समाज और नारी...

 

हमारा समाज एक पुरुष प्रधान समाज है और पुरुष महिलाओं को अधिकतर अपने से छोटा समझते हैं। हमें महिलाओं के साथ दोहरे मापदंड नही अपनाने चाहियें। आज भी कहीं न कहीं जब घर में लडकी पैदा होती है तो इतनी ख़ुशी नही होती, जितनी पुत्र पैदा होने पर होती है। जबकि अधिकतर, माता-पिता का साथ जरुरत के समय लड़की ही देती है। शिक्षा के मामले में भी लड़कियों को कम पढ़ाया है। विवाह भी लड़कियों का जल्दी कर दिया जाता है। लड़की के विवाह के समय दहेज़ दिया जाता है या देना पड़ता है जबकि लडके के मामले में दहेज़ माँगा या लिया जाता है। अपने घर की बहू, बहन या बेटी घर से बाहर जाये तो अंग ढके होने चाहियें और ढंग भी सही होना चाहिए जबकि दूसरों की बहू, बहन या बेटी बाहर दिखाई दे तो ये मापदंड ही बदल जाते हैं। मारने और जलाने जैसे-जघन्य अपराध केवल लड़कियो-महिलाओं के बारे में ही आते है

 

आज भी हमारे समाज में नारी की असम्मानजनक स्थिति है जब कि भारत की संस्कृति में महिलाओं की सदा ही मुख्य भूमिका रही है। धन की देवी लक्ष्मी, विद्या की देवी सरस्वती और शक्ति की देवी दुर्गा रही है। सभी देवी-देवताओं ने भी सदा ही नारी को पुरुष से ज्यादा सम्मान दिया चाहे वो सीता हो, राधा हो या पार्वती हो। रानी लक्ष्मी बाई, पुतली बाई अदि की भूमिका को भी हम भूल नही सकते। आज भी महिलायें किसी कार्य क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नही हैं। महिलायें भारतीय फौज में, वायुयान चालक के रूप में और अब तो ग्रहों, उपग्रहों की यात्रा में भी अपना डंका बजा चुकी हैं। आज आध्यात्मिक जगत में भी महिलायें पुरुषों से पीछे नही हैं। यही नहीं अध्यात्मिक संस्थाओं में तो प्रचार कार्य अधिकतर नारी वर्ग ने ही संभाला हुआ है। सदियों से समय की धार पर चलती हुई नारी अनेक विडम्बनाओं और विसंगतियों के बीच जीती रही है। लेकिन उसके संघर्षों से, उसकी योग्यता से बन्धनों की कड़ियां चरमरा गयी है। उसकी क्षमताओं को पुरुष प्रधान समाज रोक नहीं पाया। उसने स्वतन्त्रता संग्राम जैसे आन्दोलनों में भाग लिया और स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् संविधान में बराबरी का दर्जा पाया। कई समाज सुधारकों और संगठनों द्वारा उठाई आवाजों के प्रयासों से यहां तक पहुंची है, नारी।

 

परिवर्तन में भूमिका

 

 

