शिक्षा और हम...

जब हम शिक्षा की बात करते हैं तो सामान्य अर्थो में यह समझा जाता है कि इसमें हमें वस्तुगत ज्ञान प्राप्त होता है तथा जिसके बल पर कोई रोजगार प्राप्त किया जा सकता है। ऐसी शिक्षा से व्यक्ति समाज में आदरणीय बनता है। समाज और देश के लिए इस ज्ञान का महत्व भी है क्योंकि शिक्षित राष्ट्र ही अपने भविष्य को सँवारने में सक्षम हो सकता है। आज कोई भी राष्ट्र विज्ञान और तकनीक की महत्ता को अस्वीकार नहीं कर सकता, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इसका उपयोग है। वस्तुपरक शिक्षा हर क्षेत्र में उपयोगी है। परंतु जीवन में केवल पदार्थ ही महत्वपूर्ण नहीं हैं। पदार्थो का अध्ययन भी आवश्यक है, राष्ट्र की भौतिक दशा सुधारने के लिए तो जीवन मूल्यों का उपयोग कर हम उन्नति की सही राह चुन सकते हैं। हम जानते हैं कि भारत में लोगों के बीच फैला भ्रष्टाचार किस तरह से विकास की धार को कम रहा है। आज की शिक्षा का मुख्य उद्‌देश्य है– पढ़-लिखकर पैसा कमाना। चाहे पैसा कैसे भी आता हो, इसकी परवाह न की जाये। यही कारण है कि शिक्षित वर्ग भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में सबसे आगे हैं। शिक्षा प्राप्ति की एक सुविचारित नीति होनी चाहिए। स्टूडेंट्स को शुरू से ही यह जानकारी देनी चाहिये कि जीवन में आगे चलकर उन्हें किन समस्याओं से जूझना होगा। छात्रों को पता होना चाहिए कि जीने के मार्ग अनेक हैं तथा उस मार्ग को ही चुनना श्रेयस्कर है जो उसके स्वभाव के अनुकूल हो। नैतिक शिक्षा की बातों में सत्य, क्षमा, दया, ईमानदारी, अहिंसा आदि बताने से कुछ खास हासिल नहीं होता, यदि हम इन बड़ी-बड़ी बातों को जीवन में उतारने का अवसर न प्रदान करें। बालकों की सहज बुद्धि में प्रयोगात्मक हकीकतअधिक सहजता से प्रवेश करती हैं। अगर उपदेश ही प्रभावित कर सकते तो आज समाज में इतनी बेईमानी और इतना भ्रष्टाचार न फैला होता। शिक्षा के साथ नैतिक मूल्यों को सम्बद्ध करने का अर्थ यह नहीं है कि बालकों के निरंतर भारी होते हुए बस्ते में एक और किताब का बोझ डाल दिया जाए । इससे उनके जीवन में कोई गुणात्मक परिवर्तन नहीं आ सकता क्योंकि बच्चे समझते हैं कि यह भी एक विषय है जिसमें अच्छे अंक लाने होंगे। शिक्षा प्रत्येक नागरिक का एक मूलभूत अधिकार एवं आवश्यकता है और शिक्षा हमारे लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि कहते हैं कि शिक्षा के बिना एक इंसान पशु के समान होता है। इसलिए हर इंसान को एक बेहतर जीवन जीने के लिए उचित शिक्षा प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि शिक्षा के द्वारा ही समाज का विकास संभव है शिक्षा हमें अपने जीवन में एक लक्ष्य निर्धारित करने और आगे बढ़ने के लिए सदैव प्रेरित करती है।

 


