भले ही बदलें विचार,लेकिन न भूलें शिष्टाचार...

अगर आप लाइफ में कुछ करना चाहते हैं तो आपको अपडेट रहना ही होगा। आधुनिक समय में आए दिन हो रहे नए नए आविष्कारों के साथ ही साथ आपका अपडेट रहना भी उतना ही जरूरी हो गया,जितना कि आपके लिए अपनी लाइफ के अन्य दैनिक कार्य हैं। कहते हैं अगर आपको आंधियों से लड़ने का शौक है तो भलाई इसी में है कि हवा के रुख को भांप कर अपने आप को बदल लें। लेकिन,इन सबके बीच कहीं न कहीं हम अपनों के सम्मान को खो रहे हैं, जो हमारी संस्कृति पर दुष्प्रभाव डाल रहा है। "जनमानस भड़ास" यह कतई नहीं चाहता है कि हम समय की चाल से पीछे चलें, लेकिन यह अपील ज़रूर करता है कि हम अपनी संस्कृति और सभ्यता को मिटाए बिना ही अगर आगे बढ़ेंगे तो भीड़ से हट कर "ध्रुव तारे" की तरह चमकने से हमें कोई नहीं रोक सकेगा|

शिष्टाचार ही हमारी संस्कृति:

हम उस भारत देश से ताल्लुक रखते हैं,जहां एक बेटे ने अपनी सौतेली मां की इच्छापूर्ति के लिए 14 साल वन में बिता दिए|हम उस धरती पर रहते हैं,जहां एक भाई ने अपने भाई को भगवान की तरह पूजा और उनका साथ निभाने के लिए महल का आराम छोड़ कर जंगलों में ठोकरें खाई। हम ऐसी संस्कृति से ताल्लुक रखते हैं| ऐसे देश में अब आने वाली पीढ़ी "Hey Dude" पर अटकने लगी है,जो कहीं न कहीं हमारी संस्कृति पर भारी पड़ती दिख रही है। आज जब बच्चे अपने घरों से बाहर निकलते हैं तो वो माता-पिता से बाय-बाय करते हैं। वहीं,कुछ साल पहले यदि हम अतीत में जाकर देखें तो देखेंगे कि बच्चे घर से निकलने से पहले अपने बड़ों का आशीर्वाद लेते थे। इस परिवर्तन के पीछे का जिम्मेदार आखिर कौन है??




बदलनी होगी सोच, देने होंगे संस्कार

इतिहास गवाह है कि जब किसी ने अपनी संस्कृति को छोड़ कर दिखावे की दुनिया में कदम रखा, वो ज्यादा दिन नहीं चल सका। लंबी रेस का घोड़ा बनने के लिए जरूरी है कि हम अपनी संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों को संजो कर आधुनिकता की रफ्तार पकड़ें। नाम और दाम कमाने के लिए जरूरी नहीं कि हम अपने संस्कारों की बलि दें और जैसा पाश्चात्य सभ्यता में होता है,उसे अपने जीवन में उतारें। उसके लिए जरूरी है लगन और इच्छाशक्ति, जो बड़ों के आशीर्वाद से प्राप्त होता है। इस सोच को बदलने का समय आ गया है और जरूरी है कि बच्चों को पढ़ाई लिखाई के लिए भले ही विदेश भेजें, लेकिन हम उन्हें कभी भी अपने भारतीय संस्कार और सस्कृति से अलग न होने दें।




हम संस्कृति और सभ्यता खोयें बिना भी बन सकते हैं आधुनिक|

आज "जनमानस भड़ास" अपने व्यूवर्स से अपील करता है कि हमारी पहचान-हमारी संस्कृति और सभ्यता से ही है,उसे खत्म न होने दें। आधुनिकता की दौड़ में सबसे आगे रहते हुए भी हम इन्हें प्राथमिकता दे सकते हैं। लाइफ में आगे बढऩे के लिए हमें ईश्वर की अनुकम्पा और बड़े-बुजुर्गो के आशीर्वाद की जरूरत होती है, जिसे हमेशा याद रखें|




"स्वामी विवेकानंद कॉलेज ऑफ़ हायर एजुकेशन" इसका एक विशेष उदाहरण हैं जहाँ स्टूडेंट्स को उनके कोर्स के साथ-साथ शिष्टाचार का पाठ भी पढ़ाया जाता है।

भड़ास अभी बाकी है.....