शक्ति भी असुरक्षित है आखिर क्यों? (भाग-3)

 

  • 31 प्रतिशत महिलायें अपने जीवनसाथी द्वारा शारीरिक, भावनात्मक या यौन हिंसा का शिकार हुई है।

 

  • ग्रामीण क्षेत्रों में 29 प्रतिशत महिलाओं को यौन उत्पीड़न की स्थितियों का सामना करना पड़ा है।

 

  • 23 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों की महिलाओं को यौन उत्पीड़न की स्थितियों का सामना करना पड़ा है।

 

  • भारत में यौन हिंसा की शिकार महिलाओं को आसानी से न्याय नहीं मिलता।

 

 

'बेटी है अनमोल' के नारे को अपनाने वाले देश में आज बेटियों/महिलाओं पर होने वाला अत्याचार झकझोरने लगा है। देवभूमि में देवी की तरह पूजी जाने वाली बेटियों/महिलाओं के प्रति बढ़ रही दुष्कर्म, छेड़छाड़ व अत्याचार की घटनाएं समाज के जिस चेहरे को दर्शा रही हैं उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं किया जा सकता है।

 

 

साल 2018 में भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की एक रिपोर्ट में सामने आया है कि 15 साल तक की आयु वाली हर तीसरी लड़की किसी न किसी रूप में घरेलू हिंसा का शिकार हुई है। इस सर्वेक्षण के मुताबिक 27 प्रतिशत महिलायें 15 साल तक की आयु में हिंसा का शिकार बनी हैं। इस तरह के मामले ग्रामीण क्षेत्रों में काफी आम हैं। आंकड़ों के मुताबिक ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में क्रमश: 29 एवं 23 प्रतिशत महिलाओं को यौन उत्पीड़न की स्थितियों का सामना करना पड़ा है। साल 2005 में महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिये लाया गया कानून शारीरिक, भावनात्मक, मौखिक शब्दों, यौन और आर्थिक हिंसा के सभी मामलों में महिला को उपचार प्रदान करता है। यह कानून मैरिटल रेप को भी उत्पीड़न के रूप में स्वीकार करता है।

 

 

देखा जाये तो महिलायें घर की दहलीज के भीतर भी सुरक्षित नहीं है। 31 प्रतिशत महिलायें अपने जीवनसाथी द्वारा शारीरिक, भावनात्मक या यौन हिंसा का शिकार हुई है। शादीशुदा महिलाओं के विरूद्ध सबसे ज्यादा 27 प्रतिशत मामले शारीरिक हिंसा से सम्बन्धित पाये गये है।

 

 

जबकि गैर शादीशुदा महिलाओं में हिंसा का आरोपी परिवार का करीबी सदस्य ही पाया गया है।

 

 

 

 

हयूमन राइट्स वाच ने नवम्बर 2017 में जारी एक रिपोर्ट में पाया कि भारत में यौन हिंसा की शिकार महिलाओं को आसानी से न्याय नहीं मिलता। यहां तक कि बलात्कार और यौन हिंसा से पीड़ित महिलाओं को पुलिस स्टेशन और अस्पताल में भी शर्मनाक स्थितियों का सामना करना पड़ता है।

 

 

भारतीय कानून के मुताबिक अगर कोई पुलिस अधिकारी यौन हिंसा से पीड़ित महिला की एफआईआर नही दर्ज करता है तो उसे दो साल की कैद का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि देखा यह गया है कि पीड़ित महिला अगर समाज के निचले तबके से सम्बन्ध रखती है तो अमूमन पुलिस अधिकारी उसकी रिपोर्ट दर्ज करने में कोताही बरतते हैं।

 

 

भारत में महिलाओं के प्रति हिंसा के ज्यादातर मामलों में शिकायते दर्ज ही नहीं होती। यहां तक कि अपराधों का सर्वे करने वाले संस्थानों के पास भी इस तरह के मामलों की जानकारी नही रहती।

 

रिपोर्ट के मुताबिक बलात्कार के इन मामलो में पीड़िता को मनोवैज्ञानिक मदद यानि काउन्सिलिंग की सहायता भी नहीं मिलती। भारतीय समाज में बलात्कार पीड़िता को अछूत समझा जाता हैं। सदियों पुरानी यौन शुचिता की पुरूष वादी धारणा का शिकार बनी महिला के लिये बलात्कार जैसी पीड़ादायक स्थिति से गुजरने के बाद सामान्य जीवन जीना और मुश्किल हो जाता है।

भड़ास अभी बाकी है...