राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस पर विशेषः आंकड़ें बताते हैं कि सरकार नौकरियां खा गई

देश के युवाओं का एक बड़ा वर्ग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस के रूप में मना रहा है। सत्ता में आने के बाद से यह पहली बार है जब प्रधानमंत्री मोदी इस तरह के विरोध का सामना कर रहे हैं। इस महीने की शुरूआत में ही प्रदेश के कई शहरों में युवाओं ने ताली और थाली बजाकर अपना विरोध जताया। युवाओं के आक्रोश का आलम यह है कि इस वे इस पूरे सप्ताह को राष्ट्रीय बेरोजगारी सप्ताह के रूप में मना रहे हैं। 
 
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी ने वायदा किया था कि वह हर साल युवाओं को 2 करोड़ नौकरियां सालाना देंगे। लेकिन आंकड़े बता रहे हैं कि उन्होने वायदा पूरा नही किया बल्कि इस सरकार ने लगातार करोड़ो नौकरियां लील लीं। तुर्रा यह कि नौकरियां मांग रहे युवाओं को पकौड़े तलने की सलाह दी जा रही है। पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति ने कई कदम आगे जाते हुए अपने यहां से पास होकर निकलने वाले छात्रों को खंजड़ी बजाकर भीख मांगने की सलाह देते हुए इसे रोजगार का साधन बता दिया। 
 
पिछले साल संघीय बजट से पहले राष्ट्रीय सांख्यकी आयोग के सदस्यों के इस्तीफा देने की खबर चर्चा का विषय बनी। इन सदस्यों का आरोप था कि सरकार उन पर बेरोजगारी से जुड़े आंकड़ों में हेरफेर कर प्रदर्शित करने का दबाव डाल रही थी। मामले ने तूल पकड़ना शुरू ही किया था कि पुलवामा कांड हो गया और सारी बहसें दब गईं। सरकार जिन आकड़ों को दबाना चाह रही थी वो अपने आप गर्त में चले गए और चुनाव का मुद्दा बनते-बनते रह गए। 
 
लेकिन इंटरनेट के इस युग में सत्ता की तानाशाही प्रवृत्ति लाख कोशिशें करने के बावजूद सच को दबा नही सकती और यह सामने आ ही जाता है। कोरोना महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था के सत्यानाश ने बेरोजगारी से संबंधित आंकड़ों को बहस के केंद्र में ला दिया है। अर्थव्यवस्था और रोजगार से जुड़े आंकड़े बता रहे हैं कि सरकार ने किस तरह देश के युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है। इन आंकड़ो को देखेंगें तो बेरोजगारी दिवस मनाने की सार्थकता का पता चल जाएगा।

हर साल 1 करोड़ नौकरियां देने का वायदा भी साबित हुआ जुमला-
 
नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में वायदा किया था कि वह सत्ता में आए तो हर साल 1 करोड़ नौकरियों का सृजन किया जाएगा। आंकड़े बताते हैं कि मई 2014 से दिसंबर 2019 तक मोदी के पहले पांच सालों में 7 सेक्टरों में 4 करोड़ नौकरियां चली गईं। इस दौरान बेरोजगारी दर 7.1 प्रतिशत रही। जनवरी 2019 के दौरान सरकार नें राष्ट्रीय सांख्यकी आयोग पर इन आंकड़ो में हेरफेर कर इसी दर को कम कर के दिखाने का दबाव बनाया था जिसके चलते संस्थान के दो सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने वाले ये दो सदस्य थे-पीसी मोहनन और जेवी मीनाक्षी। मोहनन इससे पहले आयोग के चेयर पर्सन भी रह चुके थे। इन सदस्यों का कहना था कि मोदी सरकार ने आयोग को टूथलेस कर दिया है। सरकार ने जीडीपी बैक सिरीज पर एनएससी की रिपोर्ट को केवल एक कवायद बताते हुए खारिज कर दिया था। इसके अलावा अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी से जुड़े आंकलन और आंकड़े भी दबा दिए गए। 

