कोरोना...कहीं चुनौतियों का अलाव और कहीं ख्याली पुलाव...

कुछ दिन पहले तक तो लग रहा था कि कोरोना बहुत बड़ा संकट है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने माना था कि यह इस वक़्त सबसे बड़ा संकट है और इससे हमें महाभारत की लड़ाई के अंदाज में लड़ना है, लेकिन अचानक पिछले कुछ दिनों से इसे अवसर के रूप में पेश किया जाने लगा  है। ऐसा लग रहा है कि जब संकट से पार पाना मुश्किल हो गया तो उसे अवसर बताना शुरू कर दिया गया। वैसे भी अवसरवादी आदमी की परिभाषा यहीं होती है कि वह पानी में गिर जाए तो उसी में नहाने लगे। अवसरवादी सरकारें भी इससे अलग नहीं हैं। इतिहास गवाह है कि दुनिया भर में दक्षिणपंथी ताकतों ने महामारियों और संकटों को ही अवसर बना कर अपनी सत्ता मजबूत की है या उसे तानाशाही में बदला है,लेकिन भारत के संदर्भ में वह अलग से चर्चा का विषय है। फिलहाल कोरोना वायरस के वैश्विक संकट को अवसर बताने या बनाने के नैरेटिव पर विचार जरूरी है। सरकार के लिए यह किस तरह से अवसर है और सरकार इसका कैसे इस्तेमाल करेगी उस पर विचार करने के लिए यह हकीकत जान लें कि संकट हमेशा कुछ लोगों के लिए अवसर होता है। सूखा हो या बाढ़ अनेक लोगों के लिए वह अवसर ही होता है। वैसे ही कोरोना भी बहुत से लोगों के लिए अवसर है। कुछ लोग खाने-पीने की चीजों की कालाबाजारी में जुटे हैं। कुछ नकली मास्क और सैनिटाइजर बना रहे हैं। कुछ लोग नकली पीपीई किट्स बना कर बेच रहे हैं। कुछ लोग बाहर से सस्ता सामान खरीद कर सरकार को ही कई गुना कीमत पर बेच रहे हैं। कहीं दवाएं ज्यादा दामों में बिक रही हैं तो कहीं जरूरी सामान बेचने या पहुंचाने के काम में लगे लोगों से रिश्वत ली जा रही है। इसी में कई राज्य सरकारों ने भी फायदा उठा लिया। उनको लगा कि देश के मजदूर पैदल चल कर अपने घर पहुंचने की जद्दोजहद में हैं तो इस अवसर का फायदा उठा कर श्रम कानूनों को बदल देते हैं ताकि उद्यमियों को फायदा पहुंचाया जा सके। इसलिये, अकाल या सूखा कुल मिलाकर कोरोना भी बहुत सारे लोगों के लिए अवसर लेकर आया है।

 

 

केंद्र की सरकार कहां खड़ी है यह देखना होगा। यह समझना होगा कि वह कैसे कोरोना के संकट को अवसर मान रही है। इस संदर्भ में तीन बयान अहम हैं। पहला नितिन गडकरी का है, जब उन्होंने कहा कि चीन के प्रति दुनिया के देशों में नाराजगी है और भारत को इसका फायदा उठाकर अपनी निर्माण इकाइयों को मजबूत करना चाहिए और विदेशी कंपनियों को आकर्षित करना चाहिए। दूसरा बयान राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का आया कि इस अवसर का लाभ उठाकर स्वदेशी को बढ़ावा देना चाहिए और तीसरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का आया कि देश को आत्मनिर्भर बनना है और लोकल के लिए वोकल होना है यानी स्वदेशी को बढ़ावा देना है। इन तीनों बातों से एक साझा बात यह निकलती है कि चीन अछूत हो रहा है तो भारत को उसका फायदा उठाकर अपने यहां निर्माण गतिविधियां शुरू करनी चाहिए और विदेशी कंपनियों को भारत आने के लिए लुभाना चाहिए। फिलहाल तो ये थोड़ा मुश्किल काम है पर हो सकता है कि शायद 20-30 साल आगे की योजना बनायी जा रही हो। सरकार को यह समझना होगा कि हथेली पर सरसों नहीं उगाई जा सकती। चीन अगर आज दुनिया की फैक्टरी है तो वह पिछले 60 साल के अथक परिश्रम के बाद यहां पंहुचा है। साठ के दशक में उसके यहां जिला स्तर पर औद्योगिकरण की योजना लागू हुई थी। माओ ने हजार फूल एक साथ खिलने का नारा दिया था। भारत भी अगर इस तरह सोचे, जिला स्तर पर उद्योगों को बढ़ावा देने की दीर्घावधि की योजना बनाए तो कुछ बदलाव हो सकता है। सवाल है कि क्या प्रधानमंत्री ने जिस पैकेज की घोषणा की है उसमें इस पर फोकस रहेगा? यह सरकार असल में कर्ज को सहज बनाने के लिए तरलता बढ़ाने पर जोर दे रही है या लोगों को राशन पहुंचाने और पांच सौ-हजार रुपए देने के सिद्धांत पर चल रही है। अगर सरकार एक बड़ा पैकेज देकर देश के हर जिले में बंद पड़ी फैक्टरियों को ही चालू करा दे तो आधा काम उससे पूरा हो जाएगा। पर वह नहीं होना है।

