कोरोन काल में सरकारी बैंको से 20,000 करोड़ की धोखाधड़ी के 2,867 मामले सामने आए

[अमितेश अग्निहोत्री ]
 
 
 
कोरोना काल में भी बैंकों को लूटने का सिलसिला जारी रहा। एक आरटीआई के जवाब में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक इस वित्त वर्ष में अप्रैल-जून की तिमाही के बीच सरकारी बैंको में धोखाधड़ी के 2,867 मामले सामने आए हैं। इनमें से सबसे ज्यादा मामले सार्वजनिक क्षेत्र के 12 बैंकों में से सबसे बड़े बैंक एसबीआई से हैं जबकि सबसे ज्यादा राशि की धोखाधड़ी की बात करें तो बैंका ऑफ इंडिया सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। 
अप्रैल से जून तक की तिमाही ही वह दौर है जब भारत में कोरोना महामारी के दौरान दुनिया का सबसे बड़ा लॉकडाउन लगाया गया और 1 अरब 30 करोड़ की आबादी एकदम से घरों में कैद होने को विवश हो गई। हालांकि इससे सरकारी बैंकों को चूना लगाने वालों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। 
आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल-जून की तिमाही में धोखाधड़ी के 2050 मामले एसबीआई में सामने आए। इन मामलों में 2,325.88 करोड़ रूपयों की हेराफेरी हुई। वहीं बैंक ऑफ इंडिया में धोखाधड़ी के केवल 47 मामलों में 5,124.87 रूपयों का गबन कर लिया गया। इसके अलावा सरकारी क्षेत्र के अन्य बैंकों की स्थिति कुछ इस तरह से रही-

कैनरा बैंक - 3,885.26 करोड़ की धोखाधड़ी के 33 मामले।
बैंक ऑफ बड़ौदा - 2,842.94 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के 60 मामले।
इंडियन बैंक - 1,469.79 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के 45 मामले। 
इंडियन ओवरसीज बैंक - 1,207.65 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के 37 मामले। 
बैंक ऑफ महाराष्ट्र - 1,140.37 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के 9 मामले। 

देश के दूसरे सबसे बड़े सरकारी बैंक पंजाब नेशनल बैंक में अप्रैल-जून की तिमाही में धोखाधड़ी के 240 मामले सामने आए जिसमें 270.65 करोड़ की रकम हजम कर ली गई। 
इसके अलावा यूको बैंक में 831.35 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के 130 मामले, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में 655.84 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के 149 मामले, पंजाब एंड सिंध बैंक में 163.3 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के 18 मामले और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में 46.52 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के 49 मामले सामने आए हैं। 
आरबीआई ने यह जानकारी चंद्रशेखर गौड़ द्वारा दायर की गई आरटीआई के जवाब में दी है। हालांकि आरबीआई का यह भी कहना है कि अप्रैल-जून की तिमाही में धोखाधड़ी के ये आंकड़े अभी शुरूआती हैैं। यह जानकारी सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों द्वारा रिजर्व बैंक को दी गई सूचना पर आधारित है। मामलों की संख्या और गबन की गई राशि में कुछ बदलाव हो सकता है।