बिहार विधानसभा चुनावः डिजिटली युद्ध में कितनी मात दे सकता है विपक्ष?


बुधवार को सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरस हुआ। जो कि दक्षिण दिल्ली के मालवीय नगर इलाके में ढाबा चलाने वाले एक बुज़ुर्ग दंपत्ति का था। इस वीडियो में यह बताया गया कि यह दंपत्ति दिन भर मेहनत करने के बावजूद अपनी ज़रुरतों को पूरा करने भर की भी आमदनी नहीं कर पाते। लज़ीज़ खाना बनाने के बावजूद उनका खाना बिक नहीं पाता। देखते ही देखते यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा और 24 घंटे के भीतर मालवीय नगर के इस बाबा का ढाबा में सैकड़ों लोगों की भीड़ लग गई। जितनी कमाई उन्होंने बीते कई वर्षों की मेहनत से नहीं करी थी उतनी कमाई उनकी इस 24 घंटे के भीतर हो गई। यह कमाल है सोशल मीडिया का।

सोशल मीडिया है ही इतनी कमाल की चीज़ कि चाहे किसी को साबुन बेचना हो, या अपने आइडियाज़ या फिर अपने विचार या फिर प्रोपेगेण्डा। हर किसी की मुराद इस सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर आकर पूरी हो जाती है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद राजनीतिक दांव पेंच में सोशल मीडिया का ज़बरदस्त इस्तेमाल होने लगा है। कोरोना काल के बाद से यह प्लेटफॉर्म और मज़ीद फल फूल रहा है। इसकी ताज़ा मिसाल है बिहार विधानसभा चुनाव। 

25 सितंबर को चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा की और यह बताया कि बिहार चुनाव तीन चरणों में होंगो। इससे पहले आयोग ने कोविड 19 महामारी में चुनाव करवाने के लिए व्यापक दिशा निर्देश दिए थे और बिहार के लिए कुछ खास सिफारिशें भी की थीं। यह सिफारिशें फिजिकल प्रचार अभियान को बहुत हद तक प्रतिबंधित करती हैं। इन नियमों के बाद बिहार में राजनीतिक दल प्रचार के लिए डिजिटल चुनाव प्रचार और सोशल मीडिया पर डिपेंट हो गए।

चुनाव की घोषणा के पांच दिन पहले इंडिया टुडे समूह के एक हिंदी ऑनलाइन समाचार पोर्टल ने बिहार के उपमुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ सदस्य सुशील मोदी का साक्षात्कार किया था। दो घंटे से अधिक समय तक चली उस बातचीत में मोदी ने कोविड-19 में माल और सेवा कर और विकास के संबंध में अपनी सरकार के काम के बारे में बताया। मोदी ने बिहार के सबसे बड़े विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव के बारे में भी बात की। उसी दिन मोदी ने अपने ट्विटर अकाउंट से इस इंटरव्यू की एक क्लिप ट्वीट की। उस दिन उन्होंने दो प्रेस नोट भी ट्वीट किए। दोनों को ही दैनिक समाचार पत्रों ने कवर किया। इन्हें मोदी ने प्रेस पिकअप के रूप में रिट्वीट किया।

मोदी के सोशल मीडिया के उपयोग और मुख्यधारा के मीडिया में इसकी फीडिंग बिहार में एक खास पैटर्न की तरफ इशारा करता है जो बीजेपी को चुनाव के मीडिया नैरेटिव को तैयार करने में दूसरों से आगे कर देता है। पिछले पांच सालों में बीजेपी ने अपना सोशल मीडिया ढांचा तैयार किया है जो मान्यता, पहुंच और प्रभाव के मामले में सबसे बड़ा है। इसमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बड़ी संख्या में ब्लू टिक वाले या सत्यापित नेता और व्हाट्सएप का बड़ा नेटवर्क शामिल है। बीजेपी और उसकी सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) भी सरकारी विज्ञापनों के वित्तीय प्रोत्साहन का उपयोग कर यह सुनिश्चित कर पाए हैं कि मुख्यधारा की मीडिया उनके बारे में सकारात्मक रिपोर्ट दे। बीजेपी सोशल मीडिया विज्ञापनों पर अन्य राजनीतिक दलों से ज्यादा खर्च नहीं करती है लेकिन वह तीसरी पार्टी द्वारा तैयार कंटेंट का भी लाभ उठाती है जो पार्टी के अनुरूप नैरेटिव बनाते हैं। डिजिटल अभियान भारत के अभियान वित्त कानूनों में कई प्रमुख बदलावों पर प्रकाश डालता है।

