सिस्टम से लड़ती एक मां की कहानी भाग-2

चिन्मयी के पास वापस कैट की शरण में जाने के अलावा कोई चारा नही बचा था और कैट ने दोबारा जून 2018 में उनके पक्ष में आदेश दिया कि 1994 से लेकर चिन्मयी के रिटायरमेंट के वर्ष 2008 तक पूर्व भत्तों का 50 प्रतिशत, एरियर, पेंशन और अन्य बकाये का भुगतान दो महीने के भीतर कर दिया जाए। लेकिन इस आदेश के खिलाफ विभाग हाईकोर्ट पहुँच गया मगर वहाँ दो सदस्यीय खंडपीठ नें कैट के आदेश को बरकरार रखते हुए विभाग की याचिका निरस्त कर दी। लेकिन बीएसएनएल के अफसरों की गैंडे जैसी खाल पर हाईकोर्ट की चाबुक का भी कोई असर नहीं हुआ। थक-हार कर वृद्ध चिन्मयी नें दोबारा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिस पर हाईकोर्ट ने सख्ती से पेश आते हुए बीएसएनएल को बकाया राशि, वेतन और भत्तों को मय ब्याज सहित भुगतान करने का आदेश दिया।

 

मगर...अफसरशाही माननीय हाईकोर्ट के आदेशों को भी ठेंगा दिखाने से बाज नही आयी और फरवरी 1994 से अक्टूबर 2008 तक की सर्विस के एवज में केवल 6613रूपये बतौर तनख्वाह चिन्मयी के हाथों में थमा दी।

 

“जनमानस भड़ास” टीम नें कानपुर नगर में भारत संचार निगम के जीएम महेन्द्रपति से फोन पर बात की तो उन्होने बताया कि विभाग ने कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए चिन्मयी की सैलरी का एस्टीमेट बनवाया और 1994 से लेकर 2008 तक वह जिस सरकारी क्वार्टर में रह रही थीं। उसका किराया काटने के बाद जितनी सैलरी बनती थी वह उनको दे दी। हालांकि चिन्मयी का कहना है कि हाईकोर्ट ने 15साल के बकाया वेतन और भत्तों को मय ब्याज सहित बिना किसी कटौती के भुगतान करने का आदेश दिया था। इतने सालों से बिना सैलरी के रही एक मां के पास इतने सालों की नौकरी करने के बदले में एक सरकारी क्वार्टर ही था और बिना पैसों के बच्चों को पालने के लिये मजबूर एक मां सड़क पर तो रह नही सकती थी। मगर इस सिस्टम को कोर्ट के आदेशों की परवाह भी नही है।

 

चिन्मयी के दो बेटे हैं- तन्मय और चिन्मय मोइत्रा। बिना सैलरी के अपने बच्चों को पालना और पढ़ाना कितना कठिन होता है इसका अंदाजा तो लगाया जा सकता है लेकिन महसूस करना बेहद मुश्किल है। तन्मय मोइ़़त्रा शहर के ही एक कालेज से कानून की पढ़ाई कर रहे हैं। जिंदगी भर अपने हक के लिये कोर्ट कचहरी के चक्कर काटती अपनी मां को देखते रहने के बाद उन्होने खुद वकील बनने का निश्चय किया। तन्मय बताते हैं कि विभाग के इस शर्मनाक रवैये के बाद वह वापस हाईकोर्ट में एक अवमानना याचिका दायर करने जायेंगे।

 

लालफीताशाही और सिस्टम से लड़ते हुए बूढ़ी हो चुकी चिन्मयी मोइ़त्रा अब अकेली नहीं है। आज उनके दोनो बेटे उनकी लड़ाई में उनके साथ हैं और उन्हे बस इसी बात का संतोष है।


आखिर कौन हैं चिन्मयी मोइत्रा...जानने के लिए देखें...सिस्टम से लड़ती एक मां की कहानी

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