंगी है छोटी जात का है, इसलिए उससे दूर रहो उससे घृणा करो अब भी यही हो रहा है डाक्टरों के साथ भी और मुसलमानों के साथ भी और करने बाले वे 9 -10 करोड़ लोग हैं जिनके दिमाग में हिंन्दू राष्ट्र का कीड़ा कुलबुला रहा है। इन लोगों को समझना चाहिए कि यह एक फिजूल का फितूर है जो कभी पूरा होने वाला नहीं हाँ अगर यूं ही बढ़ता रहा तो एक और गृह युद्ध की नौबत ज़रूर आ सकती है। फिर ये दोहराना जरूरी है कि हम एक लोकतान्त्रिक देश में रहते हैं और उसी ने हमें इस मुकाम तक पहुंचाया है। अमेरिका जैसा ताकतवर देश जिसके पास संसाधनों की कमी होने का जिक्र करना भी एक छलावा सा लगता है, आज एक खास दवा के लिए हमारे देश का मोहताज है, जिसका श्रेय हमारे प्रधानमत्री नरेन्द्र मोदी जी को समर्पित है, अगर नफरत ही करते रहे होते तो तरक्की नहीं होती और हमारे देश की आवाम की स्थिति पाकिस्तान से कई गुना ज्यादा बदतर हो जाती।

लॉकडाउन के साथ भड़ास अभी बाकी हैं....