राहुल गांधी का जमात-ए-इस्लामी से क्या नाता है

कांग्रेस ने केरल में कट्टरपंथी वहाबी इस्लामी संगठन जमात-ए-इस्लामी से निकाय चुनावों के लिए गठबंधन किया है। इसके बाद भाजपा ने राहुल गांधी पर निशाना साधा है। भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने राहुल गांधी से पूछा है कि ऐसी क्या मजबूरी है जो उन्हे जमात और पीएफआई से समझौते करने पड़ रहे हैं। 

मुख्तार अब्बास नकवी ने आरोप लगाया है कि जब राहुल गांधी वायनाड से चुनाव लड़ रहे थे तो उनकी सभा में कांग्रेस से ज्यादा जमात-ए-इस्लामी के झंडे लहराए जा रहे थे। नकवी ने कहा, ’‘आपको याद होगा जब कांग्रेस के नेता राहुल गांधी वायनाड से चुनाव लड़ रहे थे तो देश बहुत आश्चर्यचकित था कि कांग्रेस से ज्यादा जमात-ए-इस्लामी के झंडे क्यों दिखाई दे रहे हैं।’‘ उन्होंने आरोप लगाया कि जमात-ए-इस्लामी और पीएफआई जैसे संगठनों के जरिए कांग्रेस रेडिकलिज्म को बढ़ावा दे रही है।
उन्होंने बिहार में कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन पर भी हमला करते हुए कहा, ’‘मैं तेजस्वी यादव से पूछना चाहता हूं कि क्या कांग्रेस की तरह आरजेडी का भी जमात-ए-इस्लामी और पीएफआई से समझौता हो गया है।‘‘

क्या है जमात-ए-इस्लामी-
जमात-ए-इस्लामी की स्थापना एक इस्लामिक-राजनीतिक संगठन और सामाजिक रूढिवादी आंदोलन के तौर पर ब्रिटिश भारत में 1941 में की गई थी। इसकी स्थापना अबुल अला मौदूदी ने की थी जो कि एक इस्लामिक धर्मशात्री और सामाजिक-राजनीतिक दार्शनिक था। मुस्लिम ब्रदरहुड (इख्वान-अल-मुसलमीन, जिसकी स्थापना 1928 में मिस्त्र में हुई थी) के साथ जमात-ए-इस्लामी अपनी तरह का पहला संगठन था जिसने इस्लाम की आधुनिक संकल्पना के आधार पर एक विचारधारा को तैयार किया। मौदूदी इस बात का समर्थक था कि इस्लाम राजनीति के लिए अनिवार्य है। उनकी समझ में धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रवाद और समाजवाद पश्चिमी साम्राज्यवाद का प्रभाव थे। वे शरिया (इस्लामिक कानून) और इस्लामिक संस्कृति की रक्षा जरूरी है। 1947 में हुए भारत के विभाजन के बाद जमात भारत और पाकिस्तान में दो अलग और स्वतंत्र संगठनों में बंट गया। इनके नाम क्रमशः जमात-ए-इस्लामी हिंद और जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान रखे गए। 1947 के बाद के सालों में जमा-ए-इस्लामी की कश्मीरी शाखा की तरफ कश्मीरी नौजवानों का झुकाव होने लगा। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि जमात-ए-इस्लामी कश्मीर ने घाटी में आतंकी तैयार करने में पाकिस्तान की मदद की। कई पुलिस अधिकारी भी मानते हैं कि जमात के अंदर राष्ट्र विरोधी भावनाएं हैं जिसने कश्मीर में आतंक की फसल तैयार करने में काफी मदद की। 1952 में कश्मीर विवाद के चलते जमात-ए-इस्लामी हिंद का एक धड़ा उससे अलग हो गया। मौलाना अहरार और गुलाम रसूल अब्दुल्लाह, कश्मीर में जमात के दो बड़े नेता थे, जिन्होंने इसके संविधान का मसौदा तैयार किया। फिलहाल मोदी सरकार ने जमात-ए-इस्लामी की कश्मीरी शाखा पर प्रतिबंध लगा दिया है। लेकिन कांग्रेस की अगुवाई वाली यूडीएफ ने केरल में आगामी निकाय चुनावों के लिए जमात-ए-इस्लामी के राजनीतिक धड़े वेल्फेयर पार्टी ऑफ इंडिया के साथ गठबंधन किया है। 

क्या है पीएफआई-
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया या पीएफआई एक इस्लामिक संगठन है जो खुद को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक में आवाज उठाने वाला बताता है। संगठन की स्थापना 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट के उत्तराधिकारी के रूप में हुई। संगठन की जड़े केरल में काफी गहरी हैं। फिलहाल इसका मुख्यालय दिल्ली के शाहीन बाग में बताया जा रहा है। शाहीन बाग वो ही इलाका जहां पर सीएए और एनआरसी के विरोध में पूरे देश में 100 दिन तक सबसे लंबा आंदोलन चला था। इस संगठन की कई शाखाएं भी हैं। जिसमें महिलाओं के लिए- नेशनल वीमेंस फ्रंट और विद्यार्थियों के लिए कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया। गठन के बाद से ही इस संगठन पर कई समाज विरोधी व देश विरोधी गतिविधियों के आरोप लगते रहे हैं।