जड़ हो रहा जनमानस “भाग-7”

जब एक बच्चा दुनिया में जन्म लेता है तो उसकी आत्मा इतनी अधिक सात्विक, उसके विचार इतने कोमल होते हैं और उसकी बुद्धि इतनी निर्मल होती है कि अगर उसे भगवान कहा जाये तो भी कुछ गलत नहीं होता है। इसी वजह से ही तो कुछ लोग बच्चों को भागवान का रूप मानते हैं लेकिन जैसे -जैसे वह बड़ा होता है, वह सभी के संपर्क में आता है तो उसके विचारों और बुद्धि में भी परिवर्तन होने लगता है। इसकी वजह से वह समाज में जो कुछ भी देखता है, सुनता है और अनुभव करता है, उसी की तरह ढलता चला जाता है। एक दिन वह बालक या तो उच्च स्थान पर पहुंच जाता है या दुराचारी बनकर समाज पर एक कलंक बन जाता है। किसी भी देश के विकास के रास्ते में उस देश की समस्याएं बहुत ही बड़ी बाधाएं होती हैं। इन सभी समस्याओं में सबसे प्रमुख समस्या है भ्रष्टाचार की समस्या। जिस राष्ट्र या समाज में भ्रष्टाचार का दीमक लग जाता है वह समाज रूपी वृक्ष अंदर से बिलकुल खोखला हो जाता है और उस समाज एवं राष्ट्र का भविष्य अंधकार से घिर जाता है। वर्तमान समय में भ्रष्टाचार हमारे देश/प्रदेश/शहर में पूरी तरह से फैल चुका है। हमारे देश/प्रदेश/शहर में आज के समय लगभग सभी प्रकार की आईटी कंपनियां, बड़े कार्यालय, अच्छी अर्थव्यवस्था होने, सरकारी-गैर सरकारी विभाग की प्रगति के बाद भी विकसित होने की दौड़ में बहुत पीछे है। इसका सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार ही है। यहीं नहीं कालाबाजारी जान-बूझ कर चीजों के दाम बढ़ाना, अपने स्वार्थ के लिए चिकित्सा जैसे-क्षेत्र में भी जान-बूझ कर गलत ऑपरेशन करके पैसे ऐठना, हर काम पैसे लेकर करना, किसी भी समान को सस्ता में लाकर महंगे में बेचना, रिश्वत लेना, टैक्स चोरी करना, ब्लैकमेल करना, परीक्षा में नकल कराना, परीक्षार्थी का गलत मूल्यांकन करना, हफ्ता वसूली आदि ये सब भी भ्रष्टाचार के ही रूप है। अब सवाल ये उठता है कि भ्रष्टाचार स्वभाव एवं प्रवृत्ति का जन्म कब और कैसे हुआ? इसका अंदाजा लगाना तो संभव नहीं है। लेकिन यह कहा जा सकता है कि हम सभी की तीव्र जिज्ञासा तथा अतिउत्सुकता ने इसके क्षेत्र को बहुत व्यापक बना दिया है।


 

भ्रष्टाचार की जड़ें

 

फैलता भ्रष्टाचार

 

 

भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत ही व्यापक हो चुकी है। आज के समय में कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहाँ पर भ्रष्टाचार ने अपनी जड़ों को न फैला रखा हो। भ्रष्टाचार की गिरफ्त में मनुष्य, समाज, शहर ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण देश फंसा हुआ हैं। योग्य छात्र को ऊँची कक्षा में दाखिला नहीं मिल पाता है लेकिन अयोग्य छात्र भ्रष्टाचार का सहारा लेकर ऊपर तक पहुंच जाते हैं लेकिन योग्य छात्र ऐसे ही रह जाते हैं।जब मनुष्य स्वार्थ में अंधा हो जाता है, तो वह अभिमान के नशे में चूर हो जाता है, वह धर्म-कर्म को छोड़कर नास्तिकता और अकर्मण्यता के संकीर्ण पथ पर चलायमान हो जाता है। करुणा और सहानुभूति की भावना को त्यागकर निर्दय और कठोर बन जाता है।वह धीरे-धीरे ऐसी स्थिति में फंस जाता है जिससे निकलना उसके लिए असंभव हो जाता है। भ्रष्टाचार की वजह से सिर्फ मनुष्य की ही नहीं बल्कि राष्ट्र की भी हानि होती है। भ्रष्टाचार कुछ इस तरह से भारत में दीमक की तरह फैल चुका है। इसलिए अब सवाल ये उठता है कि आखिर क्यों सरकारी दफ्तरों में पैसे या घूस देने पर ही काम पूरे होते हैं?  क्यों अभी भी दुकानों में मिलावट का सामान मिल रहा है? कई कंपनियों का सामान खाने के लायक न होने पर भी क्यों दुकानों पर मिल रहा है? क्यों चंद रुपयों के लिए छोटे-बड़े अधिकारी-कर्मचारी और विभाग गलत चीजों को पास कर देते हैं? जिसका प्रभाव अक्सर आम आदमी पर पड़ता है।

 

भडास अभी बाकी है...