जड़ हो रहा जनमानस “भाग-9”

 

हमारे देश/प्रदेश/शहर में स्नातक बेरोजगारों की एक बड़ी संख्या है, जिसमें प्रति वर्ष इज़ाफा ही होता जा रहा है, जबकि इसकी तुलना में नौकरियां सीमित हैं। पढाई पर लाखों रूपए खर्च करने के बावजूद जब इन बेरोजगारों को कहीं नौकरी नहीं मिलती है तो ये युवा प्राइवेट स्कूलों में कम वेतन पर भी काम करने को तैयार हो जाते हैं। उनकी इसी मज़बूरी का फ़ायदा प्राइवेट स्कूल चलाने वाले संगठन उठाते हैं। इन स्कूलों में अभिभावकों से तो फीस में मोटी रक़म वसूली जाती है लेकिन शिक्षकों को सरकारी स्कूल की अपेक्षा काफी कम सैलरी दी जाती है, यहां तक कि सरकारी स्कूलों की तुलना में प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों को छुट्टियाँ भी बहुत कम मिलती हैं।  फिर भी बड़ी संख्या में हम अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी में पढ़ाने की लालच में इन स्कूलों में एडमिशन कराते हैं। वहीं सरकारी स्कूलों की ख़राब होती गुणवत्ता का सबसे बड़ा कारण शिक्षा विभाग के अधिकारियों की उदासीनता और लापरवाही है। जो सरकारी खज़ाने से वेतन और अन्य सुविधाएँ तो प्राप्त करते हैं।मोटी रक़म लेकर एडमिशन देने वाले निजी स्कूलों की बढ़ती संख्या के बावजूद भी देश में पढने वाले बच्चों का अधिकांश प्रतिशत निजी स्कूलों में है। सरकारी स्कूल की शिक्षा का स्तर का इसी बात से पता चलता है कि खुद इसी विभाग के अधिकारी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में न पढ़ाकर निजी स्कूल में पढ़ाते है। आखिर ऐसा क्यों है?


 

हमारे बच्चों को जिम्मेदार नागरिक बनाना न केवल शिक्षकों की जिम्मेदारी है बल्कि हम माता-पिता का भी मुख्य कर्तव्य है। हमें अपने बच्चों की निगरानी करनी है। हमारे बच्चे क्या बोलते हैं? कैसे स्कूल जाते हैं? उनकी यूनिफ़ॉर्म कैसी है? हम सभी माता-पिता के द्वारा की गई आज की सख्ती हमारे बच्चों के भविष्य को बनाने में मदद करेगी। इसके अलावा, हमें अपने बच्चों को जिम्मेदारी का एहसास भी कराना है और उन्हें समझदार बनाना है। सरकारी स्कूलों में नियमित रूप से आपस में शिक्षा के बढ़ावे के लिए, व्यक्तित्व विकास, संवाद, महत्वता पर सेमिनार या चर्चाओं का आयोजन करना है। हमें यह सुनिश्चित करना है कि हमारे बच्चे केवल परीक्षा देने के लिए नहीं बल्कि शिक्षा को समझने के लिए अध्ययन कर रहे हैं या नहीं। सरकार की भी यह जिम्मेदारी है कि वह अच्छे निर्मित स्कूलों में प्रशिक्षित कर्मचारियों को शिक्षा देने का अवसर प्रदान करे। हम लोग इन सभी चीजों के लिए एक व्यक्ति या संस्था की शिक्षा की गुणवत्ता को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं और अच्छे व्यवहार तथा चरित्रवान बच्चों का निर्माण करना शिक्षक, विद्यार्थी, सरकार और हम सभी माता-पिता की सामूहिक जिम्मेदारी है। इस बड़े और प्रभावशाली परिवर्तन को लाने के लिए हम सभी को अपनी भूमिका निभानी है और जो लोग शैक्षिक विकास में बाधा डाल रहे है हमें मिलकर उनका पुरजोर विरोध करना है।

 

 

 

 

“हम और आप अपनी असल ज़िंदगी में रोज़ाना ऐसे बच्चों से मिलते है जो स्कूल न जाकर होटलों में काम करते हुए,ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांगते हुए, कूड़ा-कचरा बीनते, यहीं नहीं कुछ तो भीख न मांग कर खिलौने बेचते है, अपने परिवार के साथ शहरों में काम करते हुए दिखाई देते हैं। वहीं बहुत से बच्चे गाँव और गली-मोहल्लों में दिनभर घूमते रहते हैं या फिर परिवार के साथ खेतों पर काम करने जाते हैं या फिर बाज़ार में सब्जी बेचने के लिए जाते हैं। आखिर ऐसा क्यों हैं? क्या ये बच्चे पढना नहीं चाहते है या इसकी वजह कुछ और ही है??”


भड़ास अभी बाकी है...