हाईकोर्ट ने शादीशुदा जोड़े को नहीं दी सुरक्षा, कहा-केवल शादी के लिए धर्म परिवर्तन मान्य नही

हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत जान की सुरक्षा और निष्कंटक वैवाहिक जीवन जीने का अधिकार मांग रहे शादी शुदा जोड़े की याचिका खारिज कर दी है। अदालत का कहना है कि केवल शादी के  लिए धर्म परिवर्तन करना मान्य नही है। जज की कुर्सी पर बैठे न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी ने ऐसा तब कहा जब उन्हे मालूम पड़ा कि लड़की हिंदू थी और विवाह के लिए एक महीने पहले ही धर्म परिवर्तन किया है। 

क्या कहा न्यायधीश ने-
न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी ने कहा कि इससे स्पष्ट होता है कि धर्मांतरण केवल शादी के उद्देश्य से किया गया था। न्यायाधीश ने ’नूर जहां बेगम उर्फ अंजलि मिश्रा एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश सरकार एवं अन्य’ के मामले में 2014 में दिये गये एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि केवल शादी के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन करना अस्वीकार्य है। हाईकोर्ट ने यह कहते हुए याचिका अस्वीकार कर दी कि वह संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत इस मामले में हस्तक्षेप करने के पक्ष में नही है। 
’नूर जहां बेगम’ मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उन रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया था जिनमें शादीशुदा जोड़े को संरक्षण देने का अनुरोध किया गया था। याचिकाओं में कहा गया था कि लड़की ने हिन्दू धर्म छोड़कर मुस्लिम धर्म अपनाया था और उसके बाद निकाह किया था। संबंधित मामले में इस मुद्दे पर विचार किया गया था कि “इस्लाम की जानकारी के बगैर या उसमें भरोसा हुए बिना महज शादी (निकाह) के लिए क्या मुस्लिम लड़के के इशारे पर हिन्दू लड़की का धर्म परिवर्तन वैध है?“

इस मामले में लिली थामस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दोहराते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि,‘‘ एक व्यक्ति का अपना धर्म छोड़कर इस्लाम धर्म अपनाना तभी प्रमाणिक कहा जा सकता है यदि वह वयस्क हो, मानसिक तौर पर स्वस्थ हो तथा उसने इस्लाम को अपनी इच्छा से अपनाया हो एवं उसे अल्लाह के एकात्मवाद और पैगम्बर मोहम्मद के करिश्माई व्यक्तित्व में भरोसा एवं विश्वास हो। यदि धर्मांतरण धार्मिक भावनाओं से प्रेरित न हो और अपने फायदे के लिए किया गया हो, यदि यह धर्मांतरण किसी अधिकार के दावे का आधार बनाने या अल्लाह के एकात्मवाद या पैगम्बर मोहम्मद पर भरोसा किये बिना शादी से बचने के उद्देश्य से किया गया हो, तो यह धर्म परिवर्तन प्रामाणिक नहीं माना जायेगा। धर्म परिवर्तन के मामले में मूल धर्म की रीति-नीतियों के बदले नये धर्म की रीति-नीतियों के प्रति हृदय परिवर्तन होना और ईमानदार आस्था का होना जरूरी है।“