कोरोना काल को मिला कर 6 साल में 6 करोड़ से ज्यादा रोजगार खा गई सरकार-
 
कोरोना महामारी की बात करें तो इस दौरान अप्रैल से लेकर मई तक तकरीबन 2 करोड़ 67 लाख लोगों की नौकरियां चली गईं। इस हिसाब से अपने 6 साल के कार्यकाल में नरेंद्र मोदी तकरीबन 6.50 करोड़ नौकरियां खा गए। कहां बात हो रही थी हर साल 1 करोड़ रोजगार देने की जबकि औसतन हर साल 1 करोड़ से ज्यादा रोजगार के अवसर खत्म कर दिए गए। 

मोदी सरकार में सरकारी कर्मचारियों की संख्या भी घटी-
 
सीएमआईई की एक रिपोर्ट बताती है कि मई 2014 में सरकारी कर्मचारियों की संख्या तकरीबन 45 करोड़ थी जो मई 2019 में घट कर 41 करोड़ हो गई। यह मोदी के पहले कार्यकाल का हिसाब-किताब है। 

वो सेक्टर जिनमें खत्म की गईं नौकरियां-
 
आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार के इन 6 सालों में सबसे ज्यादा 3.5 करोड़ नौकरियां टेक्सटाइल सेक्टर में गईं। आभूषणों और ज्वैलरी के क्षेत्र में 5 लाख लोग बेरोजगार हो गए। इसके अलावा नोटबंदी के बाद से ही मंदी के दौर से गुजर रहे आटो सेक्टर में 2.3 लाख लोगों की रोजी रोटी छीन ली गई। 
 
बैंको की बर्बादी ने बैंकिग सेक्टर में नौकरियां की तबाह-
 
नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में वैसे तो उन सभी सेक्टरों पर गाज गिरी जहां रोजगार का सृजन होता था लेकिन सबसे बदहाल स्थिति बैंकिग सेक्टर की हुई। सरकारी बैंकों के विलय के कारण बैंकों की ब्रांचों में कमी आई। बैंकों की खस्ताहाल हालत ने इस क्षेत्र में तकरीबन 3.15 लाख नौकरियों को खत्म कर दिया। 

मोदी के जियो प्रेम ने टेलीकाम सेक्टर को बर्बाद किया- 
 
मोदी सरकार ने सत्ता और कारपोरेट के गठबंधन की नई पटकथा लिख दी। अबानी और अडानी प्रेम ने देश की अर्थव्यवस्था का बंटाधार तो किया ही साथ ही निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी खत्म कर दिए। मोदी ने अपने कार्यकाल में मुकेश अंबानी की कंपनी जियो को पूरा संरक्षण देकर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बीएसएनएल की बर्बादी की कहानी लिख दी। मोदी सरकार के संरक्षण में पल रही जियो ने टैक्स में छूट का लाभ उठा कर 6 महीने तक काल और इंटरनेट की सुविधाएं मुफ्त में दी। नतीजा यह हुआ कि बीएसएनएल के साथ ही टेलीकाम सेक्टर की तमाम कंपनियों के ग्राहक जियो की ओर खिंचे चले आए। यूनिनॉर और एयरसेल को अपना बोरिया बिस्तर समेटना पड़ा। मोदी सरकार की शातिरता और मक्कारी का इससे बड़ा सबूत क्या होगा कि सरकार ने बीएसएनएल को 4जी के स्पेक्ट्रम नही दिए। ध्यान देने वाली बात यह है कि बीएसएनएल सरकारी कंपनी है और किसी भी तरह की सेवा को शुरू करने का पहला अधिकार उस कंपनी का बनता है जो जनता के पैसों से खड़ी की गई है। लेकिन मोदी सरकार की कारपोरेट परस्त नीतियों के चलते बीएसएनएल टेलीकाम क्षेत्र में पिछड़ती चली गई। नतीजा यह हुआ कि कंपनी के ग्राहक जियो की तरफ चले गए और कंपनी बर्बादी की कगार पर पहुंच गई है। पूरी बेशर्मी के साथ एक निजी कंपनी को संरक्षण देने की मोदी की नीति ने टेलीकाम सेक्टर में असंतुलन पैदा कर दिया। जियो ने प्राइस वार शुरू किया और बाकी कंपनियां पिछड़ती चली गईं। इन कंपनियों में भी वोडाफोन और आइडिया का विलय हो गया है और एयरटेल अकेली बची है। इन कंपनियों को भी तगड़ा घाटा हो रहा है। नतीजा यह हुआ कि टेलीकाम सेक्टर में 90 हजार नौकरियां खत्म हो चुकी हैं। 

