पानी,महिला और कुशल प्रबंधन

हमारी भारतीय महिलाओं के लिये किसी ने बहुत पहले कहा था कि यदि प्रबन्धन सीखना हो तो किसी भारतीय नारी से सीखो। यह बात सौ प्रतिशत सच भी है, क्योंकि भारत में स्त्रियाँ जन्मजात प्रबन्धक होती हैं। वैसे तो एक कुशल प्रबन्धन समाज के हित में व्यक्ति का विकास करता है, लेकिन किसी समाज की सबसे आधारभूत इकाई/परिवार में प्रबन्धन उस घर की मुख्य महिला ही करती है, जो भारत में दादी, माँ या पत्नी हो सकती है। इनके अलावा परिवार में जो अन्य महिला सदस्य होती हैं, वे प्रमुख महिला प्रबन्धक की सहायिकाओं के रूप में घरेलू प्रबन्धन में अपने काम को करती हैं। भारत के घरों में इस प्रतिदिन वाले पानी की व्यवस्था महिलाएँ ही बनाए रखती हैं, इस विषय पर चिन्तन की आवश्यकता है। देखने में या सुनने में ऐसा लगता है कि इसमें चिन्तन करने जैसी कौन सी गहरी बात है, लेकिन थोड़ा सोचिए एक दिन भी यदि अचानक आपके घर का नल आना बन्द हो जाये, तो सबसे पहले चिन्ता उस घर की महिला के चेहरे पर ही दिखाई देने लगती है। वह किसी भी तरीके से घर के लिये पानी की ज़रुरत को पूरा कर देती है और इन्तजाम करने पर घर के ड्रम से लेकर चम्मच तक पानी से भरकर रखने की व्यवस्था वही करती है। वह अगले कुछ दिनों तक पानी न आने की स्थिति में भी किस तरह घर को सीमित पानी की मात्रा में चलाना है,इसका भी विशेष ध्यान रखती है। 

उचित व्यवस्था करना

हर भारतीय घर में चाहे वह गाँव, कस्बा, नगर, शहर और महानगर का हो, दिन की शुरुआत उस घर की महिला से ही होती है। अतः वही गृहस्वामिनी होती है। भारत में गरीब, निम्न एवं मध्यम वर्गीय परिवारों की अधिकता है। जहाँ जल प्रबन्धन वाकई एक प्रमुख घरेलू व्यवस्था के रूप में मायने रखता है, वहीं उच्च वर्गीय और धनाढ्य घरों को पानी व्यवस्था में शामिल नहीं किया जा सकता है, क्योंकि प्रायः वहाँ पानी की अव्यवस्था नहीं के बराबर होती है। फिर भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ऐसी सम्भ्रान्त भारतीय महिलाएँ भी अपने ऐश्वर्य के मुताबिक पानी की व्यवस्थाओं में अपनी भूमिका अवश्य निर्वहन करती दिख ही जाती हैं। एक आम भारतीय महिला बेहद सहजता से अपने घर को समेटने और सहेजने में पारंगत होती है और अपनी इसी कला के माध्यम से वह अपने घर के लिये भी पानी का सदियों से प्रबन्धन करती आ रही है।सबसे पहले सुबह उठकर स्नानघर, फिर रसोईघर, किसी के आने पर जलपान का प्रबन्ध, कपड़े धोने से लेकर घर की सफाई, पेड़ों पक्षियों के लिये भी पानी की व्यवस्था हर सामान्य भारतीय घर का रोज का नियम है। इन नियमित दैनिक कार्यों के लिये उत्तरदायित्त्वपूर्ण ढंग से भारतीय महिलाएँ सदियों से जहाँ ग्रामीण सुदूर इलाकों में नदियों, तालाबों या कुओं अथवा अन्य किसी साधन से अपने सिर पर रखकर पानी को अपने घरों में लाती आ रही हैं, वहीं थोड़े परिष्कृत  गाँवों, कस्बों और शहरों में भी चौराहों पर लगे सार्वजनिक नलों से पानी लाने की किल्लतों में महिलाएँ ही अधिक जूझती दिखती आई हैं। इसमें कोई शक नहीं कि गर्मियों में हमारे देश के कितने इलाके जल के लिये संघर्षरत हो जाते हैं, फिर भी घरों से लेकर गली-मोहल्लों तक जल विवादों को भारतीय महिलाएँ बेहद निपुणता से रोज निपटाती हैं और घरों में लोग भरपेट खाना खाकर पानी पीकर सन्तोष से काम करते रहते हैं। भारतीय महिलायें ही हैं, जो अपने कौशल से रोज पनपते जलविवादों से संघर्ष करती हुई अपराजिता की तरह जलविवाद का सफल निष्कर्ष निकालकर अपने परिजनों की प्यास बुझाती हैं। इस प्रकार पानी के अभाव या कमी की पीड़ा को समझने या फिर पानी की कम उपलब्ध मात्रा में सकल घरेलू कार्यों को सुचारु ढंग से निपटाने में भारतीय महिलाये एक कुशल प्रबन्धक इसलिये साबित हो पाती हैं, क्योंकि उनके इस प्रबन्धन में कोई निजी स्वार्थ या राजनीति या आर्थिक मोह नहीं होता। मुद्दा चाहे वह पानी का ही क्यों न हो, राजनीतिक और आर्थिक स्वार्थों की चिंगारियों से धधकाया जाने लगता है, तब विवाद बन जाता है और कोई भी विवाद न्यायपूर्ण निर्णय की आस रखने लगता है, तो न्यायालय की चौखट पर पहुँच जाता है। फिर न्याय के लिए तो न्यायाधीश ही कुछ कर या कह पाते हैं। लेकिन एक आम भारतीय नारी एक सुयोग्य न्यायाधीश भी हर रोज साबित होती है, क्योंकि वो एक मटके पानी से भी भरी गर्मी में अपने घर के हर सदस्य की न्यायपूर्ण तरीके से प्यास बुझाती है। यह प्रबन्धन निःसन्देह उसके संस्कारों से आता है।