शिक्षा व्यक्ति एवं समाज के विकास के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है और इसके द्वारा ही हमारे ज्ञान, कुशलता, आत्मविश्वास और व्यक्तित्व में सुधार आता है। शिक्षा सामाजिक विकास, आर्थिक वृद्धि और तकनीकी उन्नति का रास्ता है। यह हमारे जीवन में दूसरों से बात करने की बौद्धिक क्षमता को बढ़ाती है। शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण तंत्र है, जो व्यक्ति के जीवन के साथ ही यह देश के विकास में भी अहम भूमिका निभाती है। शिक्षा किसी भी व्यक्ति और समाज के समग्र विकास तथा सशक्तीकरण के लिए एक आधारभूत मानव मौलिक अधिकार है। शिक्षा के महत्व को ध्यान में रखते हुए सरकार के द्वारा 6 साल से 14 साल तक की आयु वाले सभी बच्चों के लिए शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया है। सरल शब्दों में इसका अर्थ यह है कि सरकार ने प्रत्येक बच्चे के लिए आठवीं कक्षा तक की नि:शुल्क पढाई का प्रवधान किया है, चाहे वह बालक हो या बालिका अथवा किसी भी वर्ग का हो। शिक्षा सभी के जीवन को सकारात्मक तरीके से प्रभावित करती है और हमें जीवन की सभी छोटी और बड़ी समस्याओं का समाधान करना सिखाती है। समाज में सभी के लिए शिक्षा की ओर इतने बड़े स्तर पर जागरूक करने के बाद भी, देश के विभिन्न क्षेत्रों में शिक्षा का प्रतिशत अभी भी समान है। वहीं वैश्विक परस्थितियों में हमारा समाज एक बड़े परिवर्तन से गुजर रहा है। हमारे नैतिक मूल्य पीछे छूट रहे है- भौतिकता ,पश्चमी सभ्यता एवं नकारात्मक मूल्य नायक बनकर हम लोगों के आदर्श बनते जा रहे हैं। इन सारी बुराइयों का केंद्रबिंदु शिक्षा का अधूरापन है। साहित्य समाज का दर्पण होता है तो शिक्षा समाज की रीढ़ होती है। इन तीनो का उच्चतम समन्वय उत्कृष्ट संस्कृतियों का निर्माण करता है। शिक्षा विकास का प्रमुख अस्त्र है ,यह व्यक्ति देश समाज के बहुआयामी विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। समाज एवं संस्कृति के उत्थान में शिक्षा प्रमुख घटक है। शिक्षा के उचित प्रोत्साहन से सामाजिक ,आर्थिक राजनैतिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में नैतिक विकास का समावेश किया जा सकता है। समाज सुधार के परिपेक्ष्य में शिक्षा ने प्राचीन कल से महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है जिसका प्रभाव आधुनिक भारत में स्पष्ट परिलक्षित होता है। शिक्षा नागरिक एवं समाज के बीच सेतु का कार्य करती है।समाज की आवश्यकता अनुरूप अपने में परिवर्तन की सामर्थ्य शिक्षा में होती है। प्रारम्भ में शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ ज्ञान का संवर्धन था किन्तु धीरे धीरे शिक्षा समाज के परिवर्तन का माध्यम बन गयी।

 

आज जनमानस भड़ास अपने ऐसे व्यूवर्स जिनके बच्चे मानसिक तनाव में हैं से अपील कर रहा है की वे अपनों बच्चो को मानसिक तनाव से दूर रख कर उसका मानसिक विकास करने में उसकी मदद करे क्योकि ज्ञान अर्थ मानसिक विकास से होता है। इसके लिए हमें अपनी व्यस्तताओं को भूलकर एक निश्चित समय अपने बच्चों के साथ बिताना होगा,जिससे बच्चे आपको अपनी बात बताने में संकोच न करें। ज्ञान का अर्थ विभिन्न विषयों को याद कर लेने से ही नहीं है बल्कि मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करते हुए अनुशासन में रखना है। ऐसा ज्ञान उचित और अनुचित का बोध करता है तथा कार्य करने की क्षमता का विकास करता है। वास्तव में सच्चा ज्ञान व्यक्ति के जीवन को सफल और सुखी बनाने में पूर्ण सहयोग प्रदान करता है। परन्तु ऐसा उसी समय सम्भव हो सकता है, जब ज्ञान को हमारे बच्चे अपने अनुभव के आधार पर स्वयं ही खोज कर निकाले। इससे वह अपने भावी जीवन में आने वाली कठिनाईयों का बहादुरी के साथ सामना कर सकते है और अपनी समस्या को अपने पूर्व अनुभव के आधार पर सुलझाने में सफल हो सकते है।

भड़ास अभी बाकी है...