बाकी सेक्टरों का हाल भी बर्बाद- 
नोटबंदी का सबसे तगड़ा शिकार होने वाले सेक्टरों में रियल स्टेट भी है। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल मई 2014 से मई 2019 तक रियल स्टेट में 2 लाख 70 हजार नौकरियां जा चुकी थीं। जीएसटी के लागू होने के बाद हालात और खराब हो गए हैं। आशंका जताई जा रही है कि इस सेक्टर के और खराब दिन आने बाकी हैं 
इसके अलावा एविएशन सेक्टर में भी 20 हजार नौकरियां चली गईं। अकेले जेट एयरवेज के बंद होने का भी इस सेक्टर पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा और 15 हजार नौकरियां खत्म हो गईं। 
भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र (सीएमआईई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना महामारी के दौरान अप्रैल से जुलाई के महीने तक 2 करोड़ 67 लाख नौकरियां खत्म हो चुकी थीं। इस दौरान अप्रैल में 1 करोड़ 77 लाख, मई में 1 लाख, जून में 39 लाख और जुलाई में 50 लाख लोग बेरोजगार हुए।
सीएमआईई की रिपोर्ट बताती है कि बिना किसी पूर्व योजना के थोपे गए लॉकडाउन के कारण देश में बेरोजगारी की दर 27 प्रतिशत तक पहुंच गई। जबकि मार्च में यह दर केवल लगभग 7 प्रतिशत थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर 29.22 प्रतिशत जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर 26.69 प्रतिशत दर्ज की गई। 

राज्यवार बात करें तो केवल उत्तराखंड, हिमांचल प्रदेश और सिक्किम ही तीन ऐसे राज्य हैं जहां बेरोजगारी की दर ने दहाई का आंकड़ा नही पार किया हैं। जबकि बाकी बड़े राज्यों की बात करें पुडुचेरी में 75.8 प्रतिशत, तमिलनाडु में 49.8 प्रतिशत, झारखंड में 47.1 प्रतिशत, बिहार में 46.6 प्रतिशत, हरियाणा में 43.2 प्रतिशत, कर्नाटक में 29.8 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 21.5 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 20.9 प्रतिशत बेरोजगारी दर है। 
खुद मोदी सरकार के श्रम मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़े बता रहे हैं कि देश में 1 करोड़ तीन लाख लोग नौकरियां तलाश रहे हैं जबकि केवल 1 लाख 77 हजार नौकरियां ही मौजूद हैं। यह उन लोगों की संख्या हैं जो सरकार के नेशनल सर्विस पोर्टल के जरिए नौकरियों की तलाश कर रहे हैं। कोरोना महामारी से बचाव के दौरान लगाए गए लॉकडाउन के दौरान अप्रैल के महीने में इस पोर्टल में केवल 16 नौकरियां उपलब्ध थीं। मई में यह संख्या बढ़ कर मात्र 134 हो गई। जून में इस पोर्टल की स्थिति थोड़ा बेहतर हुई और इसमें दर्ज नौकरियों की संख्या 24,329 हो गई। जुलाई में यहां 49,542 जबकि अगस्त में 1.03 लाख नौकरियां मौजूद थीं। हालांकि इन नौकरियों की तलाश करने वालों की संख्या बढ़कर 1.03 करोड़ हो गई थी।