मोदी सरकार बीटी बैंगन पर दोहरा रवैया क्यों अपना रही है

[अमितेश अग्निहोत्री]
 
बिहार के चुनावी मौसम में बीटी बैंगन पर नया बवाल शुरू हो गया है। केंद्र सरकार राज्य में बीटी बैंगन की फसलों को जांच के बाद नष्ट करने के लिए एक टीम भेजने जा रही है। पहले खबरें मिली थीं कि आठ राज्यों में प्रतिबंधित बैंगन की इस जहरीली किस्म की खेती बिहार में चोरी छुपे की जा रही हैं। इसके बाद केंद्र सरकार ने फील्ड निरीक्षण व वैज्ञानिक मूल्यांकन समिति को मामले की जांच कर इस तरह की फसलों को नष्ट करने के लिए भेजा है। गौरतलब है कि इससे पहले तमाम विरोधों के बावजूद मोदी सरकार देश में बीटी बैंगन की खेती करने लिए किए जा रहे परीक्षणों को मंजूरी दे चुकी है। इस फैसले पर काफी विवाद भी हो रहा है। 

क्या है बीटी बैंगन-
बीटी बैंगन साधारण बैंगन जैसा ही दिखता है। फर्क इसकी बुनियादी बनावट में है। इस बैंगन की, उसके पौधे की, हर कोशिका में एक खास तरह का जहर पैदा करने वाला जीन होगा, जिसे बीटी यानी बेसिलस थिरूंजेनेसिस नामक एक बैक्टेरिया से निकालकर बैंगन की कोशिका में प्रवेश करा दिया गया है। इस जीन को पूरे पौधे में प्रवेश करा देने की सारी प्रक्रिया बहुत ही पेचीदी और बेहद महंगी है। इसी प्रौद्योगिकी को जेनेटिक इंजीनियरिंग का नाम दिया गया है।
यदि जीएम तकनीकी सब्जियों और अन्य कृषि उत्पादों की बेहतरी के लिए इस्तेमाल में लाई जाती है तो सवाल उठता है कि इन फसलों का विरोध क्यों हो रहा है? दरअसल शुरू से सभी जीएम फसलों का विरोध होता आया है। जीएम फसलों के पक्ष और विपक्ष में कई तर्क दिए गए हैं। कई शोध कहते हैं कि फसलों में आ पहुंचने वाला बॉलवर्म जीवाणु रक्षा के लिए छोड़े गए जीन का तोड़ हासिल कर रहा है। अन्य शोधों में पता चला है कि पौधों पर कई और जीवाणु भी हमला करते हैं। कई लोगों का कहना है कि जीएम फसलों की पैदावार आम फसलों से अधिक है, तो कई अन्य इसके विपरीत आंकड़े पेश करते हैं।
भारत में इससे पूर्व जीएम राइस जैसी फसलों पर प्रयोग हो चुके हैं जिसमें प्रोटीन की अधिक मात्र मौजूद रहती है। इससे पूर्व देश में फसलों के हाइब्रिडाइजेशन भारतीय परिवेश के लिहाज से सही साबित नहीं हुए थे। जिस कारण महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और कई अन्य हिस्सों में फसलों को नुकसान पहुंचा था और किसानों
अमेरिकन एकेडमी ऑफ एनवायर्नमेंट मेडिसिन (एएइएस) का कहना है कि जीएम खाद्य स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है। विषाक्तता, एलर्जी और प्रतिरक्षण, प्रजनन, स्वास्थ्य, चय-अपचय, पचाने की क्रियाओं पर तथा शरीर और अनुवांशिक मामलों में इन बीजों से उगी फसलें, उनसे बनी खाने-पीने की चीजें भयानक ही होंगी। बीटी बैंगन के सेवन से कैंसर होने का खतरा भी बढ़ जाता है। 
मोदी सरकार ने बीटी बैंगन के परीक्षण को दी है मंजूरी-
इस साल सितंबर की शुरूआत में ही मोदी सरकार ने बीटी बैंगन की खेती के परीक्षण को अनुमति दे दी है। यह अनुमति बैंगन की दो पहली ट्रांसजेनिक किस्मों के लिए दी गई है। इनमें से पहली किस्म को सरकारी अनुसंधान संस्थान ने विकसित किया है जबकि दूसरी किस्म को विकसित करने वाली कंपनी महाराष्ट्र की है जिसका नाम माहिको है। 

किसान संगठन कर रहे हैं विरोध-
बीटी बैंगन की खेती पर परीक्षण देने की अनुमति देने का विरोध भी शुरू हो गया। जुलाई में ही भारतीय किसान संघ ने प्रधानमंत्री मोदी को संबोधित ज्ञापन में इस फसल से पैदा होने वाले खतरे और जीएम फसलों से स्वास्थ्य को होने वाले खतरों से आगाह किया था। गौरतलब है कि देश के कई राज्यों ने पहले ही जीएम खाद्य फसलों परीक्षणों पर प्रतिबंध लगा दिया है। 25 अगस्त 2020 को भारतीय किसान संघ के एक प्रतिनिधि मंडल ने केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्री प्रकाश जावेड़कर से मुलाकात कर अपनी बात रखी जिस पर जावेड़कर ने उन्हे आश्वासन दिया था कि बीटी बैंगन और जेनेटिक मॉडिफाइड फसलों के परीक्षण की अनुमति नही दी जाएगी। 

यूपीए सरकार के समय भी हुआ था विरोध-
गौरतलब है कि यूपीए की सरकार के समय भी बीटी बैंगन की खेती को अमल में लाने की योजना बनाई गई थी जिसका काफी विरोध हुआ था और सरकार को अपने कदम वापस खींचने पड़े थे। इस फैसले का विरोध करने वालों में योग गुरू बाबा रामदेव भी थे। 8 फरवरी 2010 को अपने एक बयान में बीटी बैंगन के व्यावसायीकरण का विरोध करते हुए बाबा ने कहा था कि जीएम फसलों से पैदा अनाज को खाने से लीवर और गुर्दे को नुकसान पहुंचता है। 

तो अब बिहार में बीटी बैंगन के खिलाफ क्यों है भाजपा सरकार-
बिहार विधानसभा चुनाव में मतदान के लिए बस कुछ ही दिन शेष बचे हुए हैं। इसलिए भाजपा नही चाहती कि बीटी बैंगन का मामला चुनावी मुद्दा बने। इसलिए बिहार में बीटी बैंगन की अवैध तरीके से हो रही खेती के प्रति सख्त रूख अपनाते हुए केंद्र सरकार ने वहां अपनी जांच टीम भेजी है। सरकार की तरफ से कहा जा रहा है कि इस फसल की खेती करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाएगी। हालांकि सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर बीटी बैंगन की खेती इतनी नुकसानदायक है तो इसकी खेती करने वालों को बोने के लिए जेनेरिक मॉडिफाइड बीज कहां से मिले। इसके अलावा सरकार ने बीटी बैंगन की खेती के परीक्षण की अनुमति क्यों दी जबकि संघ का अपना किसान संगठन ही इसके विरोध में उतर आया है। ऐसा तब है जब दुनिया के तमाम देशों ने जीएम फसलों पर रोक लगाई हुई है।