 

 

अगर सरकार इस संकट को अवसर में बदलने की तात्कालिकता पर भी सोचती तो सबसे पहले यह कहा जाता कि सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को मजबूत करेगी। जिस तरह से केरल ने पिछले पांच-छह दशक में सोशल सेक्टर में निवेश किया और कोरोना के संकट में उसे इसका लाभ मिला, उसी तरह केंद्र सरकार देश भर में सोशल सेक्टर में निवेश बढ़ाएगी, स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करेगी, अस्पताल खोलेगी, मेडिकल और नर्सिंग कॉलेज खोले जाएंगे, दवाओं और चिकित्सा उपकरणों की फैक्टरियां लगेंगी, पर इस तरह की कोई लक्षित योजना दिखाई नहीं दे रही है। बस एक जुमले की तरह कहा जा रहा है कि संकट को अवसर में बदलना है। संकट को कैसे दूर करना है, इस दिशा में काम करने की बजाय संकट को अवसर बताने में ध्यान लगाया जा रहा है। फिलहाल तो पहले कोरोना के संकट से निपटना है, जैसे दुनिया के बाकी दूसरे सभ्य और विकसित देश निपटे ही रहे है। दुनिया ने संकट को अवसर बनाने से पहले संकट को दूर किया है। संकट के बीच में अवसर की बात सिर्फ अवसरवादी कारोबारी या चंद लालची लोग कर सकते हैं। सरकार की पहली जिम्मेदारी संकट से निपटने की है। अभी भारत संकट के मध्य में खड़ा है। अठहत्तर हजार से ज्यादा लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं और अगर सरकार के अनुमान को ही मानें तो इस महीने के अंत तक संख्या तीन लाख से ऊपर होगी। मरने वालों का आंकड़ा दस हजार के करीब पहुंचा हुआ होगा। भारत की आबादी के लिहाज से यह संख्या बड़ी नहीं है फिर भी यह आगे के बड़े संकट का संकेत है। इसलिए सरकार पहले इस संकट से निपटे। इससे लोगों का ध्यान हटाने की बजाय इस पर ध्यान केंद्रित करे और इसे दूर करे। उसके बाद अवसर के बारे में सोचे। और साथ ही यह भी ध्यान रखे कि दुनिया के दूसरे देश बेवकूफ नहीं बैठे हैं, जो इसे किसी दूसरे देश के लिए अवसर बनने देंगे। वह भी ऐसे देश के लिए, जिसके पास बुनियादी ढांचे की घनघोर कमी है। यह ध्यान रहे कि इस संकट को अवसर में वो देश तब्दील करेंगे, जिनके पास पहले से मजबूत बुनियादी ढांचा है, सरल कानून हैं, लालफीताशाही नहीं है और जो बड़ी आर्थिक ताकत हैं। उन देशों से रातों रात हम सिर्फ इसलिए आगे निकल जाएंगे कि कोरोना वायरस की वजह से हमारे यहां कम लोग मरे हैं और उनके यहां ज्यादा लोग मरे हैं या हमारी आबादी बड़ी है या हम विदेशी कंपनियों को लुभाने के लिए श्रम और भूमि कानूनों में अनाप-शनाप बदलाव करने को तैयार हैं, ऐसे ख्याली पुलाव वक़्त कि नज़ाकत को समझते हुए ही पकाने चाहिये।

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