कृपया ध्यान दें!

कुछ वर्षों से सोशल मीडिया यानी सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने लोगों के जीवन में एक खास जगह तो बना ली है, लेकिन अब इसका काफी गलत प्रभाव पड़ रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि डिजिटल युग में इंटरनेट के प्रयोग ने हम सभी की दिनचर्या को काफी आसान बना दिया है। लेकिन इसका जो नकारात्मक रूप अब हमारे सामने आ रहा है वह दिल दहलाने वाला है। आज इंटरनेट और सोशल मीडिया की लत से लोग इस कदर प्रभावित हैं कि अब उन के पास अपना व्यक्तिगत जीवन जीने का समय नहीं रहा। वहीं सोशल मीडिया की लत रिश्तों पर भारी पड़ने लगी है। यहीं नहीं बढ़ते तलाक के मामलों में तो इसे मुख्य कारण माना जाने लगा है, इससे भी खतरनाक स्थिति ब्लूव्हेल और हाईस्कूल गैंगस्टर जैसे अन्य गेम्स की है। जानलेवा साबित हो रहे इन खेलों से खुद के अलावा समाज को भी खतरा है। अभिभावकों का कहना है कि परिजनों के समक्ष बच्चों को वास्तविक दुनिया के साथ इंटरनेट से सुरक्षित रखना भी एक चुनौती है। इसका समाधान रिश्तों की मजबूत डोर से संभव है।वही हमारे बच्चों को इस आभासी दुनिया के खतरों से बचा सकती है।


स्टूडेंट्स सर्वे के अनुसार,‘‘पढ़ाई के लिए हमें इंटरनेट की जरूरत पड़ती है। लगातार वेब सर्फिंग करने से कई तरह की साइट्स आती रहती हैं। यदि हमारे पेरेंट्स साथ होंगे तो वह हमें अच्छे-बुरे का आभास करा सकते हैं। इसलिए छोटे बच्चों के पास पेरेंट्स या दादा-दादी का होना जरूरी है। जिनके डर से वह कुछ गलत न करें।”


पेरेंट्स एसोसिएशन का कहना है,‘‘डिजिटल युग में अब ज्यादातर पढ़ाई इंटरनेट पर ही निर्भर होने लगी है। छोटे-छोटे बच्चों के प्रोजेक्ट इंटरनेट के माध्यम से ही संभव हैं। अब आवश्यकता पड़ने पर उन्हें मोबाइल फोन भी दिलाना पड़ता है। बहुत सी बातों की तो आपको और हमें जानकारी भी नहीं होती है कि कब वह गलत साइट खोल दे, यह माता-पिता के लिए पता लगाना बड़ा मुश्किल है।’’

स्कूल एसोसिएशन का कहना है,‘‘एकल परिवार की वजह से बच्चों का आभासी दुनिया के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। जो बच्चे संयुक्त परिवार में रहते है, उन्हें अपने विचारों को साझा करने में आसानी रहती है।पेरेंट्स को उनकी गतिविधियों और व्यवहार पर नजर रखनी चाहिए। हम सभी ने अपने-अपने स्कूल में एक सीक्रेट टीम बनाई है जो बच्चों पर नजर रखती है।10 से 15 साल तक के बच्चों में भ्रमित होने के आसार अब ज्यादा हो गये  हैं।’’

मानसिक विकारों के शिकार

सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपना खाता खोलने वाले 81 प्रतिशत बच्चों का कहना था कि उन के साथ अक्सर ऐसी अनचाही घटनाये होती रहती हैं। जबकि सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सक्रिय न रहने वाले बच्चों में से 55 प्रतिशत इसके शिकार होते हैं। बाल मनोचिकित्सक के अनुसार, आज के बच्चे बहुत पहले ही अपनी ऑनलाइन पहचान बना लेते है। इस समय इनकी सोच का दायरा बहुत छोटा रहता है और इनमें खतरा भांपने की शक्ति नहीं होती है। मनोचित्सक का कहना यह भी है कि ऐसी स्थिति में बच्चों को अपने अभिभावक, शिक्षक या अन्य आदर्श व्यक्तित्व की जरूरत होती है जो उन्हें यह समझाने में मदद करें कि उन्हें जाना कहां है? क्या कहना है? क्या करना और कैसे करना है?लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है यह जानना कि उन्हें क्या नहीं करना चाहिए? सोशल नेटवर्किंग साइट्स का एक और कुप्रभाव बच्चों का शिक्षक के प्रति बदले नजरिए में दिखता है। कई बार बच्चों के झूठ बोलने की शिकायत मिलती है। यहीं नहीं आज 10 साल के छोटे बच्चों द्वारा चोरी की भी शिकायतें मिलती हैं।

