कृषि विधेयक लाकर आफत में पड़ी मोदी सरकार, सड़कों से संसद तक हो रहा विरोध


मोदी सरकार के तीन कृषि विधेयक प्रधानमंत्री की गले की फांस बन गए है। इन विधेयकों का संसद से लेकर सड़क तक विरोध हो रहा है। हरियाणा से लेकर पंजाब तक किसान आंदोलन कर रहे है। उधर संसद में विपक्ष भी सरकार पर हमलावर है। इन विधेयकों के विरोध में सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन के अंदर भी फूट पड़ गई है। केंद्र सरकार में मंत्री और अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर बादल ने इन विधेयकों को किसान विरोधी बताते हुए केंद्री मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इन विधेयकों को मोदी सरकार का किसान विरोधी कदम बताते हुए इनकी निंदा की है। इन विधेयकों के विरोध में देश भर के किसान संगठन भी आंदोलित हैं। देश के प्रमुख किसान संगठनों ने 25 सितंबर को भारत बंद का आहृवाहन किया है। 

अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल ने मंत्री पद छोड़ा-

शिरोमणि अकाली दल ने कृषि विधेको के खिलाफ बेहद कड़ा रूख अख्तियार कर लिया है। केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने मोदी सरकार के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है। अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल का कहना है कि उनकी पार्टी से इन अध्यादेशों को लेकर संपर्क नही किया गया जबकि हरसिमरत कौर ने इन विधेयकों का विरोध किया था और कहा था कि पंजाब और हरियाणा के किसान इससे खुश नही है। 
हरसिमरत कौर ने मोदी सरकार के मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के तुरंत बाद ट्वीट कर कहा, “मैंने केंद्रीय मंत्री पद से किसान विरोधी अध्यादेशों और बिल के ख़लिफ़ इस्तीफ़ा दे दिया है। किसानों की बेटी और बहन के रूप में उनके साथ खड़े होने पर गर्व है।“

आम आदमी पार्टी विधेकों के विरोध में करेगी मतदान-

उधर अरविंद केजरीवाल ने भी कहा है कि आम आदमी पार्टी संसद में इन विधेयकों के विरोध में मतदान करेगी। राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के 3 और लोकसभा में 1 सांसद है। केजरीवाल ने हिंदी में ट्वीट किया, ’’खेती और किसानों से संबंधित तीन विधेयक संसद में लाए गए हैं जो किसान विरोधी हैं। देश भर में किसान इनका विरोध कर रहे हैं। केंद्र सरकार को इन तीनों विधेयकों को वापस लेना चाहिए। आम आदमी पार्टी संसद में इनके विरोध में वोट करेगी।“

कांग्रेस ने सरकार की निंदा की-

मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी इन विधेयकों का विरोध कर रही है। कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि किसानों के लिए नए अध्यादेश का गंभीर विरोध किया जा रहा है, जो कानून बनने की प्रक्रिया में है। हमें लगता है इस पर उचित चर्चा होनी चाहिए। आज जब बिल को पास करने की कोशिश की गई तो लोगों को लगा कि किसानों की आवाज नहीं सुनी जा रही। इसीलिए विरोध किया जा रहा है।

25 सितंबर को किसान संगठनों का अखिल भारतीय बंद-

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने 25 सितंबर को भारत बंद करने की घोषणा की है। समिति ने एक प्रेस रिलीज जारी कर कहा है कि सरकार द्वारा 5 जून को लाए गये खेती के तीन अध्यादेश और इन पर आधारित नए कानून, जिन पर संसद में चर्चा हो रही है, का पुरजोर विरोध किया जाएगा। एआईकेएससीसी इन नए कानूनों के खिलाफ एक व्यापक प्रतिरोध संगठित करेगी और 25 सितम्बर को अखिल भारतीय बंद व किसानों की प्रतिरोध सभाओं का आयोजन करेगी।
 
क्या हैं मोदी सरकार के तीन कृषि संबंधित कानून-


पहला अध्यादेश-

मोदी सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन किया है। इस संशोधन के जरिए खाद्य पदार्थों की जमाखोरी पर प्रतिबंध हटा दिया गया है। इसका मतलब यह है कि व्यापारी अब असीमित मात्रा में अनाज, दालें, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को जमा कर सकता है।

दूसरा अध्यादेश -

मोदी सरकार नें एक नया कानून बनाया है जिसका नाम है कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश 2020। इसका उद्देश्य मंडी समितियों के बाहर भी कृषि उत्पाद खरीदने और बेचने की व्यवस्था तैयार करना है।

