क्या ये नफरत करने का सही वक़्त है 2.0

आज सम्पूर्ण विश्व चायनीज वायरस लड़ रहा है,हमारा देश भी इससे अछूता नहीं रह गया है, फिर भी हमारे देश के भीतर ऐसे भी कुछ तत्व हैं, जो आपदा की इस घड़ी में देश से लड़ रहे हैं। उन्होंने भीतर ही भीतर देश की एकता के विरुद्ध लड़ाई छेड़ रखी है। उनकी मंशा लोगों को आपस में लड़ाने की है। जनता के बीच अविश्वास और घृणा की खाई खोदने में व्यस्त ये लोग या समूह, जिनका दाना-पानी आजादी के बाद से उसी ‘बांटो और राज करो’ की नीति पर चल रहा है, जिस नीति को आधार बनाकर अंग्रेजों ने इस देश पर राज किया था। दूसरी ओर, इनके साथ वे लोग भी कदमताल कर रहे हैं, जिन्होंने अलग-अलग देशों में तख्तापलट की पटकथा लिखी और उसे क्रांति का नाम देकर पूरी दुनिया को गुमराह किया। आज की परिस्थिति विशेष है। लॉकडाउन में लोगों के स्व-नियंत्रण की परीक्षा हो रही है और इस बंद की कीमत चुकाकर भी पूरा देश जिस तरह स्वतःनियंत्रण का परिचय दे रहा है, वह पूरी दुनिया के लिए उदाहरण है। ऐसे समय में भारत के भीतर लड़ाई छेड़ने का मंसूबा पाले बैठे लोग किसानों और मजदूरों के मन में एक चिंगारी पैदा करना चाहते हैं, ताकि उनके स्वार्थ का तंदूर गरम रहे। इन्होंने लंबे समय तक गरीब, गरीबी और वर्ग शोषण के नाम पर मलाई काटी है। उनके नेतृत्व का फलसफा यही है कि उनका नेतृत्व बना रहे। किसी को और कुछ मिला हो या नहीं, पर वे सत्ता की निकटता और मलाई प्राप्त करते रहे हैं। उन्होंने देश या दुनिया के किसी कोने में श्रमिकों का भला किया हो, ऐसा कोई मॉडल नहीं दिखता है। आज उनके निशाने पर भारत का गरीब और मजदूर वर्ग है। दरअसल, समाज की कमजोर कड़ी पर राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां सेंकने वाली इन दोनों धाराओं को लोगों ने पहचाना और नकार दिया है, लगातार प्रतिनिधित्व से लोगों ने यह बता दिया है कि भारत में अब विभाजनकारी राजनीति नहीं चलेगी, मगर विभिन्न संचार माध्यमों के द्वारा भीतर अब भी ऐसी आवाजों के हित पोषक हैं, जो घटनाओं को जाति-धर्म, ऊंच-नीच के चश्मे से दिखाते हैं जिससे ये धाराएं वापस तंत्र की मुख्यधारा में आ जाएं।

 

 

हाल के समय में कई बार ऐसे मौके आए जब दूसरों का घर जलाकर हाथ सेंकने वाले इन महारथियों का झूठ भी पकड़ा गया। कुछ दिन पहले एक खबर आयी थी, जिसमें कहा गया था कि भूख की कारण एक साधु की मौत हो गई, जबकि वह साधु जिस मंदिर व्यवस्था से जुड़े हुए थे, वहां दिन में 5-6 बार खाना मिलता है, ऐसी तमाम खबरों का सिलसिला देश के विभिन्न स्थानों से सुनने को मिलता रहा जबकि हकीकत कुछ और  ही थी ये वक़्त के साथ पता भी चलता गया, ऐसी झूठी खबरों पर कार्यवाही भी की गयी। ऐसे में गौर करने वाली बात ये है कि भूख को मुद्दा बनाया गया वह भी ऐसे लॉकडाउन की स्थिति में। जब हमारा देश  दुनिया के सामने अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है और देश का संवेदनशील समाज लगातार जरूरतमंदों की भरपूर मदद कर रहा है। गरीबों, वंचितों को खाना देने के लिए समूह, संस्थाएं और व्यक्ति लॉकडाउन के पहले दिन से आगे आ रहे हैं। पुलिस स्थान विशेष पर भोजन की आवश्यकता के आंकलन और खाद्यान्न वितरण में स्वयं मदद कर रही है। देश के बड़े-बड़े धार्मिक समूह लगातार लंगर चला रहे हैं। विभिन्न संघएवं परिषद् लोगों को खाना खिला रहे हैं। इस पूरी सकारात्मकता के बीच झूठी खबरें फैलाने और उनके पकड़ में आने से यह पता चलता है कि वास्तव में असलियत कुछ और है। उनके पास बताने के लिए और कुछ भी नहीं है। ऐसे लोगों से हमें बहुत सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि केवल राजनीतिक तौर पर उन्हें बुहार देने से कुछ नहीं होगा। जो कि देश  को बांटने की बात करने वाले अलग-अलग मचानों पर बैठे हुए हैं। जिनके निशाने पर भारत है, इसकी बेमिसाल एकता है। इन लोगों के मंसूबों को बेपर्दा करना भी बहुत जरूरी है। झूठ फैलाने वालों पर कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए, क्योंकि ये लोग राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय सौहार्द को बिगाड़ रहे हैं।

 

 

विभिन्न माध्यमों से झूठ फैलाने वालों पर भी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। जिस तरह से स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई के लिए सरकार ने एक फैसला लिया है, हर आपातकाल में भारत के सामने जो ये विघ्नसंतोषी खड़े होते हैं, इनका समूल खंडन किए बिना देश में स्थायी शांति लागू कर पाना एक असंभव सा प्रयास है। 

 

लॉकडाउन के साथ भड़ास अभी बाकी है...