सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा : बिना मंजूरी लिए रेमडेसिविर और फेविपिराविर का कैसे कर रहे प्रयोग


कोरोना के इलाज के लिए बिना किसी मंजूरी के रेमडेसिविर और फेविपिराविर के इस्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह के अंदर अपना जवाब देने के लिए कहा है। 

क्या है पूरा मामला- 
सुप्रीम कोर्ट मनोहर लाल शर्मा की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है। शर्मा ने अपनी याचिका में सवाल उठाया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा रेमडेसिविर और फेविपिराविर को कोरोना के इलाज में नाकाम बताते हुए इन दवाओं के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस संबंध में 15 अक्टूबर को एक नोटिस भी जारी किया था। याचिका में यह आरोप भी लगाया गया है कि कोविड-19 के मरीजों के इलाज के लिये केद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन से वैध लाइसेंस के बगैर ही भारत में इन दवाओं का उत्पादन और बिक्री की जा रही है। इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट से केद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन से वैध लाइसेंस लिए बिना ही इन दवाओं का उत्पादन और बिक्री करने वाली दस भारतीय दवा कंपनियों के खिलाफ सीबीआई द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देने का अनुरोध किया गया है। 
मार्च-अप्रैल के दौरान संक्रमण के शुरूआती दौर में रेमडेसिविर को कोरोना के लिए प्रभावी दवा बताया गया था। उस समय विश्व स्वास्थ्य संगठन की निगरानी में दुनिया के कई देशों में कोविड-19 से लड़ने के लिए कई दवाओं को ट्रायल के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा था जिसमें रेमडेसिविर भी एक थी। इसके अलावा तीन और दवाओं पर परीक्षण करने किए जा रहे थे। अब डब्लूएचओ ने साफ कर दिया है कि रेमडेसिविर का कोविड-19 वायरस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। डब्लूएचओ सॉलिडेरिटी ट्रॉयल के नतीजों में यह बात साफ हो गई है कि यह दवा कोरोना मरीजों की मृत्यु दर को रोकने में नाकाम रही है। भारत में डब्लूएचओ की इस रिपोर्ट के बाद भी रेमडेसिविर के ट्रायल जारी हैं। गौरतलब है कि ट्रायल के दौरान कोई भी कंपनी दवा को मुफ्त में मुहैया करवाती है लेकिन इस दवा को औने पौने दामों पर खरीदा गया। यहां तक कि इस दवा की कालाबाजारी भी हुई और 6000 रूपये की कीमत वाला एक इंजेक्शन 40000 रूपये तक में बेचा गया। 
डब्लूएचओ द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि 30 देशों के 405 अस्पतालों में कुल 11,666 मरीजों पर रेमडेसिविर का ट्रायल किया गया। इस दौरान यह देखा गया कि इस दवा का मृत्यु दर घटाने, श्वसन संबंधी समस्याओं को रोकने और अस्पताल में भर्ती रहने की अवधि में कोई प्रभाव नही पड़ा है। यह परीक्षण 6 महीने तक चले और इस पूरी प्रक्रिया का उद्देश्य यह पता करना था कि वर्तमान में मौजूद एंटी वॉयरल दवाएं कोरोना वायरस पर कितनी प्रभावी हैं। अब यह बात साफ हो गई है कि रेमडेसिविर का कोरोना संक्रमित मरीजों पर कोई प्रभाव नही पड़ा या बिल्कुल मामुली प्रभाव पड़ा। गिलियड साइंस ने कोरोन महामारी का फायदा उठाते हुए रेमडेसिविर को जमकर बेचा और अरबों डॉलर कमा लिए। इस कंपनी ने भारत और बांग्लादेश जैसे विकासशील और तीसरी दुनिया के देशों में इस दवा का पेटेंट बेच कर अरबों डॉलर कमाए।