तलाक के फैसले के खिलाफ दायर अपील के दौरान किया गया विवाह अमान्य नही

मुंबई हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में माना है कि हिंदू पुरूष या महिला द्वारा तलाक के फैसले के खिलाफ की गई अपील के दौरान दूसरा विवाह किया जाता है तो यह गैरकानूनी तो है लेकिन अमान्य नही है। कोर्ट ने इस कृत्य को अदालत की अवमानना भी नही माना है।

 

क्या है पूरा मामला

मुंबई के एक जोड़े ने साल 2003में शादी की। बाद में इस दंपत्ति के संबंधों में तनाव आ गया और बात-बात पर झगड़े होने शुरू हो गए। तमाम कोशिशों के बाद भी जब चीजें सही नही हुई तो महिला ने अपने पति को छोड़ दिया। पति ने महिला से तलाक के लिए अर्जी दाखिल कर दी। 2009में संयुक्त सिविल जज सीनियर डिवीजन ने उनकी तलाक की याचिका खारिज कर दी। बाद में जिला जज ने साल 2015में पति को तलाक की अनुमति देते हुए उसे शादी के बंधन से मुक्त कर दिया।

महिला ने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दाखिल की लेकिन अपील के लंबित रहने के दौरान ही महिला के पति ने 20मार्च 2016को दूसरी शादी कर ली।

महिला ने दलील दी कि उसके पति का यह कृत्य कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट एक्ट के तहत अवमानना के दायरे में आता है और दंडनीय अपराध है।


क्या कहा न्यायधीश महोदय ने

 न्यायमूर्ति अनिल किलोर ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955की धारा 15में तलाक का फैसला आने के बाद उसके खिलाफ दायर की गई अपील अगर खारिज कर देने की स्थिति में ही दूसरी शादी की अनुमित दी जाती है, चूंकि अधिनियम में प्रावधान का उल्लंघन करने पर कोई परिणाम नहीं दिया गया है इसलिए ऐसी शादी को अमान्य भी नहीं कहा जा सकता।

न्यायमूर्ति किलोर ने अपने फैसले में कहा कि, "यह स्पष्ट है कि धारा 15के उल्लंघन में किए गए विवाह का कोई परिणाम नहीं दिया गया है, यह नहीं कहा जा सकता है कि इस तरह की शादी अमान्य हो जाएगी।" न्यायाधीश ने महिला के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि उसके 40साल के पति को पारित तलाक को चुनौती देने के दौरान दूसरी शादी कर लेने के लिए 'अदालत की अवमानना' ​​के लिए दंडित किया जाना चाहिए।