25 सितंबर को किसानों के भारत बंद को माले और वाम दलों का समर्थन, 250 किसान संगठन सड़कों पर उतरने को तैयार

मोदी सरकार के कृषि बिलों के खिलाफ देश भर के के किसान अभूतपूर्व संघर्ष का आगाज करने जा रहे हैं। 25 सितंबर को अखिल भारतीय किसान महासभा के नेतृत्व में मोदी सरकार द्वारा संसद में पास करवाए गए बिलों के खिलाफ देश भर के किसान संगठन सड़कों पर उतरने के लिए कमर कस चुके हैं। 25 सितंबर को देश भर के किसान भारत बंद, चक्का जाम और प्रतिरोध मार्च करेंगे। 
 
अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव पुरुषोत्तम शर्मा ने कहा कि 250 किसान संगठनों के मंच एआइकेएससीसी के अलावा भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) जैसे बड़े किसान संगठन ने भी 25 को बंद व चक्का जाम का एलान किया है। पंजाब में सभी 31 किसान संगठन (जत्थेबंदियों) इस लड़ाई में अब एक साथ आ गए हैं। हरियाणा, उत्तर प्रदेश में किसान यूनियनों के अन्य संगठन भी 25 तारीख के बन्द व चक्का जाम में शिरकत करेंगे। ऐसे में पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में इस बन्द व चक्का जाम का जबरदस्त असर देखने को मिलेगा।

किसानों के साथ उतरेंगे वाम दल-
 
अपनी खेती किसानी को कारपोरेट से बचाने के किसानों कें संघर्ष को वाम दलों ने पूरा समर्थन दिया है। भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (माले) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्या ने देश की जनता से अपील की है कि वह किसानों के आंदोलन के साथ खड़ी हो। माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने भी किसानों के बंद को समर्थन दिया है। 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने भी 25 सितम्बर को किसानों के राष्ट्रव्यापी आंदोलन को अपना समर्थन दिया है। छात्र संगठन आइसा, एसएफआई, युवा संगठन आरवाईए ने भी किसान आंदोलन को सक्रिय समर्थन देने और किसानों के साथ सड़कों पर उतरने की घोषणा की है।

भारतीय किसान यूनियन भी किसानों के संघर्ष में शामिल-
 
25 सितंबर को होने वाले देश व्यापी बंद को भारतीय किसान यूनियन का समर्थन भी हासिल है। भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ. राकेश टिकैत ने मोदी सरकार को बहुमत के नशे में चूर बताते हुए कहा है कि । देश की संसद के इतिहास में ये पहली दुर्भाग्यपूर्ण घटना है कि अन्नदाता से जुड़े तीन कृषि विधेयकों को पारित करते समय न तो कोई चर्चा की गई और न ही इस पर किसी सांसद को सवाल करने का का अधिकार दिया गया।
टिकैत ने कहा कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को समाप्त करना चाहती है और मंडियों की व्यवस्था समाप्त कर सरकार फसल खरीद की व्यवस्था से भी हाथ खींचना चाहती है। मोदी सरकार ने किसानों को बाजार के हवाले कर दिया है।