स्वच्छता है ज़रूरी, न समझे मजबूरी।

स्वच्छता का सीधा सम्बन्ध हमारी सेहत से होने के बाद भी हमारे समाज में स्वच्छता को लेकर कभी कोई गम्भीर स्थिति का काम तो दूर, इस विषय पर चर्चा तक नहीं होती। अगर कभी कुछ बातें जरूर होती है पर वे बातें भी ज्यादातर दिखावे के लिये कर ली जाती है। जब सरकार ने स्वच्छता पर फोकस करना शुरू तो किया है पर अब भी यह सरकारीकरण से बाहर आकर लोगों के लिये जन अभियान का रूप नहीं ले पा रहा है। महात्मा गाँधी ने स्वच्छता की कीमत अपने दशकों में ही समझ ली थी और उन्होंने इसके महत्त्व पर रोशनी डालते हुए यहाँ तक कहा था कि स्वच्छता आजादी से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है, लेकिन गाँधी जी की इस बात को हम या तो भूल गये या अब तक समझ नहीं पा रहे हैं। इसके लिये आज भी सरकारों को निर्मल भारत और स्वच्छता अभियान चलाने पड़ रहे हैं। बात–बात पर गाँधी जी का अनुसरण करने की बातें करने वाले भी अपने परिवेश की साफ़–सफाई के लिये खुद भी जवाबदेह नहीं हो पा रहे हैं।

आखिर ऐसा क्यों है?

 

 

इस प्रश्न के उत्तर में जनमानस भड़ास कहना चाहता है कि आज हम सभी अपनी सेहत को ठीक रखने या उसकी चिन्ता करने का काम भी सरकार के हवाले कर चुके हैं। जो स्वच्छता हमें अपने आस-पास रखनी चाहिये, उसके लिये भी अब हम सरकार की तरफ देखते रहते हैं कि एक दिन सरकार आयेगी और हमारे आस-पास की गन्दगी को दूर कर इसे साफ़ करेगी और इस झूठी आस में हम बीमार ही बीमार होते जा रहे हैं, लेकिन आज भी हम लोग आगे बढ़कर हमारे आस-पास की ही साफ़-सफाई के बारे में न तो सोचते हैं और न ही कभी करते हैं। जबकि कुछ लोगों को सफाई पसन्द जरूर होती हैं पर वे भी सिर्फ अपने घर की अच्छी तरह से साफ–सफाई करने के बाद इकट्ठा हुए कूड़े–कचरे को या तो सड़क पर या चौराहे के पास या सरकारी इमारतों के झरोखे में डाल दिया करते हैं। यदि हम विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों पर गौर करें तो साफ़ है कि हमारी ज्यादातर बीमारियों के लिये हमारे द्वारा फैलाया गया कूड़ा–कचरा ही जिम्मेदार है। इसी वजह से हमारे नदी–नालों सहित जल स्रोत लगातार प्रदूषित होते जा रहे हैं। यहाँ तक कि कई जगह हमारा भूगर्भीय जल भंडार भी इससे अछूता नहीं रह पा रहा है। नदियों की सफाई की जगह हम उनमें प्रतिमायें और पूजन सामग्री विसर्जित कर रहे हैं। उनके किनारों को हमने सार्वजनिक शौचालयों में बदल दिया है। आज बढ़ते जल संकट से स्थितियाँ आज हम सभी के लिए चिंताजनक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का स्पष्ट मानना है कि भारत में 82 फीसदी से ज्यादा बीमारियाँ सिर्फ प्रदूषित पानी के कारण ही होती हैं। देश के स्वास्थ्य बजट का करीब 82 फीसदी हिस्सा केवल पानी से होने वाली बीमारियों के इलाज और रोकथाम पर ही खर्च होता है। बार–बार पानी उबाल कर पीने के सुझाव पर भी हम लोग अमल नहीं कर पा रहे हैं। साफ़-सफाई रखने और हाथ धोने की आदत नहीं होने से भी हमारे शरीर में बीमारियाँ पनपने लगती हैं। इंसान को अपनी आदतें बदलना इतना आसान नहीं होता लेकिन प्रयास तो किया ही जा सकता है। यदि हम लोग स्वच्छता से जुड़े कुछ छोटे–छोटे उपाय ही कर लें तो खुद को और अपने परिवार को तो स्वस्थ रखेंगे ही अपने पड़ोसियों को भी बीमारियों से दूर रख सकेंगे। 

 

 

आज जनमानस भड़ास अपने व्यूवर्स से अपील कर रहा है कि हम जागरुकता के अभाव के चलते समझ ही नहीं पाते है कि इन स्थितियों के लिये हम खुद और हमारे घर-ऑफिस के बाहर और गली-मोहल्लों की गन्दगी ही जिम्मेदार है। सेहत और स्वच्छता आपस में बहुत गहरे रूप में जुड़े हुए हैं और आज बिना स्वच्छता के अच्छी सेहत की बात करना भी हमारे लिये बेईमानी ही है। इसलिये आज स्वच्छता बनाये रखना और इसके लिए हम सभी का एकजुट होना हमारी सरकार का दायित्व ही नहीं बल्कि उससे कहीं ज्यादा ये हम सभी की जिम्मेदारी भी है।

भड़ास अभी बाकी है...