कोरोनाकाल, मोदी सरकार और खामियाजाओं का पलटवार...

प्रधानमंत्री जी ने जून के आखिरी पड़ाव (30 जून) में एक बार फिर से राष्ट्र को संबोधित किया था। यह कोरोना संकट के आने के बाद से राष्ट्र के नाम हमारे मोदी  जी का छठा संबोधन था। प्रधानमंत्री जी की बातों से अगर माना जायें तो देश में सब कुछ सामान्य स्थिति में है, इतना ही नहीं देश में अवसरों की लहर सी बह रही है। बेशक, लोगों को दिलासा देना, तसल्ली देना तो समझ में आता था, ताकि लोग बेवजह घबराएं नहीं। पर प्रधानमंत्री जी को तो इसकी फिरनी करनी थी कि उनके नेतृत्व में भारत कैसे कोरोना का मुकाबला करने में दूसरे बड़े-बड़े देशों से आगे है, उनसे ज्यादा कामयाब भी हो रहा है। उन्होंने यह कहकर खुद अपनी पीठ भी ठोकी कि सही समय पर कदम उठाकर उनकी सरकार ने लाखों जानें बचाई हैं!  खैर ये तो रही बीती बातें , लेकिन आज की हकीकत ये है कि प्रधानमंत्री जी भी इस सच्चाई पर यकीन नहीं कर पा रहें है कि उनकी सरकार के कामयाबी के दावे अपनी जगह, कोरोना के पीड़ितों और उससे जान गंवाने वालों का आंकड़ा तेजी से बढ़ता ही जा रहा है। आज कोविड-19 के संक्रमण मामले में भारत पहले लॉकडाउन में और उसके बाद तथाकथित अनलॉक में भी तेजी से ऊपर चढ़ते गए हैं और हमारा देश दुनिया भर में टॉपक्लब के तीसरे स्थान पर आसीन हो गया है। बेशक, अमेरिका तो अब भी सबसे आगे है। उसके बाद, ब्राजील। दस लाख चालीस हज़ार का आंकड़ा पार कर भारत तेजी से ब्राजील को पछाड़ने की ओर अग्रसर है। बहरहाल, प्रधानमंत्री ने महामारी के मोर्चे पर बढ़ती चुनौती के लिए किसी तरह की जिम्मेदारी स्वीकार करने से साफ इंकार करते हुए, केसों में और मौतों में भी तेजी से बढ़ोतरी की सारी जिम्मेदारी, जनता पर ही डाल दी। उनका कहना रहा कि अनलॉक में जनता लापरवाह हो गई है। लोगों ने दो गज दूरी, चेहरे पर मास्क लगाने औैर बार-बार साबुन से हाथ धोने जैसी सावधानियों के मामले में ढील शुरू कर दी है।

 

 