सोशल मीडिया पर बीजेपी के प्रभुत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य के कम से कम 23 बीजेपी नेताओं ने ट्विटर और फेसबुक अकाउंट ब्लू टिक वाले हैं। इसमें सुशील मोदी, संजय जायसवाल, केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और सांसद गिरिराज सिंह एवं राज्य मंत्रिमंडल के कई सदस्य शामिल हैं। अपनी प्रामाणिकता के चलते एक सत्यापित अकांउट के सोशल मीडिया में भारी संख्या में फॉलोवर होते हैं। यह राजनीतिक नैरेटिव को आकार देने में अधिक प्रभावी है। इन 23 बीजेपी नेताओं की फेसबुक और ट्विटर पर फॉलोइंग करोड़ों में है।
सोशल और मुख्यधारा की मीडिया के बीच फीडबैक लूप यह सुनिश्चित करता है कि बीजेपी नेताओं के सत्यापित अकाउंटों से हुई पोस्ट मुख्यधारा की मीडिया द्वारा उठाई गई हैं जिन्हें बदले में इन अकाउंटों से प्रेस पिकअप के रूप में फिर से पोस्ट किया जाता है। यह एक ऐसी स्थिति की ओर ले जाता है जहां बीजेपी अपने चुनावी कवरेज में मुख्यधारा के मीडिया द्वारा चर्चा किए जाने वाले एजेंडे को निर्धारित करने में काफी प्रभाव डालती है।

इसके विपरीत बिहार की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी आरजेडी के केवल पांच वरिष्ठ नेताओं के ट्विटर और फेसबुक अकाउंट ही सत्यापित हैं। ये पांचों लालू प्रसाद यादव के परिवार के सदस्य हैं। संजय यादव, तनवीर हसन, शैलेश कुमार और नवल किशोर जैसे अन्य राजद नेताओं में से कुछ के ट्विटर तो नहीं लेकिन फेसबुक अकाउंट सत्यापित हैं। इसी तरह बिहार के मुख्यमंत्री, नीतीश कुमार, एकमात्र जेडी (यू) नेता हैं जिनके दोनों अकाउंट सत्यापित हैं। यहां तक कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं जैसे पार्टी अध्यक्ष बशिष्ठ नारायण सिंह के पास सत्यापित अकाउंट नहीं हैं। विपक्षी दलों के महागठबंधन की सदस्य पार्टी कांग्रेस की हालत भी ऐसी ही है। बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष मदन मोहन झा, अभियान समिति के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह और कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया पैनलिस्ट चंदन यादव ही उन वरिष्ठ नेताओं में हैं जिनके फेसबुक और ट्विटर दोनों पर सत्यापित अकाउंट हैं।

यह स्पष्ट नहीं है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की तरफ से बिहार के राजनीतिक परिदृष्य में सत्यापित अकाउंटों का असमान वितरण जानबूझकर किया गया है या राजनीतिक संदेश के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करने में बीजेपी की शुरूआती बढ़त और अनुकूल स्थिति का परिणाम है। ट्विटर का अकाउंट सत्यापित करने का कार्यक्रम फिलहाल रुका हुआ है। जब ट्विटर पर अकाउंट सत्यापित हो जाते हैं तो फिर उसकी पहुंच भी बढ़ जाती हैं और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में किसी भी प्रोपेगेण्डा को फैलाने या अपने विचार का प्रचार करने का सबसे प्रभावी प्लेटफॉर्म है। इसीलिए कोई भी विरोध या सपोर्ट में जब कोई कैंपेन चलती है तो वह सबसे पहले ट्विटर पर चलाई जाती है और वहां से धीरे धीरे स्पीड पकड़ती है। चाहे फिर अमेरिका की ब्लैक लाइव्स मैटर कैंपैन हो या फिर वर्ल्ड वाइड चलने वाली मीटू कैंपेन। सबकी शुरुआत सबसे पहले ट्विटर से ही हुई। ऐसे में जब बिहार विधानसभा चुनाव लगभग पूरी तरह डिजिटली लड़ा जा रहा हो तो उसमें विपक्षी दलों का ट्विटर अकाउंट सत्यापित ना होना एक बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है। क्योंकि आजकल ट्विटर ट्रेंडिग ही यह तय करती है कि किस मुद्दे को कितनी कवरेज मिलनी है।