जीवन के हर क्षेत्र में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली नारी की सामाजिक स्थिति में फिर भी परिवर्तन ‘ना’ के बराबर है। घर और बाहर की जिम्मेदारी निभाने वाली महिलाओं से भी हमारा पुरुष प्रधान समाज चाहता है कि वह अपने को पुरुषो के सामने सामान्य ही समझे। आज हम नारी जागृति और नारी सम्मान की बात करते हैं। बड़े अधिकारी, नेतागण, अन्य सभी बुद्धिजीवी लोग सभाओं, गोष्ठियों एवं मंचों पर नारी के समान अधिकार, महिला उत्पीडन के मुद्‌दों पर लच्छेदार भाषण झाड़ते हैं, लेकिन आज भी समाज का नारी के प्रति वास्तविक नजरिया कुछ और ही है। हमारे देश में जहां महिला प्रधानमंत्री रह चुकी हों, माउंट एवरेस्ट पर विजय पा चुकी हो, वहां महिला और पुरुष के बीच का विरोधाभास और भी निंदनीय है। इस देश में हमेशा स्त्री को मां, बहन या फिर बेटी के रूप में देखा गया है, फिर भी इतिहास गवाह है कि पारम्परिक और सामाजिक दृष्टिकोण से स्त्रियों की हमेशा उपेक्षा की गयी है। मानव समाज की सबसे पुरानी और सबसे व्यापक गलतियों में से एक मुख्य गलती यह है कि आज तक भारतीय नारी के साथ समानता एवं न्याय का व्यवहार नहीं हुआ है। भारतीय संविधान निर्माताओ ने संविधान के विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से यह सुनिश्चित करने का निश्चय किया है कि नारी को सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक न्याय प्राप्त हो सके, ताकि प्रत्येक भारतीय नारी को स्वतंत्रता के साथ-साथ अवसर की समानता का आनन्द भी मिल सके। इसलिए भारत के संविधान की उद्‌देशिका, मूल अधिकारी तथा राज्य के नीति निर्देशक तत्वो में ऐसे प्रावधान किये गये जिसमें महिलाओं, अल्पसंख्यको और समाज के निर्बल वर्गों को आगे आने का अवसर मिल सके, ताकि वे भी देश की मुख्यधारा से जुड़ सकें। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया तथा अनेक यातनाएं एवं अत्याचार सहे थे। इसलिये संविधान निर्माताओं ने यह जरूरी समझा कि राष्ट्र को मजबूत, संगठित एवं प्रगतिशील बनाने के लिए महिलाओं, युवतियों एवं बच्चों की सुरक्षा, संरक्षण एवं उन्नति के लिए विशेष व्यवस्था की जाये, ताकि उनका पिछड़ापन समाप्त हो सके। सौभाग्यवश,राजनीतिक क्षेत्र में एक व्यक्ति एक वोट के आधार पर समाज के प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह किसी जाति, संप्रदाय अथवा धर्म से संबंधित हो, को समानता का अवसर प्रदान किया गया है। प्रजातंत्र एवं गणतंत्र में सरकार अथवा शासक बदलने में वास्तविक शासक अर्थात् मतदाता का कितना महत्व है यह समय-समय पर सरकारें बदलकर प्रस्तुत किया गया है।

 

 

 

 

आज पराधीनता के कारण महिलायें अभी तक समाज में पूरी तरह वह स्थान प्राप्त नहीं कर सकी हैं जो उन्हें मिलना चाहिये और जहाँ दहेज की वजह से कितनी ही बहू-बेटियों को जान से हाथ धोने पड़ते हैं तथा बलात्कार आदि की घटनाएं भी होती रहती हैं, वहीं हमारी सभ्यता और सांस्कृतिक परम्पराओं और शिक्षा के प्रसार तथा नित्यप्रति बद रही जागरूकता के कारण भारतीय नारी आज भी दुनिया की महिलाओं से आगे है और पुरुषों के साथ हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर देश और समाज की प्रगति में अपना सहयोग दे रही है। आज जनमानस भड़ास अपने व्यूवर्स से अपील कर रहा है कि हमें नारी की समाज में स्थिति को चिंताजनक से सम्मानजनक बनाना है इसके लिए हम सभी को एकजुट होना होगा। हम सभी को यह समझना होगा कि, अगर नारी जगत जननी है तो नारी काली भी है और जब नारी अपने विनाशकारी रुप में आती है। उस समय प्रलयरुपी विनाशलीला में सब कुछ खत्म कर देती है। समाज में अगर नारी के सम्मान की रक्षा नही की गई तो वह दिन दूर नही जब हम सभी जीवन के आखिरी चक्र में खुद को पायेंगें क्योकि जो जीवन दायिनी है अगर वहीं सुरक्षित नही है ऐसी परिस्थिति में सृष्टि का सुचारु रुप से चल पाना संभव नही है।

भड़ास अभी बाकी है...