जड़ हो रहा जनमानस “भाग-3”

बेरोजगारी का दर्द युवाओं से ज्यादा कौन जानता है? क्या गुज़रती है एक युवा पर? जिसकी उम्र बुढ़ापे की तरफ तेजी से ढल रही होती है फिर भी वो अपने मां-बाप की बदौलत अपना गुजर-बसर कर रहा होता है| अपने भविष्य की चिंता लिए युवा नौकरी पाकर सब कठिनाइयों से उबरना चाहता है, पर नौकरी है कि मिलने का नाम ही नहीं लेती है| अपने शहर एवं गाँव के पारिवारिक वातावरण को छोड़कर भीड़ और शोरगुल, यहीं नहीं एक दूसरे का साथ न देकर एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ वाली जगह पहुँच जाता है, जहाँ वो युवा कहीं गुम-सा हो जाता है| जैसे-तैसे और बेढंगे से बने लॉज या कमरे और बास मारती गलियों में गुजर-बसर करना उसके लिए कितना कठिन होता है? ये बयां नहीं किया जा सकता है| पारिवारिक और सगे-सम्बन्धियों के माहौल में पलने वाला युवा एकांत में डाल दिया जाता है| उसके ऊपर मां-बाप, भाई-बहन और भी न जाने कितने अपनी उम्मीदों और आकांक्षाओं का बोझ लाद देते हैं| एक युवा के कुछ बनने, कुछ कर दिखाने के सपने इतने सारे बोझों के आगे धुंधले होने लगते है|

 

अपडेट रहने की चाह

 

 

उसके दोस्त किसी अच्छे शिक्षण संस्थान में उसका दाखिला करा देते है और उस युवा के उम्मीदों-हौंसलों में अच्छे सरकारी पदों के बारे में जानकर पंख लग जाते है| अब तो हालात काफी बदल गए हैं, टेक्नोलॉजी का विस्तार होता ही जा रहा है और युवा सोशल साइट्स की आदतों के शिकार हो भी चुके हैं| आजकल कम सब्जी खरीदकर या बचत करके युवा अपने स्मार्टफोन में इंटरनेट पैक भरवाने लगा है, नौकरियों की जानकारियां अपडेट रखने लगा है|

 

इसलिए बढ़ रही है दूरियाँ

 

 

एक बेरोजगार युवा जब 25 वर्ष से ज्यादा उम्र का होने लगता है तो उसके हौसलों के पंख ढीले पड़ने लगते हैं| रेलवे जैसी बड़ी आकांक्षाओं वाले सेक्टर की 18 हज़ार सीट के लिए 1 करोड़ से ज्यादा आवेदन की खबर उसे तोड़कर रख देती है| एसएससी और रेलवे जैसे अन्य सरकारी ही नहीं प्राइवेट विभागों में भी किसी पद पर नौकरी करने की चाहत रखने वाले युवा, प्रतिभावान होने के वाबजूद भी अराजक कारणों से अपना अधिकार गवां देते है और पद अयोग्य लोगों को दे दिया जाता है| हकीकत तो ये है कि क्लर्क स्तर के परीक्षाओं की तैयारी करने में भी युवा वर्ग के अभिभावकों की आर्थिक स्थिति दयनीय हो जाती है क्योकि की फीस भरने के लिए  उन्हें किसी से मदद, ऋण या कुछ गिरवी रखना पड़ जाता है| जिन्हें जल्द से जल्द अदा करने के लिए वह युवा प्रयासरत रहता है परन्तु रोजगार अधिक समय तक न मिलने के कारण उसका मन खिन्न हो जाता है और मानसिक तनाव से ग्रसित हो जाने के कारण भटकाव की स्थिति पैदा हो जाती है| एक बेरोजगार युवा को सबसे ज्यादा तकलीफ समाज और परिवार के लोगों द्वारा बोले गए तीक्ष्ण शब्दों से होती है| सिर्फ बेरोजगारी की वजह से वह इन शब्दों को न सुनने के लिए वह किसी परिवार-मित्र के यहाँ जाना नहीं चाहता| नतीजा, वह भारतीय संस्कृति और उसके तौर-तरीकों से ही नहीं समाज से भी धीरे-धीरे दूर होता चला जाता है| आज युवा वर्ग अपनी-अपनी परिस्थितियों में इतना उलझ गया है कि उसे समाज में लोगों की परेशानियों से कोई वास्ता रखने का या उसे सहयोग देने का ख़याल भी नहीं आता है, उसे यही लगता है कि जब किसी ने मेरे लिए नहीं सोचा तो मैं किसी और के लिए क्यों सोचने में अपना समय बर्बाद करूँ?

भड़ास अभी बाकी है....