नारी शक्ति को बढ़ावा

आज न्याय महिला अधिकारों के वंचित होने के मुद्दे से उठते हैं और परिवार की सीमाएँ लाँघकर सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय आकार ले रहे हैं। आज एक आम भारतीय महिला की प्रबन्धन क्षमता से दूर न्याय के लिये सिसकने पर उसे मजबूर कर देते हैं। जिससे आम महिलायें खास महिलाओं में तब्दील होती जा रही हैं और उनके अधिकार भी स्वयं के प्रति न मिलने वाली जागृति की भावना के अभाव से छटपटाने लगे हैं। तभी घरेलू और पारिवारिक स्तर वाले गृह प्रबन्धन से ऊपर उठकर एक महिला सामाजिक सुरक्षा, शिक्षा एवं साक्षरता, स्वास्थ्य, शिशु कल्याण, मनोरंजन, बीमा, पूँजी निर्माण, वैकल्पिक रोजगार आदि क्षेत्रों की ओर अग्रसर होने लगी है।

आज जनमानस भड़ास अपने ऐसे व्यूवर्स से अपील कर रहा है जो पानी की कीमत को न समझते हुए निरंतर पानी बर्बाद कर रहे है कि, किस प्रकार पानी की बचत और उसका सदुपयोग हमारे घर की महिलायें करती है, ठीक उसी प्रकार उनके इस प्रबंधन में हमें भी हाथ बंटाना होगा। जिससे हमारा वर्तमान और भविष्य सुरक्षित हो सके। हम सभी को नारी का सम्मान करना चाहिये। इसके साथ ही साथ हम सभी को महिलाओं को उनके द्वारा दिये जाने वाले उनकी योग्यता के अनुसार अपने–अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए ह्रदय से आभार व्यक्त करना चाहिये कि उन्होंने हमारे देश का गौरव बढाया है।

नारी का सदैव करो सम्मान- क्योंकि ये है देश और हमारा अभिमान 

भड़ास अभी बाकी है...