नोबेल पुरस्कार 2020 की हुई घोषणा, हेपेटाइटिस C की खोज करने वाले वैज्ञानिकों को मिला मेडिसिन पुरस्कार


ब्रिटिश वैज्ञानिक माइकल हाउटन और अमेरिकी वैज्ञानिक हार्वे अल्टर एवं चार्ल्स राइटस को हेपेटाइटिस C की खोज करने के लिए साल 2020 का मेडिसिन नोबेल पुरस्कार दिया गया है। नोबेल पुरस्कार के लिए लोगों को चयनित करने वाली कमेटी का कहना है कि इन वैज्ञानिकों हेपेटाइटिस सी की खोज कर लाखों लोगों की जान बचाई है इसलिए इस क्षेत्र में मिलने वाले पुरस्कार के असल हकदार यह तीनों वैज्ञानिक हैं। नोबेल कमेटी ने कहा, "इतिहास में पहली बार अब इस बीमारी का इलाज किया जा सकता है, जिससे दुनिया से हेपेटाइटिस सी वायरस ख़त्म करने की उम्मीद बढ़ गई है।"

लेकिन अभी भी इस वायरस के सात करोड़ मरीज़ हैं और इस वायरस से दुनिया भर में हर साल क़रीब चार लाख लोग मारे जाते हैं। हेपेटाइटिस C वायरस से लीवर कैंसर होता है और यह एक बहुत बड़ा कारण है कि लोगों को लीवर ट्रांसप्लांट करवाना पड़ता है। 1960 के दशक में हेपेटाइटिस A और हेपेटाइटिस B को खोजा गया था। लेकिन प्रोफ़ेसर हार्वे ने साल 1972 में यूएस नेशनल इंस्टीच्यूट्स ऑफ़ हेल्थ में ब्लड ट्रांसफ़्यूजन के मरीज़ों पर शोध करते हुए पाया था कि एक दूसरा रहस्यमीय वायरस भी मौजूद है जो अपना काम कर रहा है। ब्लड डोनेशन लेने वाले मरीज़ बीमार पड़ रहे थे।

उन्होंने अपनी शोध में पाया कि संक्रमित लोग अगर वनमानुष को अपना ख़ून दे रहे थो तो उससे वनमानुष बीमार पड़ रहे थे। इस रहस्यमयी बीमारी को नॉन A नॉन B हेपेटाइटिस कहा जाने लगा और इसकी खोज शुरू हो गई। प्रोफ़ेसर माइकल हाउटन ने दवा की कंपनी शिरोन में काम करते हुए साल 1989 में इस वायरस के जेनेटिक श्रंखला की पहचान करने में सफलता पाई थी। इससे पता चला कि यह एक तरह का फ़्लैवीवायरस है और इसका नाम हेपेटाइटिस C रख दिया गया।

बता दें कि अल्फ्रेज नोबेल ने डायनामाइट के अविष्कार सहित कुल 355 अविष्कार किए थे। अपनी मृत्यु के समय उन्होंने अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा एक ट्रस्ट के लिए सुरक्षित रख दिया। उनकी ख्वाहिश थी कि इस पैसे के ब्याज से हर साल उन लोगों को सम्मानित किया जाए जो मानव समाज के लिए कुछ अच्छा कर रहे हों। जिसके नोबेल पुरस्कार की शुरुआत हुई। यह शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान एवं अर्थशास्त्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रहे लोगों को दिया जाता है।