तीसरा अध्यादेश -

तीसरे अध्यादेश का नाम है मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश 2020। यह कानून सरकार की कुटिलता और कॉरपोरेट परस्ती का नायाब नमूना है जिसके जरिए सरकार कान्ट्रैक्ट फार्मिंग को कानूनी वैधता प्रदान कर रही है। यह कानून सीधे-सीधे बड़े बिजनेस और कंपनियों के लिए बनाया गया है ताकि वे कान्ट्रैक्ट पर जमीन लेकर खेती कर सकें।

इन तीन कानूनों को बहुत बारीकी से समझने की जरूरत है। कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश 2020 के बारे में सरकार का कहना है कि इसके जरिए वह एक देश एक मार्केट बनाने की योजना पर काम कर रही हैं। इस कानून के जरिए कोई भी व्यक्ति, कम्पनी या संस्था किसी भी किसान का माल कहीं भी खरीद सकती है, बस इसके लिए पैन कार्ड का होना अनिवार्य है। पहले नियम था कि कृषि उत्पादन की बिक्री कृषि उत्पाद बाजार यार्ड में ही होगीं। मोदी सरकार ने यह शर्त हटा ली है। ध्यान देने वाली बात यह है कि कृषि माल की जो खरीद कृषि उत्पाद बाजार के बाहर होगी उसपर कोई टैक्स नही लगेगा। यह सीधी तरह से राज्य के उसके आर्थिक संसाधन जुटाने की क्षमता पर चोट है। सरल शब्दों में समझें कि राज्य को कृषि उत्पादों की बिक्री पर टैक्स लगाने से जो आय मिलती है उससे वंचित किया जा रहा है।

इसका सीधा प्रभाव यह होगा कि कृषि उत्पाद बाजार वाली व्यवस्था तेजी से खत्म हो जाएगी क्योंकि वहां पर टैक्स लगेगा। इस अध्यादेश के अंतर्गत नियम बनाया गया है कि जो भी व्यक्ति, कम्पनी या सुपर मार्केट किसानों का माल खरीदती है उसे तीन दिनों के अंदर किसानों के माल का भुगतान करना होगा।

लेकिन क्या होगा अगर इस भुगतान प्रक्रिया में कोई विवाद खड़ा हो जाए।

इस तरह के किसी भी विवाद की स्थिति में इलाके के एसडीएम (उपखण्ड मजिस्ट्रेट) इसका समाधान करेंगे। एसडीएम इसके लिए एक कमेटी बनाएंगे जिसमें संबंधित किसान और माल खरीदने वाली कम्पनी के अधिकारी शामिल होंगे। इस कमेटी को तीस दिन के अंदर आपसी विवाद सुलझाना होगा। अगर इस समय सीमा के अंदर यह विवाद नही सुलझता तो एसडीएम मामले की सुनवाई करेंगें। अगर किसान एसडीएम के न्याय से सहमत नही होता है तो वह जिलाधिकारी के यहां अपील कर सकता है। जिलाधिकारी और एसडीएम दोनो को विवाद के समाधान के लिए तीस दिनों का समय दिया गया है।
पहली नजर में यह नियम किसानों का हितकारी नजर आता है लेकिन ऐसा नही है। क्या होगा अगर किसान को जिलाधिकारी के यहां से भी न्याय न मिले। मोदी सरकार का यह अध्यादेश ऐसी हालत में किसान को यह इजाजत नही देता कि वह जिलाधिकारी के फैसले के खिलाफ कोर्ट की शरण ले। एक तरह से यह किसानों के मौलिक अधिकार की सरेआम हत्या है।

यह सभी जानते हैं कि शासन-प्रशासन के अधिकारियों से लेकर सरकार तक पूंजीपतियों के साथ ही खड़े होते हैं। यही कम्पनियां और पूंजीपति चुनाव के समय इन राजनीतिक पार्टियों को चन्दे में बेतहाशा रकम देती हैं इसीलिए आज की राजनीति पूंजी की गुलाम है। हालांकि न्यायालयों के साथ ऐसा नही हैं। न्यायालय सरकार के अधीन नही होते हैं। न्याय की आस में कोर्ट की शरण लेना मौलिक अधिकार है। यह अधिकार भारत का संविधान देश के हर नागरिक को देता है। लेकिन केन्द्र सरकार किसानों से यह अधिकार बलात छीन लेना चाहती है। इस अध्यादेश में ऐसा कोई भी लूप होल नही छोड़ा गया है जिसके सहारे किसान बच कर निकल सकें। इसका अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है कि पूंजीपतियों के हाथ में खेल रही मोदी सरकार ने इस अध्यादेश में ऐसा कोई नियम नही बनाया है कि पूंजीपति, कम्पनियां या सुपरमार्केट किसानों से उनकी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदें।