देश की बदहाल अर्थव्यवस्था में समाज का मध्यम वर्ग बर्बादी की कगार पर


कोरोना संकट के साथ साथ इस समय देश बड़े आर्थिक संकट से जूझ रहा है और इससे उबरने की उम्मीद भी आने वाले महीनों में दिखाई नहीं दे रही। बल्कि सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लौटने में अभी एक वर्ष से अधिक का समय लगेगा। केयर रेटिंग्स की एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लेबर को डिमांड को कम करने के लिए लेबर को बदलने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बढ़ेगा। FY21 के लिए रोजगार वृद्धि संख्या कई उद्योगों के लिए अनुबंध करने की संभावना है।
 
CMIE के मुताबिक, भारत में मई से अगस्त महीने के बीच में 66 लाख लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। ये आंकड़ा पेशेवर यानी कि प्रोफेशनल नौकरियों का है जिनमें इंजीनियर, चिकित्सक और शिक्षक जैसे सैलरीड रोजगार आते हैं।
 
CMIE रिपोर्ट का कहना है कि पिछले 4 साल सालों में रोजगार को लेकर जो थोड़ा बहुत फायदा भी हुआ था, वो सब लॉकडाउन के चलते खराब हो गया।इन आंकड़ों से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि देश में रोज़गार का क्या हाल है। डूबती अर्थव्यवस्था की मार केवल गरीब मज़दूर तक सीमित नहीं है। इसकी चपेट में सैलरी पाने वाला सरकारी कर्मचारी भी हैं।
 
इन सभी प्रोफेशनल सैलरीड कर्मचारी के अलावा औद्योगिक श्रमिक भी बेरोज़गारी की मार झेल रहे हैं। एक साल में 26% इंडस्ट्री वर्कर्स की नौकरियों में कटौती हुई है, 50 लाख लोगों की नौकरियां गई हैं।ये सभी आंकड़ें देश में बेरोज़गारी का हाल बताने के लिए काफ़ी हैं।
बता दें कि CMIE ने डाटा जारी कर बताया है कि पिछले साल के मई-अगस्त महीने में 188 लाख लोग वाइट कालर प्रोफेशनल नौकरियां कर रहे थे। इस साल केवल 122 लाख लोग कर ही ये नौकरियां कर रहे हैं।इसका मतलब 66 लाख लोगों की नौकरियां चली गयी हैं। ये लोग सरकारी और निजी, दोनों क्षेत्र में काम करते हैं। लेकिन इसमें सेल्फ-एम्प्लॉयड व्यवसायी शामिल नहीं है।