सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाती रही यूपी पुलिस, अब कोर्ट ने दी जेल भेजने की धमकी

यूपी पुलिस किस कदर बेलगाम हो चुकी है इसका अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी कानून की जिस धारा को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था उसी धारा के अंतर्गत यूपी में लोगों पर मुकदमें लिखे गए। इस बात की शिकायत जब सुप्रीम कोर्ट पहुंची तो शीर्ष अदालत ने कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा है कि उसके आदेश का उल्लंघन कर इस धारा के अंतर्गत मामले दर्ज करने वाले अधिकारियों को जेल भेजा जाएगा। 
क्या है मामला-
मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर शीर्ष अदालत को अवगत कराया है कि शीर्ष अदालत द्वारा आईटी कानून की धारा 66ए को 2015 में निरस्त किए गए जाने के बावजूद इसके तहत 22 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है। 
जस्टिस आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ मामले की सुनवाई कर रही है। पीठ ने इस मामले में काफी सख्त रूख दिखाते हुए कहा है कि आईटी कानून की धारा 66ए को समाप्त करने के उसके आदेश का उल्लंघन किया गया है तो यह काफी गंभीर मामला है और इससे संबंधित अधिकारियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जाएगा। 
जस्टिस नरीमन ने कहा, ‘‘अगर इन्होंने (याचिकाकर्ता) जो आरोप लगाए हैं वह सही हैं तो आप लोगों को कड़ी से कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने उन लोगों की सूची दी है जिन पर मुकदमा चलाया गया है। हम उन सभी लोगों को जेल में भेज देंगे जिन्होंने गिरफ्तारी का आदेश दिया था। हम सख्त कदम उठाने वाले हैं।‘’
अदालत ने इस मामले में केंद्र सरकार से 4 सप्ताह के अंदर जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। 
गौरतलब है कि श्रेया सिंघल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 66ए को असंवैधानिक करार देते हुए इसे संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया था। 

क्या था श्रेया सिंघल का मामला-
सुप्रीम कोर्ट का 24 मार्च 2015 को श्रेया सिंघल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में दिया गया फैसला भारत में अभिव्यक्ति की आजादी के क्षेत्र में दिया गया महत्वपूर्ण फैसला है। धारा 66ए का प्रावधान ऐसा उत्तर संवैधानिक कानून था, जिसे पुलिस नियमित रूप से इस्तेमाल करती थी।

सुप्रीम कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इसे अंसवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया था।  न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि आईटी एक्ट की यह धारा संविधान के अनुच्छेद 19(1) । का उल्लंघन है, जोकि भारत के हर नागरिक को “भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार“ देता है. 24 वर्षीय कानून की छात्रा श्रेया सिंघल ने फेसबुक एवं अन्य सोशल साइट्स पर कमेंट किये जाने पर जेल में डाल दिये जाने की घटना से आहत होकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी जिस पर सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला आया।