जो महामारी का बढ़ता जोर दिखाई दे रहा है, ये सब इसी का नतीजा है, पर महामारी का जोर तो बढ़ता ही जा रहा है। हर रोज, पिछले दिन से ज्यादा लोग संक्रमित हो रहे हैं और पिछले दिन से ज्यादा लोग मौत के मुंह में समा रहे हैं। लेकिन हमारी सरकार, प्रधानमंत्री समेत समूची सरकार, इस सच्चाई पर पर्दा डालने की ही कोशिशों में लगी हुई है। लेकिन, यह बढ़ते खतरे की सच्चाई पर पर्दा डालने का भर का मामला नहीं है। यह सिर्फ लोगों को झूठी तसल्ली देने का भी मामला नहीं है। यह इस बढ़ते खतरे का मुकाबला करने के लिए जो कुछ किए जाने की जरूरत थी, उससे बचने का, सरकार के सम्बन्ध में होने वाली जिम्मेदारी पूरी करने से भागने, पीछे हटने का भी मामला है। हकीकत तो ये है कि सरकार ने पहले लॉकडाउन से मिली मोहलत को गंवा दिया, जिसकी उम्मीद थी हमलोग उससे मीलों दूर रहें जैसे लॉकडाउन से संक्रमणों की रफ्तार में बढ़ोतरी पर लगने वाले अंकुश का इस्तेमाल कर बड़े पैमाने पर टैस्टिंग बढ़ाते, संक्रमितों के संपर्कों का पता लगाते, बड़े पैमाने सार्वजनिक चिकित्सा सुविधाएं जुटाते, बैड, आईसीयू, वेंटीलेटर जुटाते। आपने ताली-थाली बजाई, दीया-बाती की, फूल भी बरसवा लिए। पर कोरोना योद्धाओं की प्राणरक्षा के लिए जरूरी पीपीई किटों तक का इंतजाम नहीं किया गया और तो और देश के कई हिस्सों में आलम ये है कि नगरपालिका के अस्पतालों में डॉक्टर इसी संकट के बीच तीन-तीन महीने की तनख्वाह ही नहीं मिलने के चलते, हड़ताल की धमकी देने पर मजबूर हो गए हैं। नर्सों का तथा बाकी स्टाफ का क्या हाल होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। कोरोना संबंधी सर्वेक्षण के काम में लगीं आशा वर्कर्स से लेकर सफाईकर्मी तक, न्यूनतम सुरक्षा से लेकर उपयुक्त वेतन तक की मांगों को लेकर, विभिन्न राज्यों में विरोध प्रदर्शन की ख़बरें आयें दिन मिलतीहैं। बहरहाल, पहले लॉकडाउन की मोहलत को बर्बाद किया गया सो किया गया, अनलॉक-वन के शुरू होने के बाद से तो सरकार ने जैसे इस लड़ाई से अपना हाथ ही खींच लिया है। लॉकडाउन-थ्रीके आखिर में प्रधानमंत्री ने बीसलाख करोड़ रुपए के आत्मनिर्भर भारत पैकेज का जो ऐलान किया था, वास्तव में देश की सरकार के कोरोना के खिलाफ मोर्चे से पीछे हट जाने का ही ऐलान था।

 

 

अचरज नहीं कि इस पैकेज में, कोरोना के मुकाबले के लिए किसी भी नये खर्चे का, किसी भी नयी योजना का ऐलान कोई नहीं था। इसके ऊपर से इस बढ़ते संकट की तरफ से ध्यान बंटाने के लिए, आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की देशवासियों के हाथ में एक और पर्ची थमा दी है। प्रधानमंत्री जी ने अपने संबोधन में जैसे बखान किया है कि कैसे उनकी सरकार ने सही वक्त पर जरूरी कदम उठाकर कोरोना के कहर से देश को बचा लिया था। उसी तरह उन्होंने ये बखान भी किया कि कैसे उनकी सरकार ने बड़ी मुस्तैदी दिखाते हुए आसस्वता प्रदान की कि लॉकडाउन में कोई भूखा न सोए। इतना ही नहीं, उन्होंने तो बढ़ा-चढ़ाकर इसका भी बखान किया कि कैसे उनकी सरकार ने जनता को मुफ्त भोजन मुहैया कराने का इतना बड़ा काम किया था, जो न पहले किसी न किया और ना ही आगे कोई कर पाएगा। सरकार ने तो अमेरिका की कुल आबादी से ढाई गुने, इंग्लैंड की आबादी के बारहगुने और यूरोपीय यूनियन की आबादी से दोगुने लोगों को मुफ्त भोजन कराया था ! इसके साथ ही उन्होंने बीसकरोड़ गरीबों के खाते में तीन महीने में इकतीस  हजार करोड़ रुपए जमा कराने का गाना भी गाया। वास्तव में प्रधानमंत्री गरीबों को जरूरी मदद देने के बढ़े-चढ़े दावों की आड़ में इस सच्चाई को छुपाने की कोशिश कर रहे थे, उन्होंने देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा बिना किसी योजना के और बिना किसी तैयारी के अचानक उसी तरह की थी, जैसे चार साल पहले अचानक नोटबंदी की घोषणा की थी। वहीं लॉकडाउन की घोषणा के बाद, एक लाख पचहतर हजार करोड़ रुपए के गरीब कल्याण पैकेज का प्रारूप जारी होने में कुछ दिन निकल गए और उसके बाद, उसमें की गई घोषणाओं को जमीन पर उतरने में कुछ दिन और भी ! यही वह समय था, जब आय के साधन छिनने से भूखों मरने की नौबत आती देखकर, भारत के छोटे-बड़े कस्बों/शहरों से हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूरों के अपने घर की ओर पलायन का सिलसिला शुरू हुआ, जो पूरे लॉकडाउन के दरमियां जारी रहा।

 

भड़ास अभी बाकी है...