आक्रामक होते बच्चे

पहले पेरेंट्स 14 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को काउंसलिंग के लिए लाते थे, लेकिन आज के दौर में 8 साल जैसी छोटी उम्र के बच्चों की भी काउंसलिंग की जा रही है। अपराध की दुनिया में कदम रखने वाले बच्चे ज्यादातर एकल परिवार से ताल्लुक रखने वाले होते हैं। ऐसे परिवारों में माता-पिता से बच्चों की संवादहीनता बढ़ रही है, जिस वजह से बच्चे मानसिक विकारों के शिकार हो रहे हैं। कभी-कभी क्रोध में तो वह अपने पर भी हमला कर लेते हैं। वहीं काउंसलिंग के दौरान बच्चे बताते हैं कि परिजन अपनी इच्छाओं को उन पर मढ़ देते हैं। इसके बाद जब बच्चे ठीक परफॉरमेंस नहीं दे पाते तो उन्हें परिजनों की नाराजगी का शिकार होना पड़ता है। जिसके कारण ये आक्रामक भी हो जाते हैं। वहीं 8 से 12 साल के बच्चों की काउंसलिंग के दौरान ज्यादातर परिजन बताते हैं कि उन के बच्चों को अवसाद की बीमारी है। उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता है और टोकने पर वे आक्रामक हो जाते हैं और इस से अधिक उम्र के बच्चे तो सिर्फ अपनी दुनिया में ही खोये रहते हैं।

साइबर सेल की मदद लें

आप का बच्चा किसी खतरनाक गेम को खेल रहा है या उस की गतिविधियां मोबाइल पर मौजूद इस तरह के गेम की वजह से संदिग्ध लग रही हैं, तो तुरंत साइबर विशेषज्ञ से सलाह ले सकते हैं। फोन पर भी आप साइबर सेल की टीम से संपर्क कर सकते हैं। इस के लिए गूगल से आप अपने एरिया के साइबर सेल ऑफिस के बारे में जानकारी लें। वहां से आपको साइबर सेल विशेषज्ञ के नंबर भी मिल जायेगा।

 

आज जनमानस भड़ास अपने व्यूवर्स से अपील करता है कि अपने बच्चों पर अपनी व्यस्तता को दूर रखकर ध्यान दें, यदि आपको लगता है कि आपका बच्चा भी बहुत ज्यादा आक्रामक हो रहा है या किसी मानसिक तनाव में है तो उसे डाटें नहीं बल्कि उससे तनाव का कारण जानने की कोशिश करें। इसके साथ ही साथ हम दे रहे है आपको कुछ ऐसी टिप्स जिनसे आप अपने बच्चों में होने वाले मानसिक तनाव और अक्रामकता को आसानी से दूर कर सकते है। ये टिप्स है-


  • परिजन बच्चों से भावनात्मक रूप से मजबूत रिश्ता बनाये।
  • बच्चे की मांग अनसुनी करने से पहले उस की वजह जानें।
  • बच्चों के दोस्तों से भी मिलें ताकि बच्चे की परेशानी की जानकारी हो सके।
  • बच्चों को अच्छे व बुरे का ज्ञान कराये।
  • बच्चों को व्यायाम के लिए भी उकसाये।
  • बच्चों से अपनी अपेक्षाएं पूरी करने के बजाय उनकी योग्यता के आधार पर उनसे उम्मीद रखें।

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